लखनऊ : राजधानी में अप्रैल महीने में कोरोना की दूसरी लहर ने हालात इस कदर खराब कर दिए थे कि लोगों को न तो अस्पतालों में बेड मिल पा रहा था और ना ही ऑक्सीजन मिल पा रही थी. वहीं श्मशान घाट पर लाशों का अंबार लगा हुआ था. लोग अपने मरीजों को बचाने के लिए ऑक्सीजन की भीख मांग रहे थे. ऐसे में सिलेंडर की बड़े पैमाने पर कालाबाजारी भी शुरू हो गई. लेकिन इसी बीच पुराने लखनऊ के रहने वाले राहत-ए-इंसानियत फाउंडेशन के चांद कुरैशी ने रोजा रखते हुए भी लोगों को मुफ्त ऑक्सीजन बांटने का बीड़ा उठाया. वह अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंद लोगों को मुफ्त में सांसें बांट रहे थे, जिसकी बदौलत सैकड़ों गम्भीर मरीजों की जानें बची.
'मुसीबत में मिली मदद'
गोमती नगर के रहने वाले अनिल श्रीवास्तव बताते हैं कि उन्हें जब कहीं से ऑक्सीजन नहीं मिली तो उन्हें पता चला कि पुराने लखनऊ में चांद कुरैशी मरीजों के लिए मुक्त ऑक्सीजन दे रहे हैं. उन्हें भी जब ऑक्सीजन की बेहद जरुरत थी, तब मदद मिली.
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