लखनऊ: मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन तलाक कानून को लेकर एक बार फिर से देश में बहस छिड़ती हुई नजर आ रही है. दरअसल इस कानून को मुसलमानों की बड़ी संस्था जमीयत उलमा-ए-हिन्द सहित कुछ अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया है. वहीं कोर्ट में दायर याचिका पर देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस भेज जवाब मांगा है, जिस पर एक बार फिर से अलग-अलग प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है.
जमीयत उलमा-ए-हिन्द लखनऊ के अध्यक्ष डॉक्टर सलमान ने बताया कि-
जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट एक साथ तीन तलाक को अमान्य करार दे चुका है. ऐसे में कानून की जरूरत नहीं है. याचिका में यह भी कहा गया है कि पति को जेल जाने से पत्नी की मदद नहीं होगी और परेशानियां बढ़ेगी.
अध्यक्ष डॉक्टर सलमान कहते हैं कि तीन तलाक का कानून मुसलमानों पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है. अगर सरकार को कुछ ऐसा कानून बनाना भी था तो मुस्लिम संगठनों से पहले बातचीत करनी चाहिए थी जो कि नहीं की गई है. वहीं अब जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट ने भी नोटिस जारी करके केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिस पर तीन तलाक को लेकर फिर से बहस छिड़ती नजर आने लगी है.
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हिन्दू शिया एकता संघ के अध्यक्ष अबुल हसन हुसैनी ने कहा कि-
तीन तलाक के नाम पर 14 सौ सालों से मुस्लिम महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रहा था, जिसको मोदी सरकार ने समाप्त करके ऐतिहासिक काम किया है. ऐसे में तीन तलाक के कानून में 3 साल की सजा जायज है, जिसकी वजह से तीन तलाक के मामलों में कमी आएगी.
गौरतलब है कि एक लंबे वक्त से तीन तलाक को लेकर देश में बहस और बयानबाजी का दौर जारी था, लेकिन मोदी सरकार ने लोकसभा के बाद राज्यसभा में तीन तलाक बिल पास करके एक बड़ी कामयाबी हासिल की थी. जिस पर मुस्लिम महिलाओं ने भी स्वागत किया था. तो कहीं विरोध भी देखने को मिला था. ऐसे में अब तीन तलाक कानून का मामला देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा है. जहां कोर्ट इसकी समीक्षा कर अपना फैसला सुनाएगा.