लखनऊ : प्रदेश स्तर पर हर जिले में जाकर महिला आयोग (Uttar Pradesh State Commission for Women) की सदस्य और अध्यक्ष जनसुनवाई करती हैं, जिसके बाद महिलाओं को इंसाफ मिलने में आसानी होती है. वर्तमान में सदस्य, उपाध्यक्ष व अध्यक्ष पद खाली होने के चलते महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. प्रदेश में पिछले काफी वक्त से महिला आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष समेत कई सदस्यों का पद खाली पड़ा है. 25 सदस्यों वाले आयोग में मौजूदा समय में एक भी सदस्य नहीं है, पिछले 6 नवंबर तक केवल चार सदस्य ही अपनी कुर्सी पर बरकरार थे.
केस-1 : मंगलवार को उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग में एक पीड़िता इंसाफ के लिए पहुंची. बातचीत के दौरान पीड़िता ने बताया कि साल 2021 में उसकी शादी हुई थी. पीड़िता पहले दो बार ससुराल गई थी. आरोप है कि तीसरी बार जब ससुराल गई तो जेठ समेत उनके दो अन्य साथी ने रेप किया. पति ने भी अपने भाई का समर्थन किया. पीड़िता का आरोप था कि सहारनपुर के नजदीकी थाना क्षेत्र में जब शिकायत के लिए गई तो जेठ ने पहले ही पैसा देकर पुलिसवालों को अपने साइड कर लिया. जिसके बाद पीड़ित महिला ने कोर्ट में अर्जी दी, जहां मामला पेंडिंग है. वकील फीस मांग रहे हैं. महिला के मायके में बुजुर्ग माता-पिता व छह बहनें हैं. इंसाफ की उम्मीद लिए पीड़ित महिला राज्य महिला आयोग पहुंची. फिलहाल महिला को दिलासा दिया गया कि राज्य महिला आयोग संबंधित थाना क्षेत्र की पुलिस से बातचीत करेगी, लेकिन मामला कोर्ट में होने के कारण पीड़ित महिला के केस की जानकारी डीजीपी को भेजी गई है, वहीं राज्य महिला आयोग के कर्मचारियों ने वकील से बात की और कम फीस लेने के लिए कहा.
केस-2 : सोमवार को महिला आयोग में एक पीड़िता पहुंची. महिला तलाकशुदा है. पीड़ित महिला एक युवक के संपर्क में आई. दोनों में प्रेम हुआ. इसके बाद शादी का झांसा देकर लड़का महिला का यौन शोषण करता था. बात जब शादी की आई तो लड़का फरार हो गया. फिलहाल पीड़ित महिला ने महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई है. बुधवार को मामले की सुनवाई होगी. पुलिस की जांच से पीड़ित महिला संतुष्ट नहीं है.
पिछले एक महीने से राज्य महिला आयोग में चार से पांच हजार केस आए हैं. साल 2022 में राज्य महिला आयोग में करीब 55 हजार से अधिक केस दर्ज हुए, जिसमें दहेज उत्पीड़न, अत्याचार, घरेलू हिंसा और छेड़छाड़ के मामले शामिल हैं. आयोग का काम संभालने वाला फिलहाल कोई नहीं है, वहीं विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि कहने को तो पुलिस तत्परता से कार्य कर रही है, लेकिन कार्रवाई एक भी केस में नहीं हुई है.
वर्ष 2002 में राज्य महिला आयोग का गठन किया गया था, वर्ष 2004 में आयोग के क्रियाकलापों को कानूनी आधार देने के लिए राज्य महिला आयोग अधिनियम-2004 लाया गया. इसके बाद जून 2007 में अधिनियम में संशोधन करके आयोग का पुनर्गठन किया गया. इस अधिनियम में अप्रैल 2013 में संशोधन कर आयोग का एक बार फिर पुनर्गठन किया गया और यूपी में होने वाले महिला अपराध पर अंकुश लगाने में ये आयोग काफी कारगार साबित भी हुआ, लेकिन सवाल ये है की एक लंबे समय से खाली पड़े इन पदों पर आखिर योगी सरकार कब तक नियुक्ति करती है या ये पद ऐसे ही आगे भी खाली पड़े रहेंगे.
उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की मेंबर सेक्रेटरी आईएएस अर्चना गंगवार ने बताया कि मौजूदा समय में सभी सदस्यों के पद खाली हैं, हालांकि काम में कोई अंतर नहीं आया है. जिस प्रकार से पहले काम होता था उसी तरह अभी भी काम चल रहा है, जो महिलाएं आ रही हैं उनकी सुनवाई हो रही है. केस में कोई भी गिरावट नहीं आई है. रोजाना 250 से 300 केस राज्य महिला आयोग में आ रहे हैं. कोशिश होती है कि जल्द महिलाओं को इंसाफ मिले. अगर वह समझौता लायक केस है तो जल्द से जल्द समझौता करा दिया जाता है. पेंडिंग में केस न हो इसलिए लगातार मामले की सुनवाई होती है.
वहीं उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की निवर्तमान अध्यक्ष विमला बाथम ने बताया कि फिलहाल 6 नवंबर को कार्यकाल पूरा हो चुका है. हर साल सभी पदाधिकारियों का कार्यकाल रिन्यू किया जाता है. इस बार अभी तक शासन की ओर से कोई जानकारी नहीं प्राप्त हुई है. आयोग का काम संबंधित अधिकारी देख रहे हैं.