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राजस्थान के नागौर में फंसे बलरामपुर और सिद्धार्थनगर के 30 मजदूर, भूख से हुए बेहाल

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर और सिद्धार्थनगर के 30 मजदूर नागौर में फंसे हुए हैं. पेट काटकर बचाई हुई पूंजी भी अब खत्म हो गई है तो पेट की आग बुझाने के लिए पहले उधार मांगा, जब उधार मिलना बंद हो गया तो चाय पीकर पेट की आग बुझा रहे हैं.

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30 मजदूर नागौर में फंसे.
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Published : Apr 24, 2020, 8:36 PM IST

नागौर: अपने हाथों से लोगों के आशियाने तराशने वाले मजदूर लॉकडाउन के इस विकट हालात में दूसरों के सामने ही हाथ फैलाने को मजबूर हैं. अपना और परिवार का पेट पालने की मजबूरी उन्हें अपने गांव-शहर से दूर ले आई. कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू करते समय केंद्र और राज्य सरकार ने दावा किया था कि किसी जरूरतमंद को भूखा नहीं सोने दिया जाएगा.

30 मजदूर नागौर में फंसे.

उत्तर प्रदेश के दो जिलों के नागौर में फंसे 30 मजदूर कभी एक समय खाना खाकर तो कभी खाना नहीं मिलने पर चाय पीकर दिन काटने को मजबूर हैं. उत्तर प्रदेश के बलरामपुर और सिद्धार्थनगर के 30 मजदूर पिछले आठ-दस महीने से नागौर के लोहारों के मोहल्ले में रह रहे हैं. यहां ये मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट भर रहे थे. लॉकडाउन की घोषणा हुई तो नागौर में ही फंसकर गए. बचत के रुपए खर्च हुए तो आसपास के दुकानदारों से उधार लेकर कुछ दिन गुजारा किया, लेकिन अब दुकानदारों ने भी उधार देना भी बंद कर दिया हैं.

पढ़ेंः रियलिटी चेक: सूचना झूठी हो या सच्ची, दौड़ पड़ी यूपी 112 की पीआरवी

इसके बाद ये मजदूर पूरी तरह भामाशाहों और सामाजिक संगठनों पर निर्भर हो गए. इन मजदूरों का कहना हैं कि एक बार कुछ लोग आए और राशन देकर गए, लेकिन अब खाने-पीने का कोई स्थायी इंतजाम नहीं हैं. ऐसे में इधर-उधर से जो भी व्यवस्था हो जाती है गुजारा कर रहे हैं. इनका कहना है कि कभी दिन में एक समय के खाने का इंतजाम हो जाता है तो कभी आधे लोगों के लिए खाने के पैकेट मिलते हैं. ऐसे में जो कुछ मिलता है, बांटकर खा लेते हैं. कभी कुछ नहीं मिलता तो चाय पीकर पेट की आग को शांत करने का प्रयास करते हैं. इनका कहना है कि अब ये जल्द से जल्द घर जाना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- अहमदाबाद नया हॉट स्पॉट, मई के अंत तक हो सकते हैं 8 लाख कोरोना संक्रमित केस

कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सरकार का पूरा जोर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने पर है लेकिन छोटे-छोटे तीन कमरों में रह रहे इन 30 मजदूरों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की पालन करना किसी भी हाल में संभव नहीं हैं. सरकार का दावा है कि जरूरतमंदों को खाने के पैकेट और रसद सामग्री के पैकेट दिए जा रहे हैं. इधर जिला प्रशासन का भी दावा है कि खाने-पीने को लेकर जिले भर से कोई खास शिकायत नहीं आई है, लेकिन कलेक्टर ऑफिस से करीब दो किमी. की दूरी पर रह रहे इन मजदूरों के उदास चेहरे और आंखें सारी हकीकत बयां कर रही हैं.

नागौर: अपने हाथों से लोगों के आशियाने तराशने वाले मजदूर लॉकडाउन के इस विकट हालात में दूसरों के सामने ही हाथ फैलाने को मजबूर हैं. अपना और परिवार का पेट पालने की मजबूरी उन्हें अपने गांव-शहर से दूर ले आई. कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू करते समय केंद्र और राज्य सरकार ने दावा किया था कि किसी जरूरतमंद को भूखा नहीं सोने दिया जाएगा.

30 मजदूर नागौर में फंसे.

उत्तर प्रदेश के दो जिलों के नागौर में फंसे 30 मजदूर कभी एक समय खाना खाकर तो कभी खाना नहीं मिलने पर चाय पीकर दिन काटने को मजबूर हैं. उत्तर प्रदेश के बलरामपुर और सिद्धार्थनगर के 30 मजदूर पिछले आठ-दस महीने से नागौर के लोहारों के मोहल्ले में रह रहे हैं. यहां ये मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट भर रहे थे. लॉकडाउन की घोषणा हुई तो नागौर में ही फंसकर गए. बचत के रुपए खर्च हुए तो आसपास के दुकानदारों से उधार लेकर कुछ दिन गुजारा किया, लेकिन अब दुकानदारों ने भी उधार देना भी बंद कर दिया हैं.

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इसके बाद ये मजदूर पूरी तरह भामाशाहों और सामाजिक संगठनों पर निर्भर हो गए. इन मजदूरों का कहना हैं कि एक बार कुछ लोग आए और राशन देकर गए, लेकिन अब खाने-पीने का कोई स्थायी इंतजाम नहीं हैं. ऐसे में इधर-उधर से जो भी व्यवस्था हो जाती है गुजारा कर रहे हैं. इनका कहना है कि कभी दिन में एक समय के खाने का इंतजाम हो जाता है तो कभी आधे लोगों के लिए खाने के पैकेट मिलते हैं. ऐसे में जो कुछ मिलता है, बांटकर खा लेते हैं. कभी कुछ नहीं मिलता तो चाय पीकर पेट की आग को शांत करने का प्रयास करते हैं. इनका कहना है कि अब ये जल्द से जल्द घर जाना चाहते हैं.

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कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सरकार का पूरा जोर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने पर है लेकिन छोटे-छोटे तीन कमरों में रह रहे इन 30 मजदूरों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की पालन करना किसी भी हाल में संभव नहीं हैं. सरकार का दावा है कि जरूरतमंदों को खाने के पैकेट और रसद सामग्री के पैकेट दिए जा रहे हैं. इधर जिला प्रशासन का भी दावा है कि खाने-पीने को लेकर जिले भर से कोई खास शिकायत नहीं आई है, लेकिन कलेक्टर ऑफिस से करीब दो किमी. की दूरी पर रह रहे इन मजदूरों के उदास चेहरे और आंखें सारी हकीकत बयां कर रही हैं.

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