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10 साल की बच्ची के दुराचार और हत्या का मामला, हाईकोर्ट ने साक्ष्यों के आभाव में अभियुक्त को किया बरी

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने दस साल की बच्ची के साथ दुराचार और हत्या मामले में अभियुक्त को बरी कर दिया है. इसके अलावा न्यायालय ने 9 साल से अधिक समय से जेल में बंद अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दिया है.

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच
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Published : Sep 30, 2022, 10:49 PM IST

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने दस साल की बच्ची के साथ दुराचार और हत्या के एक आपराधिक अपील मामले में महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए, मामले के अभियुक्त को बरी कर दिया है. अभियुक्त को 11 जनवरी 2013 को लखनऊ की एक सत्र अदालत ने दोषसिद्ध करार देते हुए, आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. हालांकि हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के इस निर्णय को पलटते हुए, कहा है कि अभियोजन द्वारा पेश की गए साक्ष्य अभियुक्त की दोषसिद्धि के लिए अपर्याप्त थे. इसके साथ ही न्यायालय ने नौ साल से अधिक समय से जेल में बंद अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दिया है.

यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने अनिल कश्यप की अपील पर पारित किया. मामले की एफआईआर काकोरी थाने में 3 जुलाई 2007 को मृतका के पिता ने दर्ज कराई थी. एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि अभियुक्त ने आम तोड़ने गई मृतका के साथ दुराचार करने के बाद, गला काट कर उसकी हत्या कर दी. अभियोजन की ओर से मामले में वादी के अतिरिक्त दो प्रत्यक्षदर्शी गवाह प्रस्तुत की गए थे. इनमें से एक गवाह ट्रायल के दौरान अभियोजन द्वारा पक्षद्रोही घोषित कर दिया गया था.

वहीं, दूसरे प्रत्यक्षदर्शी गवाह सजीवन लाल के बयानों में बहुत से विरोधाभाष पाए गए. न्यायालय ने यह भी पाया कि सजीवन लाल के बयानों और अभियोजन पक्ष के दूसरे गवाहों के बयानों की तुलना में भी विरोधाभास है. न्यायालय ने यह भी पाया कि मृतका का शव मिलने के स्थान और घटना के समय के बावत भी अभियोजन कथानक में विरोधाभास है. न्यायालय ने कहा कि मामले में दुराचार के आरोप की भी पुष्टि नहीं हो सकी है.

यह भी पढ़ें- किस्त भरने के लिए किया जा रहा था तंग, कर्ज में डूबे किसान ने की आत्महत्या

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने दस साल की बच्ची के साथ दुराचार और हत्या के एक आपराधिक अपील मामले में महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए, मामले के अभियुक्त को बरी कर दिया है. अभियुक्त को 11 जनवरी 2013 को लखनऊ की एक सत्र अदालत ने दोषसिद्ध करार देते हुए, आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. हालांकि हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के इस निर्णय को पलटते हुए, कहा है कि अभियोजन द्वारा पेश की गए साक्ष्य अभियुक्त की दोषसिद्धि के लिए अपर्याप्त थे. इसके साथ ही न्यायालय ने नौ साल से अधिक समय से जेल में बंद अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दिया है.

यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने अनिल कश्यप की अपील पर पारित किया. मामले की एफआईआर काकोरी थाने में 3 जुलाई 2007 को मृतका के पिता ने दर्ज कराई थी. एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि अभियुक्त ने आम तोड़ने गई मृतका के साथ दुराचार करने के बाद, गला काट कर उसकी हत्या कर दी. अभियोजन की ओर से मामले में वादी के अतिरिक्त दो प्रत्यक्षदर्शी गवाह प्रस्तुत की गए थे. इनमें से एक गवाह ट्रायल के दौरान अभियोजन द्वारा पक्षद्रोही घोषित कर दिया गया था.

वहीं, दूसरे प्रत्यक्षदर्शी गवाह सजीवन लाल के बयानों में बहुत से विरोधाभाष पाए गए. न्यायालय ने यह भी पाया कि सजीवन लाल के बयानों और अभियोजन पक्ष के दूसरे गवाहों के बयानों की तुलना में भी विरोधाभास है. न्यायालय ने यह भी पाया कि मृतका का शव मिलने के स्थान और घटना के समय के बावत भी अभियोजन कथानक में विरोधाभास है. न्यायालय ने कहा कि मामले में दुराचार के आरोप की भी पुष्टि नहीं हो सकी है.

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