लखनऊ : उत्तर प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर निकल रहे 25,133 करोड़ सरप्लस के एवज में दरों में कमी को रोकने के लिए कंपनियों ने अपर मुख्य सचिव ऊर्जा की तरफ से विद्युत नियामक आयोग को एक पत्र भिजवाया है. रिवैंप योजना में प्रस्तावित अधिक लाइन हानियों को मानने के लिए बनाए जा रहे दबाव के बीच उपभोक्ता परिषद की तरफ से नियामक आयोग में एक लोक महत्व याचिका दाखिल कर प्रस्ताव को खारिज करने की मांग की गई.
प्रदेश में बिजली दरों की सुनवाई पूरी हो जाने के बाद आठ मई को ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी संवैधानिक कमेटी राज्य सलाहकार समिति की बैठक भी हो चुकी है. कभी भी प्रदेश की नई बिजली दर घोषित हो सकती है. राज्य सलाहकार समिति की बैठक में अपर मुख्य सचिव ऊर्जा की उपस्थिति में उपभोक्ता परिषद ने इस बात का विरोध किया था कि जो वितरण हानियां बिजली कंपनियों द्वारा रिवैंप डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम आरडीएसएस में ट्रैजेक्टरी 14.90 प्रतिशत आंकलित की गई, को अनुमोदित करने की मांग की जा रही है जो गलत है.
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि 'विद्युत नियामक आयोग ने साल 2023-24 के लिए बिजनेस प्लान में 10.31 प्रतिशत अनुमोदित किया गया है उसे ही लागू किया जाना चाहिए. विद्युत नियामक आयोग ने भी राज्य सलाहकार समिति की बैठक में इस पर ही विचार करने का आश्वासन दिया था. रिवैंप की वितरण हानियों को न मानने की बात कही थी. अब सामने आया है कि प्रदेश की बिजली कंपनियां बड़ी चालाकी से अपर मुख्य सचिव ऊर्जा की तरफ से विद्युत नियामक आयोग को एक नया पत्र भेजकर यह लागू करने के लिए दबाव बनवा रही हैं कि आरडीएसएस स्कीम में जो वितरण हानियां 14.90 प्रतिशत हैं उसे ही वर्ष 2023-24 के बिजली दर प्रस्ताव में अनुमोदित किया जाए. ये बहुत ही गंभीर मामला है. प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं के साथ चीटिंग भी है.'
परिषद अध्यक्ष का कहना है कि 'सुनवाई समाप्त हो जाने के बाद इस प्रकार का दबाव बनाया जाना सही नहीं है. विद्युत नियामक आयोग को ऐसे नियम विरुद्ध प्रस्ताव को बिना देरी के खारिज करते हुए प्रदेश के उपभोक्ताओं की बिजली दरों में कमी करने पर विचार करें, क्योंकि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का जो सरप्लस 25,133 करोड़ का निकल रहा है.'
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