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दुधवा टाइगर रिजर्व में जंगली हाथियों की होगी डीएनए सैंपलिंग से गणना - MSTrIPES ऐप

दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि जंगली हाथियों के गोबर इकट्ठा कर डीएनए सैंपलिंग की जाएगी. उन्होंने कहा कि दुधवा फील्ड स्टाफ डीएनए विश्लेषण और अध्ययन के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान को भेजे जाने वाले हाथियों के गोबर के नए नमूने एकत्र करने में लगे हुए हैं.

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Published : Apr 5, 2022, 2:08 PM IST

लखीमपुर खीरी: जिले के दुधवा टाइगर रिजर्व में इस साल जंगली हाथियों की गिनती का काम शुरू होने जा रहा है और इनकी गिनती डीएनए सैंपलिंग के जरिए किए जाने की बात कही गई है. दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि जंगली हाथियों के गोबर इकट्ठा कर डीएनए सैंपलिंग की जाएगी. उन्होंने कहा कि दुधवा फील्ड स्टाफ डीएनए विश्लेषण और अध्ययन के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान को भेजे जाने वाले हाथियों के गोबर के नए नमूने एकत्र करने में लगे हुए हैं. आम तौर पर जंगली हाथियों की गिनती उनकी शारीरिक आकार को देखकर होती है और उनका डेटा MSTrIPES ऐप पर अपलोड कर दिया जाता है.

खैर, इस बार जब बाघों की संख्या के आकलन के साथ-साथ हाथियों की आबादी का आकलन भी किया जा रहा है. डीटीआर अधिकारियों ने अपने डीएनए विश्लेषण के माध्यम से जंगली हाथियों की संख्या का आकलन करने का निर्णय लिया है. एफडी (Field Director) संजय पाठक ने कहा कि किशनपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में 72 जंगली हाथियों के नमूने एकत्र किए गए हैं और डब्ल्यूआईआई को भेजे गए हैं. फिलहाल दुधवा, कतर्नियाघाट और बफर जोन के क्षेत्रों में ये काम जारी है.

इसे भी पढ़ें - एलडीए का चुनिंदा अवैध निर्माणों पर सेट हुआ टारगेट, बिल्डर को बचाने को ऐसे चलता है घूस का खेल

पाठक ने आगे बताया कि डीएनए अध्ययन के माध्यम से जीन सीक्वेंसिंग (gene sequencing) न केवल एक व्यक्तिगत जंगली हाथी की पहचान और उनकी सटीक संख्या का पता लगाने में मदद करेगा, बल्कि यह जंगली हाथियों के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के अध्ययन में भी मददगार साबित होगा. बता दें कि दुधवा टाइगर रिजर्व में नेपाल से हर साल घुमंतू हाथियों का दल भारी तादात में आता है, जो नेपाल के शुक्लाफांटा और वर्दिया नेशनल पार्क से तराई कॉरिडोर से होते हुए भारतीय इलाके के दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के रास्ते उत्तराखंड की जंगलों में जाते हैं. पिछले कुछ सालों से ये जंगली हाथी दुधवा के ही होकर रह गए हैं. दुधवा में हाथियों और उनके शावकों को मिली सुरक्षा और बेहतर पर्यावारण की वजह से हाथियों को दुधवा की आबोहवा भा गई है.

दुधवा के फील्ड डायरेक्टर ने कहा कि जंगली हाथियों की आबादी का अनुमान लगाने के अलावा डीएनए अध्ययन से एक क्षेत्र में उनकी आबादी की कनेक्टिविटी के बारे में भी पता चल सकेगा. इसके लिए हमने साइंटिफिक विधि को अपनाया है. उन्होंने कहा कि यह जंगली हाथियों के भोजन पैटर्न, प्रजनन, स्वास्थ्य का अध्ययन करने में भी मदद करेगा जो जंगली टस्करों के प्रबंधन और संरक्षण और उनके जंगल की वेजिटेशन में हाथियों की पसंद नापसंद के अध्धययन में भी मदद करेगा.

वहीं, दुधवा टाइगर रिजर्व में जंगली हाथियों के 2018 में हुए आकलन के दौरान वहां 149 जंगली हाथियों के रहने की सूचना मिली थी. इस संख्या में दुधवा में गश्त, मानव-पशु संघर्ष से निपटने, पर्यटन और डीटीआर में अन्य पार्क गतिविधियों के लिए रखे गए 26 घरेलू हाथियों को शामिल नहीं किया गया है. विशेष रूप से दुधवा, कतर्नियाघाट, किशनपुर, पीलीभीत टाइगर रिजर्व और बफर जोन सहित पूरे तराई क्षेत्र में पड़ोसी नेपाल के आसपास के वन क्षेत्रों में जंगली हाथियों के लिए एक आदर्श गलियारा है.

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लखीमपुर खीरी: जिले के दुधवा टाइगर रिजर्व में इस साल जंगली हाथियों की गिनती का काम शुरू होने जा रहा है और इनकी गिनती डीएनए सैंपलिंग के जरिए किए जाने की बात कही गई है. दुधवा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने बताया कि जंगली हाथियों के गोबर इकट्ठा कर डीएनए सैंपलिंग की जाएगी. उन्होंने कहा कि दुधवा फील्ड स्टाफ डीएनए विश्लेषण और अध्ययन के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान को भेजे जाने वाले हाथियों के गोबर के नए नमूने एकत्र करने में लगे हुए हैं. आम तौर पर जंगली हाथियों की गिनती उनकी शारीरिक आकार को देखकर होती है और उनका डेटा MSTrIPES ऐप पर अपलोड कर दिया जाता है.

खैर, इस बार जब बाघों की संख्या के आकलन के साथ-साथ हाथियों की आबादी का आकलन भी किया जा रहा है. डीटीआर अधिकारियों ने अपने डीएनए विश्लेषण के माध्यम से जंगली हाथियों की संख्या का आकलन करने का निर्णय लिया है. एफडी (Field Director) संजय पाठक ने कहा कि किशनपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में 72 जंगली हाथियों के नमूने एकत्र किए गए हैं और डब्ल्यूआईआई को भेजे गए हैं. फिलहाल दुधवा, कतर्नियाघाट और बफर जोन के क्षेत्रों में ये काम जारी है.

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पाठक ने आगे बताया कि डीएनए अध्ययन के माध्यम से जीन सीक्वेंसिंग (gene sequencing) न केवल एक व्यक्तिगत जंगली हाथी की पहचान और उनकी सटीक संख्या का पता लगाने में मदद करेगा, बल्कि यह जंगली हाथियों के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के अध्ययन में भी मददगार साबित होगा. बता दें कि दुधवा टाइगर रिजर्व में नेपाल से हर साल घुमंतू हाथियों का दल भारी तादात में आता है, जो नेपाल के शुक्लाफांटा और वर्दिया नेशनल पार्क से तराई कॉरिडोर से होते हुए भारतीय इलाके के दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के रास्ते उत्तराखंड की जंगलों में जाते हैं. पिछले कुछ सालों से ये जंगली हाथी दुधवा के ही होकर रह गए हैं. दुधवा में हाथियों और उनके शावकों को मिली सुरक्षा और बेहतर पर्यावारण की वजह से हाथियों को दुधवा की आबोहवा भा गई है.

दुधवा के फील्ड डायरेक्टर ने कहा कि जंगली हाथियों की आबादी का अनुमान लगाने के अलावा डीएनए अध्ययन से एक क्षेत्र में उनकी आबादी की कनेक्टिविटी के बारे में भी पता चल सकेगा. इसके लिए हमने साइंटिफिक विधि को अपनाया है. उन्होंने कहा कि यह जंगली हाथियों के भोजन पैटर्न, प्रजनन, स्वास्थ्य का अध्ययन करने में भी मदद करेगा जो जंगली टस्करों के प्रबंधन और संरक्षण और उनके जंगल की वेजिटेशन में हाथियों की पसंद नापसंद के अध्धययन में भी मदद करेगा.

वहीं, दुधवा टाइगर रिजर्व में जंगली हाथियों के 2018 में हुए आकलन के दौरान वहां 149 जंगली हाथियों के रहने की सूचना मिली थी. इस संख्या में दुधवा में गश्त, मानव-पशु संघर्ष से निपटने, पर्यटन और डीटीआर में अन्य पार्क गतिविधियों के लिए रखे गए 26 घरेलू हाथियों को शामिल नहीं किया गया है. विशेष रूप से दुधवा, कतर्नियाघाट, किशनपुर, पीलीभीत टाइगर रिजर्व और बफर जोन सहित पूरे तराई क्षेत्र में पड़ोसी नेपाल के आसपास के वन क्षेत्रों में जंगली हाथियों के लिए एक आदर्श गलियारा है.

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