लखनऊ: उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों के खाते में भेजी गई वित्तीय वर्ष 2020-21 में बड़ी धनराशि का एक तिहाई हिस्सा ग्राम प्रधान खर्च ही नहीं कर पाए. अब इस भारी-भरकम धनराशि के खर्च करने को लेकर गांव की सरकार में ग्राम पंचायतों के अधिकार समाप्त होने के बाद, अब प्रशासक के स्तर से शासन से डिमांड के बाद ही विकास कार्य हो सकेंगे.
25 दिसम्बर को ग्राम प्रधानों का कार्यकाल हुआ था खत्म
उत्तर प्रदेश में 25 दिसंबर से ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त हो गया है और यह धनराशि खातों में डंप हो गई है. अब इसे निकालने को लेकर प्रशासक, जिलाधिकारी और शासन स्तर पर जब पत्राचार होगा तो फिर इस धनराशि की स्वीकृति होगी. तब जाकर विकास कार्यों में यह धनराशि खर्च की जा सकेगी. वित्तीय वर्ष 2020-21 में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्य के लिए राज्य सरकार की तरफ से 6000 करोड़ रुपये धनराशि का आवंटन किया गया था. इस धनराशि का उपभोग पब्लिक फाइनेंस मैनेजमेंट और ई ग्राम स्वराज के माध्यम से किया जाता है. ग्राम प्रधानों के कार्यकाल समाप्त होने के बाद पंचायती राज विभाग की तरफ से सभी ग्राम पंचायतों में एडीओ पंचायत को प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया है.
खर्च कर पाते प्रधान तो और होता विकास
उत्तर प्रदेश में करीब 60 हजार ग्राम पंचायतों के खातों में 1800 करोड़ रुपये की धनराशि बची हुई है. अगर ग्राम प्रधान इस धनराशि से विकास कार्य कराते तो गांव के विकास की तस्वीर कुछ और होती, लेकिन ग्राम प्रधानों की उदासीनता और अफसरों द्वारा तमाम स्तर पर अड़ंगेबाजी के चलते यह धनराशि खर्च नहीं हो पाई. अभी इसे खर्च करने को लेकर तमाम तरह के प्रयास किए जाएंगे. फिर जाकर के विकास कार्य कराए जा सकेंगे.
पंचायत चुनाव की तैयारियां तेज
वहीं, दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं. पंचायतों के क्षेत्र निर्धारण के लिए परिसीमन और आरक्षण का काम चल रहा है. मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम भी लगभग पूरा होने की स्थिति में है. मतदाता सूची का पहला ड्राफ्ट तैयार हो चुका है और इसकी आपत्तियां या इसमें कुछ संशोधन का काम भी शुरू हुआ है. 22 जनवरी तक मतदाता सूची का फाइनल प्रकाशन किया जाना है. इसके बाद उत्तर प्रदेश में राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से पंचायत चुनाव कराए जाने को लेकर कभी भी नोटिफिकेशन जारी हो सकता है.