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लखनऊ: व्यंग्य एक बेहद मुश्किल विधा है, इसे सहेजना जरूरी: अनूप मणि त्रिपाठी

उत्तर प्रदेश के राजधानी में 17 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में कई विशिष्ट विभूतियों ने शिरकत की. कार्यक्रम में व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक 'शोरूम में जननायक' पर चर्चा की गई.

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Published : Sep 25, 2019, 11:48 AM IST

लखनऊ में 17 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला का हुआ आयोजन

लखनऊ: यूं तो पुस्तक मेले की शान किताबें और किताबों से जुड़े हुए कई सामान होते हैं, लेकिन 17 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला में कुछ ऐसे आयोजन भी होते हैं. जहां पर पुस्तक का सम्मान होता है और उसे लिखने वाली विभूतियों से भी मुखातिब होने का मौका मिलता है. ऐसा ही एक कार्यक्रम मंगलवार को पुस्तक मेला के प्रांगण में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में एक व्यंग संवाद का आयोजन किया गया. इसमें व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक 'शोरूम में जननायक' पर चर्चा की गई.

लखनऊ में 17वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला का हुआ आयोजन
व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक 'शोरूम में जननायक' को दो बार बेस्ट सेलिंग बुक का तमगा मिल चुका है. इसी सिलसिले में आदर्श सेवा संस्थान की ओर से व्यंग्य संवाद का आयोजन किया गया था. इस आयोजन में अनूप मणि त्रिपाठी ने 'शोरूम में जननायक' के कुछ अंश सुनाए. अपने संवाद के अंश में त्रिपाठी ने किसी एक सरकार के शासन के दौरान बनने वाले आयोगों पर चर्चा की और उस पर व्यंग्य साधा.

व्यंग्यकार अनूप ने बताया व्यंग का स्तर हो रहा है खत्म

व्यंग्य एक बेहद मुश्किल विधा है. यह एक आम व्यक्ति को आसानी से समझ आ सकने और एक कलात्मक ढंग से लिखने की विधा है. उस पर अधिक से अधिक काम करने और समझने की आवश्यकता है. लेकिन आजकल व्यंग का स्तर तो खत्म हो ही रहा है पर साथ ही धीरे-धीरे व्यंग्य रचनाएं भी समाप्त होती जा रही हैं. हालांकि टीवी सीरियल और फिल्मों में तमाम तरह के व्यंग डाले जाते हैं लेकिन वह अब इस काबिल नहीं रह गए हैं कि उन्हें किसी ऐसे मंच पर बोला जा सके जो सभी के लिए सुनने योग्य हो.

लखनऊ: यूं तो पुस्तक मेले की शान किताबें और किताबों से जुड़े हुए कई सामान होते हैं, लेकिन 17 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला में कुछ ऐसे आयोजन भी होते हैं. जहां पर पुस्तक का सम्मान होता है और उसे लिखने वाली विभूतियों से भी मुखातिब होने का मौका मिलता है. ऐसा ही एक कार्यक्रम मंगलवार को पुस्तक मेला के प्रांगण में आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में एक व्यंग संवाद का आयोजन किया गया. इसमें व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक 'शोरूम में जननायक' पर चर्चा की गई.

लखनऊ में 17वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला का हुआ आयोजन
व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक 'शोरूम में जननायक' को दो बार बेस्ट सेलिंग बुक का तमगा मिल चुका है. इसी सिलसिले में आदर्श सेवा संस्थान की ओर से व्यंग्य संवाद का आयोजन किया गया था. इस आयोजन में अनूप मणि त्रिपाठी ने 'शोरूम में जननायक' के कुछ अंश सुनाए. अपने संवाद के अंश में त्रिपाठी ने किसी एक सरकार के शासन के दौरान बनने वाले आयोगों पर चर्चा की और उस पर व्यंग्य साधा.

व्यंग्यकार अनूप ने बताया व्यंग का स्तर हो रहा है खत्म

व्यंग्य एक बेहद मुश्किल विधा है. यह एक आम व्यक्ति को आसानी से समझ आ सकने और एक कलात्मक ढंग से लिखने की विधा है. उस पर अधिक से अधिक काम करने और समझने की आवश्यकता है. लेकिन आजकल व्यंग का स्तर तो खत्म हो ही रहा है पर साथ ही धीरे-धीरे व्यंग्य रचनाएं भी समाप्त होती जा रही हैं. हालांकि टीवी सीरियल और फिल्मों में तमाम तरह के व्यंग डाले जाते हैं लेकिन वह अब इस काबिल नहीं रह गए हैं कि उन्हें किसी ऐसे मंच पर बोला जा सके जो सभी के लिए सुनने योग्य हो.

Intro:लखनऊ। यूँ तो पुस्तक मेले की शान किताबें और किताबों से जुड़े हुए कई सामान होते हैं पर 17 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेला में कुछ ऐसे आयोजन भी होते हैं जहां पर न केवल पुस्तक का सम्मान होता है पर साथ ही उसे लिखने वाली विभूतियों से भी मुखातिब होने का मौका मिलता है। ऐसा ही एक कार्यक्रम आज पुस्तक मेला के प्रांगण में किया गया। यहां पर एक व्यंग संवाद का आयोजन किया गया जिसमें व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक 'शोरूम में जननायक' पर चर्चा की गई।


Body:वीओ1 व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक शोरूम में जननायक को दो बार बेस्ट सेलिंग बुक का तमगा मिल चुका है। इसी सिलसिले में आदर्श सेवा संस्थान की ओर से व्यंग्य संवाद का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में अनूप मणि त्रिपाठी ने शोरूम में जननायक के कुछ अंश सुनाए। अपने संवाद के अंश में त्रिपाठी ने किसी एक सरकार के शासन के दौरान बनने वाले आयोगों पर चर्चा की और उस पर व्यंग्य साधा। अनूप मणि कहते हैं कि व्यंग साहित्य की सबसे कठिन विदा होती है इसको लिखना उतना ही कठिन होता है जितना किसी उलझी हुई कहानी को समझकर आसान शब्दों में समझाना। अनूप कहते हैं कि आजकल व्यंग का स्तर तो खत्म हो ही रहा है पर साथ ही धीरे-धीरे व्यंग्य रचनाएं भी समाप्त होती जा रही हैं। हालांकि टीवी सीरियल और फिल्मों में तमाम तरह के व्यंग डाले जाते हैं लेकिन वह अब इस काबिल नहीं रह गए हैं कि उन्हें किसी ऐसे मंच पर बोला जा सके जो सभी के लिए सुनने योग्य हो। अनूप कहते हैं कि व्यंग्य एक बेहद मुश्किल विधा है। यह एक आम व्यक्ति को आसानी से समझ आ सकने और एक कलात्मक ढंग से लिखने की विधा है। उस पर अधिक से अधिक काम करने और समझने की आवश्यकता है।


Conclusion:व्यंग्यकार अनूप मणि त्रिपाठी की पुस्तक 'शोरूम में जननायक' व्यंग्य से भरपूर लेख शामिल किए गए हैं। साथ ही इसमें आज के समकक्ष के मसलो पर भी व्यंग्य लिखने की कोशिश सफल साबित हुई है। बाइट- अनूप मणि त्रिपाठी, व्यंग्यकार रामांशी मिश्रा
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