लखनऊ: लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में कई डॉक्टरों की संबद्धता का समय बुधवार को पूरा हो गया है. ऐसे में प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग से जुड़े ये डॉक्टर अपने मूल विभाग में लौट आए हैं. वहीं रिक्त पदों पर डॉक्टरों की संविदा पर भर्ती प्रक्रिया सुस्त है. ऐसे में एमबीबीएस की मान्यता के साथ-साथ मरीजों के इलाज में भी परेशानी आ रही है.
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मरीजों को होगी दिक्कतें
लोहिया आयुर्विज्ञान सुपर स्पेशयलिटी इंस्टीट्यूट है. यहां 2017 में एमबीबीएस कोर्स शुरू करने पर मुहर लगी थी. ऐसे में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के मानकों को पूरा करने के लिए पास में बने लोहिया संयुक्त अस्पताल का उसमें विलय कर दिया गया. साथ ही शिक्षकों की समस्या हल करने के लिए अस्पताल के 34 डॉक्टरों की संबद्धता संस्थान से कर दी गई. ऐसे ही अस्पताल के संचालन के लिए भी 118 के करीब कर्मचारी भी डेपुटेशन पर ले लिए गए. शेष मूल विभाग प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग में चले गए. वहीं 31 मार्च को संस्थान में सम्बद्ध 34 डॉक्टरों की मियाद पूरी हो गई है. शासन ने उनकी संबद्धता का विस्तार नहीं किया. इसको लेकर दो डॉक्टर कोर्ट चले गए. शेष 32 चिकित्सकों को मूल विभाग वापस जाने के लिए लोहिया संस्थान प्रशासन ने रिलीव कर दिया.
डॉक्टरों को किया गया रिलीव
संस्थान के प्रवक्ता डॉ श्रीकेश सिंह ने एमसीआई (अब एनएमसी) के मानक जल्द पूरा करने का दावा किया है. उन्होंने कहा कि 32 डॉक्टरों की सम्बद्धता का समय समाप्त हो गया है. इन्हें रिलीव कर दिया गया है. दो चिकित्सकों का मामला कोर्ट में था. इन पर शासन फैसला लेगा. वहीं 17 विभागों में संविदा पर 34 डॉक्टर के भर्ती की प्रक्रिया चल रही है. इन पर अगले सप्ताह साक्षात्कार शुरू होने की उम्मीद है.
चार विभागों में ठप होगा इलाज
अब लोहिया संस्थान के चार विभागों में इलाज का संकट गहरा सकता है. मानसिक, त्वचा, टीबी, चेस्ट और नेत्र रोग विभाग डॉक्टरों से पूरी तरह खाली हो जाएंगे. ऐसे में सैकड़ों मरीजों का इलाज बंद हो सकता है. चारों विभाग एक-एक डॉक्टर के भरोसे संचालित हो रहे थे. इनमें मानसिक रोग विभाग व त्वचा रोग विभाग के डॉक्टर को रिलीव होने का फैसला बाकी है. वहीं टीबी एंड चेस्ट में कोई डॉक्टर नहीं रह गया. ऐसा ही हाल नेत्र रोग विभाग का है.