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खादी ग्रामोद्योग योजना: चरखा चलाकर 250 महिलाएं चला रहीं परिवार का खर्च

कुशीनगर जिले में खादी ग्राम उद्योग से जुड़कर एक गांव के 250 से ज्यादा परिवार की महिलाएं 8 से 10 हजार रुपए कमा रही हैं. और ये सब संभव हुआ है उस गांव के रहने वाले एक शख्स की पहल पर. देखिए ये खास रिपोर्ट...

खादी ग्रामोद्योग योजना
खादी ग्रामोद्योग योजना
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Published : Aug 21, 2021, 4:14 PM IST

कुशीनगर : सरकार की योजनाओं के जरिए यदि सही दिशा में काम किया जाए, तो अपने साथ-साथ आसपास के गरीब परिवारों का भी सहारा बना जा सकता है. जहां एक तरफ सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में अक्सर भ्रष्टाचार और घोटाले की खबरें सामने आती रहती हैं. वहीं कुशीनगर जिले के पंकज पाण्डेय ने खादी ग्रामोद्योग से जुड़कर सूक्ष्म-लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजना को सही रूप देकर, आज अपने साथ-साथ इलाके के 250 से ज्यादा परिवारों को रोजगार दिए हुए हैं. खास बात तो यह है कि पंकज के अपने गांव में किए इस पहल से, सबसे ज्यादा लाभ ग्रामीण महिलाओं को हो रहा है. ये महिलाएं अपने घर का काम करने के बाद, महीने के 8 से 10 हजार रुपये अपने घर बैठ कमा ले रही हैं.


आप को बता दें, देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंगेजों से लड़ाई के समय स्वदेशी अपनाने का नारा देकर चरखा चलाया. उस समय अंग्रेजों की नीद हराम करने वाला चरखा और खादी उद्योग को कुशीनगर जिला मानों भूलता जा रहा था. लेकिन फाजिलनगर के सटे सपहा गांव निवासी पंकज पाण्डेय ने 1997 से 2010 तक खादी ग्रामोद्योग से जुड़कर काम किया. फिर खादी की अलख अपने गांव और इलाके में जगाने की सोच के साथ अपने गांव लौटे. उसके बाद खादी ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की नींव रखी, जिसे लकड़ी के 15 चरखों के साथ, गांव की महिला मजदूरों की मदद से इसे शुरू किया.

खादी ग्रामोद्योग योजना से 250 महिलाओं को मिला रोजगार


शुरुआती मुश्किलों को झेलते हुए पूरी लगन से काम करने के बाद 2016 में विभाग ने खादी ग्राम उद्योग सेवा संस्थान की सुध ली और न्यू मॉडल के 25 चरखे दिए. धीरे-धीरे इसी तरह करते हुए आज खादी ग्राम उद्योग सेवा संस्थान के पास 200 आधुनिक चरखे, 50 पुराने चरखे भी हैं. अगर कुल आंकड़ों की बात करें तो आज खादी ग्राम उद्योग कि इस इकाई में 250 से ज्यादा महिलाएं कार्य करती हैं, और आज अपने परिवार को चलाने में मदद कर रही हैं.

कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लगे लॉकडाउन में प्रदेशों से लोगों का पलायन शुरू हुआ, तो उनके साथ परिवार को चलाने का आर्थिक संकट भी शुरू हुआ. पर जो महिलाएं खादी ग्रामोद्योग सेवा संस्थान से जुड़ी हुई हैं, उन्होंने इस विषम परिस्थिति में भी अपने परिवार को संभाला. महिलाओं का कहना है, खादी ग्रामोद्योग से उनको बहुत मदद मिलती हैं. अपने खाली समय को सदुपयोग करके, हम कुछ कमा लेते हैं जिससे हमारे परिवार को बहुत मदद मिलती है. गांव में घर के पास ही काम मिलने से हमें बहुत खुशी हैं. हालांकि कोरोना काल में एक महीने के लिए कारोबार बंद था, पर संस्थान की मदद से हमें दिक्कत नहीं हुई.

इसे भी पढ़ें- यूपी में मिशन शक्ति के तीसरे चरण का शुभारंभ, लाभार्थी महिलाएं सम्मानित

मीडिया से बात करते समय पंकज पाण्डेय ने बताया कि आज उनके साथ 200 से ज्यादा महिलाएं सेवा संस्थान में काम करती हैं. जो महिलाएं अपने घर से नहीं आ सकती हैं, उनके लिए सेवा संस्थान उनके घर पर ही चरखा देकर काम कराता है. आज इन्हीं सभी स्टाफ की मदद से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 300 परिवार जुड़े हैं. साथ ही इन्हीं की मेहनत और विभाग के सहयोग के कारण बड़ी मुश्किल से 25 लाख प्रतिवर्ष का कारोबार, आज 4 करोड़ प्रतिवर्ष का कारोबार हो गया है.

कुशीनगर : सरकार की योजनाओं के जरिए यदि सही दिशा में काम किया जाए, तो अपने साथ-साथ आसपास के गरीब परिवारों का भी सहारा बना जा सकता है. जहां एक तरफ सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में अक्सर भ्रष्टाचार और घोटाले की खबरें सामने आती रहती हैं. वहीं कुशीनगर जिले के पंकज पाण्डेय ने खादी ग्रामोद्योग से जुड़कर सूक्ष्म-लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजना को सही रूप देकर, आज अपने साथ-साथ इलाके के 250 से ज्यादा परिवारों को रोजगार दिए हुए हैं. खास बात तो यह है कि पंकज के अपने गांव में किए इस पहल से, सबसे ज्यादा लाभ ग्रामीण महिलाओं को हो रहा है. ये महिलाएं अपने घर का काम करने के बाद, महीने के 8 से 10 हजार रुपये अपने घर बैठ कमा ले रही हैं.


आप को बता दें, देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंगेजों से लड़ाई के समय स्वदेशी अपनाने का नारा देकर चरखा चलाया. उस समय अंग्रेजों की नीद हराम करने वाला चरखा और खादी उद्योग को कुशीनगर जिला मानों भूलता जा रहा था. लेकिन फाजिलनगर के सटे सपहा गांव निवासी पंकज पाण्डेय ने 1997 से 2010 तक खादी ग्रामोद्योग से जुड़कर काम किया. फिर खादी की अलख अपने गांव और इलाके में जगाने की सोच के साथ अपने गांव लौटे. उसके बाद खादी ग्रामोद्योग सेवा संस्थान की नींव रखी, जिसे लकड़ी के 15 चरखों के साथ, गांव की महिला मजदूरों की मदद से इसे शुरू किया.

खादी ग्रामोद्योग योजना से 250 महिलाओं को मिला रोजगार


शुरुआती मुश्किलों को झेलते हुए पूरी लगन से काम करने के बाद 2016 में विभाग ने खादी ग्राम उद्योग सेवा संस्थान की सुध ली और न्यू मॉडल के 25 चरखे दिए. धीरे-धीरे इसी तरह करते हुए आज खादी ग्राम उद्योग सेवा संस्थान के पास 200 आधुनिक चरखे, 50 पुराने चरखे भी हैं. अगर कुल आंकड़ों की बात करें तो आज खादी ग्राम उद्योग कि इस इकाई में 250 से ज्यादा महिलाएं कार्य करती हैं, और आज अपने परिवार को चलाने में मदद कर रही हैं.

कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लगे लॉकडाउन में प्रदेशों से लोगों का पलायन शुरू हुआ, तो उनके साथ परिवार को चलाने का आर्थिक संकट भी शुरू हुआ. पर जो महिलाएं खादी ग्रामोद्योग सेवा संस्थान से जुड़ी हुई हैं, उन्होंने इस विषम परिस्थिति में भी अपने परिवार को संभाला. महिलाओं का कहना है, खादी ग्रामोद्योग से उनको बहुत मदद मिलती हैं. अपने खाली समय को सदुपयोग करके, हम कुछ कमा लेते हैं जिससे हमारे परिवार को बहुत मदद मिलती है. गांव में घर के पास ही काम मिलने से हमें बहुत खुशी हैं. हालांकि कोरोना काल में एक महीने के लिए कारोबार बंद था, पर संस्थान की मदद से हमें दिक्कत नहीं हुई.

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मीडिया से बात करते समय पंकज पाण्डेय ने बताया कि आज उनके साथ 200 से ज्यादा महिलाएं सेवा संस्थान में काम करती हैं. जो महिलाएं अपने घर से नहीं आ सकती हैं, उनके लिए सेवा संस्थान उनके घर पर ही चरखा देकर काम कराता है. आज इन्हीं सभी स्टाफ की मदद से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 300 परिवार जुड़े हैं. साथ ही इन्हीं की मेहनत और विभाग के सहयोग के कारण बड़ी मुश्किल से 25 लाख प्रतिवर्ष का कारोबार, आज 4 करोड़ प्रतिवर्ष का कारोबार हो गया है.

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