लखीमपुर खीरी: क्या आप जानते हैं, उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है, जहां आजादी के बाद से महिलाओं ने वोट ही नहीं डाला. ऐसा नहीं है कि उनका नाम मतदाता सूची में नहीं है. दरअसल, पुरुष प्रधान समाज की दादागिरी की वजह से इन महिलाओं को अब तक वोट डालने नहीं दिया गया था. लेकिन सोमवार को आखिरकार इस गांव की महिलाओं ने सामाजिक बेड़ियां तोड़ीं और पहली बार पंचायत चुनाव में मतदान किया.
आजादी के बाद से महिलाएं नहीं डालती थी वोट
खीरी जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर सेहरुआ गांव की महिलाओं को घर की दहलीज पार करने की इजाजत नहीं थी. वोट डालने की बात तो बहुत दूर की थी. मोहम्मदी और गोला तहसील की सीमा विवाद में उलझे सेहरुआ गांव में आजादी के बाद से ही महिलाओं को वोट डालने का अधिकार नहीं था. गांव के पुरुष ही वोट डालने मतदान स्थल आते थे. गांव के पुरुषों ने महिलाओं को ये कहकर दूर रखा हुआ था कि महिलाओं का सियासत और चुनाव से क्या लेना देना. इसलिए 1947 से ही गांव की पंची हो या देश की सबसे बडी संसद का चुनाव, महिलाओं को घर की चार दीवारी से निकलकर वोट करने की इजाजत नहीं थी. गांव में परम्परा बन गई कि महिलाओं का चुनाव से दूर रखा जाए.
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2009 के लोकसभा चुनाव में उठा था मुद्दा
2009 के लोकसभा चुनावों में तमाम समाजसेवी संगठन और जिला प्रशासन के अफसरों ने महिलाओं को वोट डालने के लिए प्रेरित किया था. काफी प्रयास करने के बाद भी गांव आंगनबाड़ी और रसोइयों ने वोट डाला था. गांव की अन्य महिलाएं घर की दहलीज पार कर मतदान स्थल तक नहीं आई थी. लगातार जिला प्रशासन के प्रयास के बाद सेहरुआ गांव में महिलाओं ने वोट डालना शुरू किया. हालांकि तमाम बंदिशों में बंधी महिलाएं कैमरे पर बोलने से डरती हैं, पर अब वह वोट की ताकत को जरूर पहचान गई है.
गांव की अनीशा कहती है वोट डालना अच्छा लगता है. सेहरुआ गांव की पम्पी और हेमतला कहती हैं वोट हमारा अधिकार है. वोट में पावर तो होता ही है. गांव की रहने वाली साठ साल की राधा को घर की चौखट पार करने की इजाजत नहीं थी. राधा सोमवार को पहली बार घर की दहलीज पार कर वोट करने गांव के स्कूल पहुंची. 65 साल की खालिदा भी वोट डालकर खुश हैं. कहती हैं वोट डालकर अच्छा लग रहा है.