कौशांबी : कड़ा स्थित शक्ति की आराध्य देवी मां शीतला के परिसर में लगने वाला गधा मेला देश ही नहीं, दुनिया में आकर्षण का केंद्र है. सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी अपने उसी मौलिक स्वरूप में लोगों के सामने है. यहां देश के कोने-कोने से रजक कलंदर और सपेरा समाज के लोग अपने गधा, खच्चर व घोड़ों को बेचने और खरीदने के लिए लाते हैं.
इस मेले में इन जानवरों को संजाने-संवारने का सामान भी दुकानों में मौजूद रहता है. पंडा और धोबी समाज के लोग संयुक्त रूप से इस मेले का आयोजन करते हैं. मेले में जुटे धोबी समाज के तमाम लोग अपने लड़के व लड़कियों का रिश्ता भी तय करते हैं. मान्यता है कि शीतला धाम में तय किया गया रिश्ता अटूट होता है.
मेला आयोजन समिति के सदस्य विनय पांडेय के मुताबिक, कड़ा धाम शक्ति की आराध्य देवी मां शीतला के मंदिर परिसर में गर्दभ का मेला शीतला अष्टमी को लगता है. दूर-दूर और दूसरे जिलों से लोग आते हैं. यहां पर गधा मेहनत का प्रतीक माना जाता है. जो मां शीतला की सवारी भी है. इसकी लोग पूजा भी करते हैं. इस बार 95 हजार का गधा बिका हुआ है, जिसे प्रतापगढ़ के शकील अहमद ने लिया है. बाहर से कलंदर समाज धोबी समाज के लोग यहां आते हैं. अपने बेटी-बेटा का शादी भी तय करते हैं. गर्दभ खरीदते हैं. मां शीतला का दर्शन पूजन करते हैं और गंगा स्नान करते हैं.
क्यों है यहां गधे की मान्यता
मां शीतला मंदिर के पुजारी मदन लाल किंकरके मुताबिक, मां शीतला का वाहन गर्दभ है. मां शीतला अष्टक के संस्कृत श्लोक का उच्चारण कर उन्होंने प्रमाण स्वरुप बताया कि मां शीतला का वाहन खच्चर है. अपभृंश में लोग गर्दभ को गधा कहते हैं. यह जो गधा मेला लगता है, इसको कोई भी इतिहासकार, बुजुर्ग यह नहीं बता सकता कि यह किस तारीख से लगता है.
गधे मेले में अपने जानवर के साथ आए राम नरेश के मुताबिक, वह पिछले 10 सालों से अपने जानवरों को लेकर यहां आते हैं. अपने खच्चर की कीमत उन्होंने एक लाख लगाई है.कौशांबी के गर्दभ मेले की खासियत यह है कि यहां के गधों व खच्चरों को जम्मू कश्मीर के व्यापारी अधिक पसंद करते हैं. मेले में किसी के जानवर दूसरे जानवरों की झुंड में खो न जाएं, इसी लिए इनके ऊपर रंगों से विशेष निशान बनाए जाते हैं.