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लाखों गरीब बच्चों को स्कूल भेजने वाला साइकिल गुरु, लखनऊ की सड़कों पर बैनर लेकर खड़ा रहने को मजबूर

साल 1995 में लाखों बच्चों को स्कूल भेजने वाले साइकिल गुरु आदित्य कुमार (Aditya Kumar aka Cycle Guru ) लखनऊ की सड़कों पर खड़े होकर लोगों से मदद मांग रहे हैं. देखिए ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट...

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हाथ में पोस्टर लेकर खड़े आदित्य कुमार
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Published : Jul 12, 2022, 12:50 PM IST

लखनऊ: देश के 27 लाख बच्चों को शिक्षित कर चुके और राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित साइकिल गुरु के नाम से प्रसिद्ध आदित्य कुमार (Aditya Kumar aka Cycle Guru ) लखनऊ की सड़कों पर खड़े होकर हर आते-जाते लोगों से मदद मांग रहे हैं. शायद ही कोई हो जो उनकी ओर ध्यान भी दे रहा. इसके बावजूद घंटों राजधानी की सड़कों पर एक बैनर लिए हुए खड़े हैं. इसमें लिखा है, 'भारत दुनिया का ऐसा देश बने, जहां हर गरीब बच्चा शिक्षित हो यही मेरा प्रयास है'. आदित्य 27 सालों से अपनी संपत्ति बेचकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. लेकिन, अब उनके पास खुद के खाने के लाले पड़ गए हैं. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि शायद कोई व्यक्ति या सरकार उन्हें देखकर उनकी मदद करेगी.

यूपी के फर्रुखाबाद के रहने वाले आदित्य उर्फ साइकिल गुरु 1995 से गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं. करीब 20 राज्यों में साइकिल से यात्रा कर बच्चों को स्कूल जाने के लिए जागरूक करना और खुद उनका स्कूल में एडमिशन करवाना आदित्य की जिंदगी का एकमात्र मिशन बन चुका है. लेकिन, अब आदित्य को 27 साल का अपना मिशन रुकता नजर आ रहा है. बीते दो सालों में लॉकडाउन और कोरोना ने उन्हें और उनके सपनों को तोड़ दिया है. अब उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वो किसी भी जिले में जाकर गरीब बच्चों की क्लास शुरू कर सकें और उनका स्कूल में दाखिला करा सकें. इसीलिए आदित्य लखनऊ की सड़कों पर अपने साइकिल स्कूल को लेकर घंटों खड़े रहते हैं और इंतजार करते हैं कि कोई उनकी मदद करें.

हाथ में पोस्टर लेकर खड़े आदित्य कुमार

बैनर लेकर लोगों की ओर आशा से देख रहे आदित्य गुरु
ईटीवी भारत को आदित्य मुख्यमंत्री आवास से 100 मीटर की दूर पर लोहिया पथ पर नंगे पैर खड़े मिले. उनके हाथों में एक बैनर था, जिसे वो ऊपर की ओर तान कर खड़े थे. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान आदित्य ने बताया कि अब वो बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना सब कुछ बेच चुके हैं. ज्यादा खर्च न हो इसके लिए उन्होंने शादी भी नहीं की. खुद पर खर्चा न हो इसलिए घर नहीं बनाया. इसके बावजूद अब वो बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ हैं.

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बच्चों को पढ़ाते आदित्य

यह भी पढ़ें:सीएम योगी का गोरखपुर दौरा आज, करोड़ों की योजनाओं की देंगे सौगात

मीडिया में मिली पहचान, लेकिन अब जिंदगी बेहाल
आदित्य कहते हैं कि उन्होंने 1995 से लखनऊ में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया था. आधा वक्त ट्यूशन और आधा वक्त गरीब बच्चों को पढ़ाते थे. उन्हीं की पढ़ाई हुई बच्ची 13 साल बाद जज बनी. उनके कई मित्र भी बने, जिन्होंने मदद की. आदित्य कहते हैं कि शुरुआत में मीडिया ने उनके विषय में खूब लिखा था. लोग उन्हें जानने लगे थे.

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बैनर लेकर खड़े आदित्य

गरीब बच्चों को पढ़ाने का है आदित्य में नशा
आदित्य बताते हैं कि वो अब तक 27 लाख बच्चों को स्कूल भेज चुके हैं. जो अपने आप में रिकॉर्ड है. लेकिन, लॉकडाउन में सब टूट गया. उन्होंने बताया कि उनके पिता मजदूर थे. उनके पास कुछ भी नहीं था. वो कहते हैं कि समाजसेवा दो प्रकार के लोग करते हैं. एक वो जो धनाढ्य होते हैं और दूसरे हम जैसे लोग जो साधनविहीन होते हैं. उनमें एक नशा होता है कि देश के लिए कुछ करना है, मरना है, जीना है. आदित्य कहते हैं कि उनके पास पढ़ाने के लिए साधनों की कमी हो गई है.

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गरीब बच्चों के साथ बैठे आदित्य

अब बंद हो रहीं गरीब बच्चों की क्लासेज
आदित्य गुरु ने बताया कि सड़क पर ही रहता हूं. कभी-कभी जिस स्लम में बच्चों को पढ़ाता हूं, वहां रह लेता हूं. पूरा त्याग, तपस्या इन्हीं गरीब बच्चों के लिए कर दिया. लेकिन, अब यह त्याग कम पड़ रहा है. वह कहते हैं कि आज भी लाखों बच्चों को पढ़ाना है. वो खुद क्लास शुरू करने के लिए कहते हैं. लेकिन, अब वो मजबूर हैं. उनकी आधी से ज्यादा क्लासेस बंद हो चुकी हैं.

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बच्चों को पढ़ाते आदित्य

आदित्य उर्फ साइकिल गुरु का जीवन परिचय
आदित्य कुमार का जन्म 18 जुलाई 1970 को फर्रुखाबाद के सलेमपुर गांव में हुआ था. पिता का नाम भूप नारायण और मां का नाम लौंग देवी था. घर में 5 भाई-बहनों में आदित्य तीसरे नंबर के हैं. परिवार एक छोटे से घर में रहता था. पिता मजदूरी करते थे. इस वजह से परिवार को मुश्किल भरे दौर से गुजरना पड़ा था. आदित्य बचपन से ही चाहते थे कि वह हायर स्टडीज की पढ़ाई पूरी करें. लेकिन, पैसे की कमी के चलते उनका ये सपना पूरा नहीं हो पाया.

यह भी पढ़ें: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी प्रकरण: जिला अदालत में सुनवाई आज, मुस्लिम पक्ष रखेगा अपनी बात

आदित्य ने इंटर की पढ़ाई करने के बाद कानपुर की ओर रुख किया और वहां उन्होंने बीएससी में दाखिला लिया. पढ़ाई के दौरान सड़कों पर बच्चों को पढ़ना शुरू कर दिया. उन्होंने शादी नहीं की है. साल 1996 में आदित्य लखनऊ आए. निशातगंज और चारबाग के कई अलग-अलग स्थानों पर रहकर सड़क पर ही गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया. लखनऊ के ही एक व्यापारी ने उन्हें एक साइकिल गिफ्ट की. वह व्यापारी भी आदित्य से पढ़ चुका था. आदित्य उर्फ साइकिल गुरु ने 12 जनवरी 2015 को लखनऊ के डीएम आवास से साइकिल यात्रा शुरू की थी. उसके बाद उन्नाव, कानपुर, दिल्ली, पंजाब, उतराखंड, तमिलनाडू, बिहार, पहुंचे. बाद में झारखंड होते हुए अब जाकर सिक्किम पहुंचे. उन्होंने साइकिल से अब तक 20 से अधिक राज्यों का दौरा किया है.

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प्रमाण पत्र

इन अवॉर्ड्स से नवाजे गए आदित्य
आदित्य को इन्हीं कार्यों की वजह से 3 मई 2014 को भारत के नेशनल रिकाडॅ्र्स लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड में नाम दर्ज हुआ. फिर प्राउड अवॉर्ड, यूनाइटेड वर्ल्ड रिकॉर्ड, इंडियाज वर्ल्ड रिकॉर्ड, अवॉर्ड ऑफ नेपाल समेत कुल 25 अवॉर्ड्स मिल चुके हैं. उन्हें यूपी के राज्यपाल राम नाइक, पूर्व सीएम अखिलेश यादव, उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत, हिमाचल प्रदेश के सीएम वीरभद्र और अन्ना हजारे सम्मान पत्र देकर सम्मानित कर चुके हैं.

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लखनऊ: देश के 27 लाख बच्चों को शिक्षित कर चुके और राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित साइकिल गुरु के नाम से प्रसिद्ध आदित्य कुमार (Aditya Kumar aka Cycle Guru ) लखनऊ की सड़कों पर खड़े होकर हर आते-जाते लोगों से मदद मांग रहे हैं. शायद ही कोई हो जो उनकी ओर ध्यान भी दे रहा. इसके बावजूद घंटों राजधानी की सड़कों पर एक बैनर लिए हुए खड़े हैं. इसमें लिखा है, 'भारत दुनिया का ऐसा देश बने, जहां हर गरीब बच्चा शिक्षित हो यही मेरा प्रयास है'. आदित्य 27 सालों से अपनी संपत्ति बेचकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. लेकिन, अब उनके पास खुद के खाने के लाले पड़ गए हैं. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि शायद कोई व्यक्ति या सरकार उन्हें देखकर उनकी मदद करेगी.

यूपी के फर्रुखाबाद के रहने वाले आदित्य उर्फ साइकिल गुरु 1995 से गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं. करीब 20 राज्यों में साइकिल से यात्रा कर बच्चों को स्कूल जाने के लिए जागरूक करना और खुद उनका स्कूल में एडमिशन करवाना आदित्य की जिंदगी का एकमात्र मिशन बन चुका है. लेकिन, अब आदित्य को 27 साल का अपना मिशन रुकता नजर आ रहा है. बीते दो सालों में लॉकडाउन और कोरोना ने उन्हें और उनके सपनों को तोड़ दिया है. अब उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वो किसी भी जिले में जाकर गरीब बच्चों की क्लास शुरू कर सकें और उनका स्कूल में दाखिला करा सकें. इसीलिए आदित्य लखनऊ की सड़कों पर अपने साइकिल स्कूल को लेकर घंटों खड़े रहते हैं और इंतजार करते हैं कि कोई उनकी मदद करें.

हाथ में पोस्टर लेकर खड़े आदित्य कुमार

बैनर लेकर लोगों की ओर आशा से देख रहे आदित्य गुरु
ईटीवी भारत को आदित्य मुख्यमंत्री आवास से 100 मीटर की दूर पर लोहिया पथ पर नंगे पैर खड़े मिले. उनके हाथों में एक बैनर था, जिसे वो ऊपर की ओर तान कर खड़े थे. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान आदित्य ने बताया कि अब वो बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना सब कुछ बेच चुके हैं. ज्यादा खर्च न हो इसके लिए उन्होंने शादी भी नहीं की. खुद पर खर्चा न हो इसलिए घर नहीं बनाया. इसके बावजूद अब वो बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ हैं.

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बच्चों को पढ़ाते आदित्य

यह भी पढ़ें:सीएम योगी का गोरखपुर दौरा आज, करोड़ों की योजनाओं की देंगे सौगात

मीडिया में मिली पहचान, लेकिन अब जिंदगी बेहाल
आदित्य कहते हैं कि उन्होंने 1995 से लखनऊ में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया था. आधा वक्त ट्यूशन और आधा वक्त गरीब बच्चों को पढ़ाते थे. उन्हीं की पढ़ाई हुई बच्ची 13 साल बाद जज बनी. उनके कई मित्र भी बने, जिन्होंने मदद की. आदित्य कहते हैं कि शुरुआत में मीडिया ने उनके विषय में खूब लिखा था. लोग उन्हें जानने लगे थे.

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बैनर लेकर खड़े आदित्य

गरीब बच्चों को पढ़ाने का है आदित्य में नशा
आदित्य बताते हैं कि वो अब तक 27 लाख बच्चों को स्कूल भेज चुके हैं. जो अपने आप में रिकॉर्ड है. लेकिन, लॉकडाउन में सब टूट गया. उन्होंने बताया कि उनके पिता मजदूर थे. उनके पास कुछ भी नहीं था. वो कहते हैं कि समाजसेवा दो प्रकार के लोग करते हैं. एक वो जो धनाढ्य होते हैं और दूसरे हम जैसे लोग जो साधनविहीन होते हैं. उनमें एक नशा होता है कि देश के लिए कुछ करना है, मरना है, जीना है. आदित्य कहते हैं कि उनके पास पढ़ाने के लिए साधनों की कमी हो गई है.

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गरीब बच्चों के साथ बैठे आदित्य

अब बंद हो रहीं गरीब बच्चों की क्लासेज
आदित्य गुरु ने बताया कि सड़क पर ही रहता हूं. कभी-कभी जिस स्लम में बच्चों को पढ़ाता हूं, वहां रह लेता हूं. पूरा त्याग, तपस्या इन्हीं गरीब बच्चों के लिए कर दिया. लेकिन, अब यह त्याग कम पड़ रहा है. वह कहते हैं कि आज भी लाखों बच्चों को पढ़ाना है. वो खुद क्लास शुरू करने के लिए कहते हैं. लेकिन, अब वो मजबूर हैं. उनकी आधी से ज्यादा क्लासेस बंद हो चुकी हैं.

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बच्चों को पढ़ाते आदित्य

आदित्य उर्फ साइकिल गुरु का जीवन परिचय
आदित्य कुमार का जन्म 18 जुलाई 1970 को फर्रुखाबाद के सलेमपुर गांव में हुआ था. पिता का नाम भूप नारायण और मां का नाम लौंग देवी था. घर में 5 भाई-बहनों में आदित्य तीसरे नंबर के हैं. परिवार एक छोटे से घर में रहता था. पिता मजदूरी करते थे. इस वजह से परिवार को मुश्किल भरे दौर से गुजरना पड़ा था. आदित्य बचपन से ही चाहते थे कि वह हायर स्टडीज की पढ़ाई पूरी करें. लेकिन, पैसे की कमी के चलते उनका ये सपना पूरा नहीं हो पाया.

यह भी पढ़ें: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी प्रकरण: जिला अदालत में सुनवाई आज, मुस्लिम पक्ष रखेगा अपनी बात

आदित्य ने इंटर की पढ़ाई करने के बाद कानपुर की ओर रुख किया और वहां उन्होंने बीएससी में दाखिला लिया. पढ़ाई के दौरान सड़कों पर बच्चों को पढ़ना शुरू कर दिया. उन्होंने शादी नहीं की है. साल 1996 में आदित्य लखनऊ आए. निशातगंज और चारबाग के कई अलग-अलग स्थानों पर रहकर सड़क पर ही गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया. लखनऊ के ही एक व्यापारी ने उन्हें एक साइकिल गिफ्ट की. वह व्यापारी भी आदित्य से पढ़ चुका था. आदित्य उर्फ साइकिल गुरु ने 12 जनवरी 2015 को लखनऊ के डीएम आवास से साइकिल यात्रा शुरू की थी. उसके बाद उन्नाव, कानपुर, दिल्ली, पंजाब, उतराखंड, तमिलनाडू, बिहार, पहुंचे. बाद में झारखंड होते हुए अब जाकर सिक्किम पहुंचे. उन्होंने साइकिल से अब तक 20 से अधिक राज्यों का दौरा किया है.

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प्रमाण पत्र

इन अवॉर्ड्स से नवाजे गए आदित्य
आदित्य को इन्हीं कार्यों की वजह से 3 मई 2014 को भारत के नेशनल रिकाडॅ्र्स लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड में नाम दर्ज हुआ. फिर प्राउड अवॉर्ड, यूनाइटेड वर्ल्ड रिकॉर्ड, इंडियाज वर्ल्ड रिकॉर्ड, अवॉर्ड ऑफ नेपाल समेत कुल 25 अवॉर्ड्स मिल चुके हैं. उन्हें यूपी के राज्यपाल राम नाइक, पूर्व सीएम अखिलेश यादव, उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत, हिमाचल प्रदेश के सीएम वीरभद्र और अन्ना हजारे सम्मान पत्र देकर सम्मानित कर चुके हैं.

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