लखनऊ: शिरोज हैंगआउट उम्मीद है जिंदगी की, एहसास है तमाम मुश्किलों के बाद भी कुछ कर दिखाने का. 2016 में प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शुरू हुए शिरोज हैंगआउट ने एसिड अटैक पीड़िताओं की जिंदगी बदल दी. शिरोज हैंगआउट में एसिड पीड़ित महिलाएं न सिर्फ खुश हैं बल्कि अपनी बीती यादों को भूलाकर एक नई जिंदगी शुरू की हैं.
बदल गई जिंदगी
महज 21 साल की एसिड अटैक पीड़िता जीतू शर्मा ने बताया कि उसके साथ यह घटना करीब 4 से 5 साल पहले हुई थी. इस घटना को अंजाम 55 वर्षीय व्यक्ति ने दिया था. जीतू ने बताया कि वह व्यक्ति उससे प्यार करता था. जीतू ने बताया कि इस घटना के बाद पूरी तरह से उसका जीवन बदल गया. जीतू ने बताया कि उसने हिम्मत नहीं हारी और 2014 में आगरा में चल रहे शिरोज हैंगआउट में काम करना शुरू कर दिया. जब 2016 में लखनऊ में यह कैफे खुला तब यहां आ गई. यहां आने के बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा. जीतू का कहना है कि आज वह अपनी जिंदगी में बहुत खुश हैं.
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पति ने किया घिनौना काम
शिरोज हैंगआउट में काम करने वाली रेशमा की भी कहानी कम दुखदाई नहीं है. लगातार 5 बेटियों को जन्म देने से उसका पति नाराज हो गया. गुस्से में उसने रेशमा के प्राइवेट पार्ट में एसिड डाल दिया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और हालातों से मुकाबला किया.
बीती जिंदगी के बारे में सोचना ही नहीं
रेशमा ने बताया कि जिस समय यह घटना हुई उस समय वह प्रेग्नेंट थी, लेकिन शिरोज हैंगआउट ने उस समय उसकी मदद की. रेशमा ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया. आज वह यहां काम करके बेहद खुश हैं और बीती जिंदगी के बारे में सोचना ही नहीं चाहती.
यह कहानी भी बेहद दर्दनाक
वहीं शिरोज हैंगआउट में एक और एसिड अटैक पीड़िता राजनीता हैं. वह मेरठ की रहने वाली हैं. उसने बताया कि वह बहुत खुश रहने वाली लड़की थी, लेकिन इस घटना ने उसे बदल दिया.
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बुजुर्ग ने की ओछी हरकत
शिरोज हैंगआउट में एक अन्य एसिड अटैक पीड़िता अंशुल राजपूत ने बताया कि करीब 6 साल पहले एक बुजुर्ग ने उसके ऊपर एसिड डाल दिया था. इस घटना से उसका चेहरा पूरी तरह से झुलस गया, लेकिन अंशुल ने हिम्मत न हारते हुए आगे बढ़ने का फैसला किया. अंशुल का कहना है कि वह आज जो कुछ भी है अपने दम पर है.
औरों के लिए भी हैं तैयार
शिरोज हैंगआउट में काम करने वाली सभी एसिड अटैक पीड़िताओं का कहना है कि वह लोग ऐसी तमाम बहनों के लिए तैयार हैं, जो ऐसी जिंदगी जी रही हैं.