लखनऊः विद्युत नियामक आयोग में वितरण लाइसेंस की याचिका एक बड़े ग्रुप की तरफ से दाखिल हुई है. उपभोक्ता परिषद का कहना है कि इससे पूर्व साल 2022-23 की बिजली दर की जब विद्युत नियामक आयोग में सुनवाई चल रही थी. उसी दौरान बड़े ग्रुप के एक सीनियर अधिकारी ने गुजरात से वीडियो कांफ्रेंसिंग में गुपचुप तरीके से भाग लिया था. उपभोक्ता परिषद ने तब कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी. जो आज भी विद्युत नियामक आयोग के रिकॉर्ड में मौजूद है. परिषद अध्यक्ष का मानना है कि बिजली दर बढ़ोतरी के पीछे बड़ी साजिश की जा रही है.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (Uttar Pradesh State Electricity Consumers Council) के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आरोप लगाया है कि गौतमबुद्ध नगर जनपद यानी नोएडा और ग्रेटर नोएडा के पूरे क्षेत्र के लिए दो कंपनी ने वितरण का लाइसेंस विद्युत अधिनियम 2003 (License Electricity Act 2003) की धारा 14 के तहत लेने के लिए विद्युत नियामक आयोग में गुपचुप तरीके से याचिका दाखिल कर दी है. दिसंबर के आखिरी सप्ताह में याचिका दाखिल की गई. उत्तर प्रदेश में देश के बड़े निजी घराने की एंट्री के साथ ही बढ़ी बिजली दर में बढ़ोतरी का प्रस्ताव अपने आप में बड़े जांच का विषय है. अध्यक्ष ने कहा कि पूरे मामले की सीबीआई जांच होना चाहिए. एक तरफ देश के किसी बड़े निजी घराने को स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर को देने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ऊंची दरों पर टेंडर देने का दबाव बना रहा है. वहीं, दूसरी तरफ अब उत्तर प्रदेश में एक पूरे जनपद को देश के बड़े निजी घराने की तरफ से अपने कब्जे में लेने के लिए वितरण का लाइसेंस मांगना निजीकरण की तरफ इशारा कर रहा है. उपभोक्ता परिषद प्रदेश के मुख्यमंत्री से पुरजोर मांग करता है कि यह सब घटनाक्रम एकाएक नहीं हो रहा है. इस सब घटनाक्रम के पीछे कहीं कोई देश का कोई बड़ा निजी घराना तो नहीं है. इसलिए पूरे मामले की सीबीआई जांच होना बहुत जरूरी है. उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि जल्द इस ग्रुप ने जो पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम की तरफ से कार्य किए जाने के बावजूद समानांतर लाइसेंस मांगा है, उस पर एक विरोध याचिका दाखिल करेगा. ये कितना चौंकाने वाला मामला है कि पूरे उत्तर प्रदेश में नोएडा में सबसे कम वितरण हानियां हैं. सबसे ज्यादा राजस्व प्राप्त हो रहा है. उसी क्षेत्र पर देश के बड़े निजी घराने की नजर है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों ने एक दिन पहले जहां विद्युत नियामक आयोग में भारी वृद्धि का प्रस्ताव दाखिल किया है. जिसमें घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की लगभग 23 प्रतिशत उद्योगों की, 16 प्रतिशत गरीबों की, 17 प्रतिशत किसानों की, 10 से 12 प्रतिशत कमर्शियल की मिलाकर बिजली कंपनियों ने जो कुल वार्षिक राजस्व आवश्यकता दाखिल किया है. वह रुपये 92547 करोड़ है. विद्युत नियामक आयोग बिजली कंपनियों के कुल प्रस्तावित बिजली दर को अनुमोदित कर दे तो बिजली कंपनियों को जो कुल राजस्व प्राप्त होगा. वह लगभग रुपये 98,628 करोड़ यानी कि वार्षिक राजस्व आवश्यकता से ज्यादा राजस्व प्राप्ति है. उपभोक्ता परिषद ने जब इसका अध्ययन किया तो पाया कि बिजली कंपनियों ने बड़ी चालाकी से वर्ष 2021-23 में जब बिजली दर की बढ़ोतरी नहीं हुई थी. उस समय के नुकसान की भरपाई के लिए भी इस बढ़ोतरी में ट्रू-अप के मद में 1922 करोड़ की राजस्व हानि को भी शामिल कर लिया है. बिजली कंपनियां दो साल पीछे से बिजली दर की बढ़ोतरी चाह रही हैं. अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि बिजली कंपनियां यह भूल गईं कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर सरप्लस 25,133 करोड़ों निकल रहा है. ऐसे में पिछले एक वर्ष से बढ़ोतरी की बात करना असंवैधानिक है.
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निजी कंपनी ने वितरण लाइसेंस के लिए नियामक आयोग में दाखिल की याचिका, उपभोक्ता परिषद ने किया विरोध
लखनऊ विद्युत नियामक आयोग (Lucknow Electricity Regulatory Commission) में वितरण लाइसेंस की याचिका एक बड़े ग्रुप की तरफ से भी दाखिल की गई है. दो कंपनी ने वितरण का लाइसेंस विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 14 के तहत लेने के लिए विद्युत नियामक आयोग में गुपचुप तरीके से याचिका दाखिल कर दी है.
लखनऊः विद्युत नियामक आयोग में वितरण लाइसेंस की याचिका एक बड़े ग्रुप की तरफ से दाखिल हुई है. उपभोक्ता परिषद का कहना है कि इससे पूर्व साल 2022-23 की बिजली दर की जब विद्युत नियामक आयोग में सुनवाई चल रही थी. उसी दौरान बड़े ग्रुप के एक सीनियर अधिकारी ने गुजरात से वीडियो कांफ्रेंसिंग में गुपचुप तरीके से भाग लिया था. उपभोक्ता परिषद ने तब कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी. जो आज भी विद्युत नियामक आयोग के रिकॉर्ड में मौजूद है. परिषद अध्यक्ष का मानना है कि बिजली दर बढ़ोतरी के पीछे बड़ी साजिश की जा रही है.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (Uttar Pradesh State Electricity Consumers Council) के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आरोप लगाया है कि गौतमबुद्ध नगर जनपद यानी नोएडा और ग्रेटर नोएडा के पूरे क्षेत्र के लिए दो कंपनी ने वितरण का लाइसेंस विद्युत अधिनियम 2003 (License Electricity Act 2003) की धारा 14 के तहत लेने के लिए विद्युत नियामक आयोग में गुपचुप तरीके से याचिका दाखिल कर दी है. दिसंबर के आखिरी सप्ताह में याचिका दाखिल की गई. उत्तर प्रदेश में देश के बड़े निजी घराने की एंट्री के साथ ही बढ़ी बिजली दर में बढ़ोतरी का प्रस्ताव अपने आप में बड़े जांच का विषय है. अध्यक्ष ने कहा कि पूरे मामले की सीबीआई जांच होना चाहिए. एक तरफ देश के किसी बड़े निजी घराने को स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर को देने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ऊंची दरों पर टेंडर देने का दबाव बना रहा है. वहीं, दूसरी तरफ अब उत्तर प्रदेश में एक पूरे जनपद को देश के बड़े निजी घराने की तरफ से अपने कब्जे में लेने के लिए वितरण का लाइसेंस मांगना निजीकरण की तरफ इशारा कर रहा है. उपभोक्ता परिषद प्रदेश के मुख्यमंत्री से पुरजोर मांग करता है कि यह सब घटनाक्रम एकाएक नहीं हो रहा है. इस सब घटनाक्रम के पीछे कहीं कोई देश का कोई बड़ा निजी घराना तो नहीं है. इसलिए पूरे मामले की सीबीआई जांच होना बहुत जरूरी है. उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि जल्द इस ग्रुप ने जो पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम की तरफ से कार्य किए जाने के बावजूद समानांतर लाइसेंस मांगा है, उस पर एक विरोध याचिका दाखिल करेगा. ये कितना चौंकाने वाला मामला है कि पूरे उत्तर प्रदेश में नोएडा में सबसे कम वितरण हानियां हैं. सबसे ज्यादा राजस्व प्राप्त हो रहा है. उसी क्षेत्र पर देश के बड़े निजी घराने की नजर है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों ने एक दिन पहले जहां विद्युत नियामक आयोग में भारी वृद्धि का प्रस्ताव दाखिल किया है. जिसमें घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं की लगभग 23 प्रतिशत उद्योगों की, 16 प्रतिशत गरीबों की, 17 प्रतिशत किसानों की, 10 से 12 प्रतिशत कमर्शियल की मिलाकर बिजली कंपनियों ने जो कुल वार्षिक राजस्व आवश्यकता दाखिल किया है. वह रुपये 92547 करोड़ है. विद्युत नियामक आयोग बिजली कंपनियों के कुल प्रस्तावित बिजली दर को अनुमोदित कर दे तो बिजली कंपनियों को जो कुल राजस्व प्राप्त होगा. वह लगभग रुपये 98,628 करोड़ यानी कि वार्षिक राजस्व आवश्यकता से ज्यादा राजस्व प्राप्ति है. उपभोक्ता परिषद ने जब इसका अध्ययन किया तो पाया कि बिजली कंपनियों ने बड़ी चालाकी से वर्ष 2021-23 में जब बिजली दर की बढ़ोतरी नहीं हुई थी. उस समय के नुकसान की भरपाई के लिए भी इस बढ़ोतरी में ट्रू-अप के मद में 1922 करोड़ की राजस्व हानि को भी शामिल कर लिया है. बिजली कंपनियां दो साल पीछे से बिजली दर की बढ़ोतरी चाह रही हैं. अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि बिजली कंपनियां यह भूल गईं कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर सरप्लस 25,133 करोड़ों निकल रहा है. ऐसे में पिछले एक वर्ष से बढ़ोतरी की बात करना असंवैधानिक है.
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