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जानवरों में एंटीबायोटिक इंजेक्शन का हो रहा इस्तेमाल, इंसानों के लिए खतरा - एंटीबायोटिक इंजेक्शन

लोग मुर्गे को कम दिनों में अधिक बड़ा व मोटा दिखाने के लिए एंटीबायोटिक इंजेक्शन (antibiotic injections) दे रहे हैं. यह जानवरों के साथ इंसानों के लिए भी खतरा बन गया है. यह बातें दिल्ली एम्स के रिटायर्ड डॉ. अशोक रतन ने केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग के 35वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान कहीं.

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Published : Dec 17, 2022, 10:25 AM IST

लखनऊ : लोग मुर्गे को कम दिनों में अधिक बड़ा व मोटा दिखाने के लिए एंटीबायोटिक इंजेक्शन (antibiotic injections) दे रहे हैं. यह जानवरों के साथ इंसानों के लिए भी खतरा बन गया है. यह बातें दिल्ली एम्स के रिटायर्ड डॉ. अशोक रतन ने केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग के 35वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान कहीं. कार्यक्रम का आयोजन ब्राउन हाल में हुआ.

इस दौरान डॉ. अशोक रतन ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का बेहिसाब इस्तेमाल हो रहा है. करीब 70 फीसदी जानवरों को उनके जल्द विकास और मोटा करने के लिए एंटीबायोटिक दी जा रही है. इन जानवरों से इंसानों में एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है. बीमारी की दशा में लोगों में एंटीबायोटिक दवाएं कारगर नहीं हो रही हैं.

केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग (Department of Microbiology at KGMU) की डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बेहद सोच समझकर करना चाहिए, क्योंकि एंटीबायोटिक दवाएं सीमित हैं. उन्होंने बताया कि करीब 30 फीसदी मरीज एंटीबायोटिक दवा खाने में डॉक्टर की सलाह को नजरअंदाज करते हैं. मसलन डॉक्टर ने पांच दिन एंटीबायोटिक दवा खाने को कहा तो वे 10 से 12 दिन तक खाते हैं. यह बड़ी समस्या बन गई है.

डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि आमतौर पर डॉक्टर बिना जांच के ही एंटीबायोटिक दवा लिख देते हैं, जबकि इसका प्रयोग सिर्फ बैक्टीरिया होने पर ही करना चाहिए. मानव शरीर में बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता लगाने के लिए प्रोकैलिसिटिन का स्तर का पता लगाना चाहिए. इस जांच की रिपोर्ट कुछ मिनट में आ जाती है. बैक्टीरिया का पता लगने से सटीक एंटीबायोटिक दवा देने में मदद मिल सकती है.

केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग (Department of Microbiology at KGMU) की अध्यक्ष डॉ. अमिता जैन ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाएं सीमित हैं. इस पर शोध की जरूरत है, ताकि और अधिक एंटीबायोटिक दवाओं की खोज की जा सके. अभी कंपनियों का ज्यादा फोकस कैंसर समेत दूसरी बीमारियों की दवा खोजने पर है. उन्होंने कहा कि विभाग में 100 से अधिक परीक्षण कार्य किया जा रहा है. कोरोना काल में विभाग ने जांच में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि डॉक्टर व माइक्रोबायोलॉजी विशेषज्ञ मिलकर मरीजों का इलाज करें. इससे बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं. कार्यकम में डॉ. शीतल वर्मा व डॉ. आरके कल्याण को सम्मानित किया गया.

यह भी पढ़ें : आंखों पर पड़ता है मोबाइल स्क्रीन का बुरा प्रभाव, इन बातों का रखें ध्यान

लखनऊ : लोग मुर्गे को कम दिनों में अधिक बड़ा व मोटा दिखाने के लिए एंटीबायोटिक इंजेक्शन (antibiotic injections) दे रहे हैं. यह जानवरों के साथ इंसानों के लिए भी खतरा बन गया है. यह बातें दिल्ली एम्स के रिटायर्ड डॉ. अशोक रतन ने केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग के 35वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान कहीं. कार्यक्रम का आयोजन ब्राउन हाल में हुआ.

इस दौरान डॉ. अशोक रतन ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का बेहिसाब इस्तेमाल हो रहा है. करीब 70 फीसदी जानवरों को उनके जल्द विकास और मोटा करने के लिए एंटीबायोटिक दी जा रही है. इन जानवरों से इंसानों में एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है. बीमारी की दशा में लोगों में एंटीबायोटिक दवाएं कारगर नहीं हो रही हैं.

केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग (Department of Microbiology at KGMU) की डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बेहद सोच समझकर करना चाहिए, क्योंकि एंटीबायोटिक दवाएं सीमित हैं. उन्होंने बताया कि करीब 30 फीसदी मरीज एंटीबायोटिक दवा खाने में डॉक्टर की सलाह को नजरअंदाज करते हैं. मसलन डॉक्टर ने पांच दिन एंटीबायोटिक दवा खाने को कहा तो वे 10 से 12 दिन तक खाते हैं. यह बड़ी समस्या बन गई है.

डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि आमतौर पर डॉक्टर बिना जांच के ही एंटीबायोटिक दवा लिख देते हैं, जबकि इसका प्रयोग सिर्फ बैक्टीरिया होने पर ही करना चाहिए. मानव शरीर में बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता लगाने के लिए प्रोकैलिसिटिन का स्तर का पता लगाना चाहिए. इस जांच की रिपोर्ट कुछ मिनट में आ जाती है. बैक्टीरिया का पता लगने से सटीक एंटीबायोटिक दवा देने में मदद मिल सकती है.

केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग (Department of Microbiology at KGMU) की अध्यक्ष डॉ. अमिता जैन ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाएं सीमित हैं. इस पर शोध की जरूरत है, ताकि और अधिक एंटीबायोटिक दवाओं की खोज की जा सके. अभी कंपनियों का ज्यादा फोकस कैंसर समेत दूसरी बीमारियों की दवा खोजने पर है. उन्होंने कहा कि विभाग में 100 से अधिक परीक्षण कार्य किया जा रहा है. कोरोना काल में विभाग ने जांच में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि डॉक्टर व माइक्रोबायोलॉजी विशेषज्ञ मिलकर मरीजों का इलाज करें. इससे बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं. कार्यकम में डॉ. शीतल वर्मा व डॉ. आरके कल्याण को सम्मानित किया गया.

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