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ललितपुर: विकास के दौर में बदहाल सहरिया लोगों की जिंदगी

आज के इस विकास के दौर में भी उत्तर प्रदेश के ललितपुर में सहरिया बस्ती के लोग बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं, जहां पिछली और मौजूदा सरकारों ने इनकी कोई सुध नहीं ली. वहीं जिला प्रशासन भी अब तक कुम्भकर्णी की नींद सोया हुआ है.

विकास के दौर में बदहाल सहरिया लोगों की जिंदगी
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Published : Nov 3, 2019, 7:18 PM IST

ललितपुर: आज के इस विकास के दौर में भी जिले में सहरिया बस्ती के लोग बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं, जहां पिछली और मौजूदा सरकारों ने इनकी कोई सुध नहीं ली. वहीं जिला प्रशासन भी अब तक कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है.

विकास से कोसों दूर सहरिया बस्ती के लोग.

झोपड़ियों में रहकर कर रहे हैं गुजारा
जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर ग्राम रोंडा में सहरिया बस्ती के लगभग 100 परिवार के लोग अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं, जहां इन लोगों के पास कोई काम धंधा नहीं हैं. वहीं इन लोगों को नरेगा में भी काम नहीं दिया जाता है, जिसके चलते ये लोग लकड़ी और जड़ी-बूटी बेचकर झुग्गी-झोपड़ियों में रहकर अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रहे हैं.

निकलने तक के लिए नहीं है रास्ता
वर्षो से पक्की सड़कों और नालियों का निर्माण नहीं कराया गया है. इन लोगों के पास निकलने के लिए रास्ता भी नहीं है. बस्ती के चारों ओर गंदगी का आलम है. इन लोगों का कहना है कि कई बार इन सब समस्याओं को लेकर प्रधान से शिकायत की, लेकिन हर बार हमें प्रधान द्वारा टाल दिया गया. बस चुनाव के समय वोट मांगने सब नेता आते हैं और वादे करके चले जाते हैं.

यह भी पढ़ें: पड़ोसी के ट्वीट के बाद गरीबी के शिकार परिवार को मिला अनाज

इस मामले में जहां नेता पिछली सरकारों को इसका जिम्मेदार बता रहे हैं. वहीं अधिकारी प्रधान का दायित्व बातते हुए जांच कराने की बात कह रहे हैं.

ललितपुर: आज के इस विकास के दौर में भी जिले में सहरिया बस्ती के लोग बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं, जहां पिछली और मौजूदा सरकारों ने इनकी कोई सुध नहीं ली. वहीं जिला प्रशासन भी अब तक कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है.

विकास से कोसों दूर सहरिया बस्ती के लोग.

झोपड़ियों में रहकर कर रहे हैं गुजारा
जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर ग्राम रोंडा में सहरिया बस्ती के लगभग 100 परिवार के लोग अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं, जहां इन लोगों के पास कोई काम धंधा नहीं हैं. वहीं इन लोगों को नरेगा में भी काम नहीं दिया जाता है, जिसके चलते ये लोग लकड़ी और जड़ी-बूटी बेचकर झुग्गी-झोपड़ियों में रहकर अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रहे हैं.

निकलने तक के लिए नहीं है रास्ता
वर्षो से पक्की सड़कों और नालियों का निर्माण नहीं कराया गया है. इन लोगों के पास निकलने के लिए रास्ता भी नहीं है. बस्ती के चारों ओर गंदगी का आलम है. इन लोगों का कहना है कि कई बार इन सब समस्याओं को लेकर प्रधान से शिकायत की, लेकिन हर बार हमें प्रधान द्वारा टाल दिया गया. बस चुनाव के समय वोट मांगने सब नेता आते हैं और वादे करके चले जाते हैं.

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इस मामले में जहां नेता पिछली सरकारों को इसका जिम्मेदार बता रहे हैं. वहीं अधिकारी प्रधान का दायित्व बातते हुए जांच कराने की बात कह रहे हैं.

Intro:एंकर-बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में ग्राम रोंडा में सहरिया समाज की दुर्दशा का दौर आज भी जारी है.प्रदेश में कई सरकारें आई और गई लेकिन इनकी सुध आज तक किसी ने नही ली.और न ही यहाँ के रहवासियों के पास कोई काम धंधा है.यहाँ के लोग जंगलों में से लकड़ी व जड़ी बूटी तोड़कर उसे बेचते है और अपना गुजारा करते हैं.वर्षों से यहाँ के रहवासी झोपड़ियों में ही रह रहे हैं.इस समुदाय लगभग 100 परिवार हर सरकारी योजना से कोषों दूर है.ऐसा नही है कि इस ग्राम में सरकारी योजनाओं के लिए पैसा नही आता हो.हर सरकारी योजना का पैसा आता है लेकिन वह पैसा ग्राम प्रधान द्वारा सिर्फ कागजों में ही खर्च किया जाता है और हकीकत कुछ और ही है


Body:वीओ-ललितपुर मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर ग्राम रोंडा में बसे लगभग 100 सहरिया परिवारों के लोग आज भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है.सहरिया बस्ती के रहवासियों के लिए किसी भी सरकारी योजना का लाभ नही मिल रहा है जिससे बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है.इस समुदाय के लोगों को नरेगा में भी काम नही दिया जाता है.जिस कारण से यहाँ के रहवासियों को जीवनयापन करने के लिए लकड़ी व जड़ी बूटी का सहारा लेना पड़ रहा है.यहाँ वर्षो से पक्की सड़कों व नलियों का निर्माण नही कराया गया है जिससे बस्ती में चारों ओर गंदगी गंदगी फैली हुई है और निकलने के लिए यहाँ के लोगों के पास रास्ता भी नही है.लेकिन जिला प्रशासन कुम्भकर्णी नींद सोया हुआ है और ग्राम प्रधान का ख़ौफ़ इतना है कि सहरिया बस्ती के रहवासी अपनी समस्या को बताने में कतराते हैं.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि यह ग्राम ललितपुर मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूर है.जहाँ बावजूद इसके आज तक इस ग्राम की सहरिया बस्ती की ओर जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की नजर नही गई


बाइट-वही सहरिया समुदाय के लोगों से जब बात की गई तो उनका कहना है कि यहाँ कई सालों से रह रहे है कोई भी सुविधा नही है न नालियां, सड़के,आवास, शौचालय कुछ भी नही के प्रधान के पास जाते है तो कोई सुनवाई नही होती है औऱ पीने के लिए पानी नही है, गंदगी पड़ी हुई है गंदगी के मारे खाना भी कहा पाते है किसी भी प्रकार की सुविधा यहाँ नही है और साहब लोग आते है तो देख कर चले जाते हैं.कोई सुनने वाला नही है सिर्फ वोट मांगने आते है।सालों से गीली झोपड़ी में रह रहे हैं बच्चे बीमार हो रहे हैं.और गांव में सब सीसी रोड़ बन गए आवास बन गए.यहाँ कोई नही बनवा रहे।

बाइट-लीला सहरिया
बाइट-फूला सहरिया
बाइट-शगुनिया सहरिया
बाइट-राजकुमारी सहरिया
बाइट-गुलाब सहरिया




Conclusion:बाइट-वहीं जब जिलाधिकारी से बातचीत की गई.तो उनका कहना है कि ग्राम पंचायत का दायित्व है कि वह सब सुविधाएं अपने ग्रामवासियों को उपलब्ध कराएं.प्रत्येक ग्राम पंचायत का विकास योजनाबद्ध तरीके से होता है सबकी सहमति के आधार पर योजना बनाई जाती है और धन की उपलब्धता के आधार पर सब कार्य कराए जाते है,हो सकता है कि जो आप कह रहे हो इसमे सच्चाई हो.मैं इसकी जांच करवाऊंगा सत्यता पाए जाने पर कार्यवाही भी होगी।

बाइट-जिलाधिकारी मानवेन्द्र सिंह
बाइट-रामरतन कुशवाहा (सदर विधायक)
पीटीसी-लकी चौधरी


नोट-अर्चना पांडये धयानार्थ
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