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कौशांबी : शीतला देवी मंदिर में लगता है गधों का मेला, लाखों में होती है कीमत

कौशांबी के कड़ा स्थित मां शीतला देवी मंदिर में सालों से गर्दभ यानि की गधा मेला लगता आ रहा है. मां शीतला देवी की सवारी होने से यहां पर इसकी पूजा भी की जाती है. इस मेले में गधे और खच्चर लाखों रुपयों में बेचे और खरीदे जाते हैं.

लाखों में बेंचे और खरीदे जाते हैं इस मेले में खच्चर
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Published : Mar 30, 2019, 8:14 PM IST

कौशांबी : कड़ा स्थित शक्ति की आराध्य देवी मां शीतला के परिसर में लगने वाला गधा मेला देश ही नहीं, दुनिया में आकर्षण का केंद्र है. सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी अपने उसी मौलिक स्वरूप में लोगों के सामने है. यहां देश के कोने-कोने से रजक कलंदर और सपेरा समाज के लोग अपने गधा, खच्चर व घोड़ों को बेचने और खरीदने के लिए लाते हैं.

इस मेले में इन जानवरों को संजाने-संवारने का सामान भी दुकानों में मौजूद रहता है. पंडा और धोबी समाज के लोग संयुक्त रूप से इस मेले का आयोजन करते हैं. मेले में जुटे धोबी समाज के तमाम लोग अपने लड़के व लड़कियों का रिश्ता भी तय करते हैं. मान्यता है कि शीतला धाम में तय किया गया रिश्ता अटूट होता है.

लाखों में बेंचे और खरीदे जाते हैं इस मेले में खच्चर

मेला आयोजन समिति के सदस्य विनय पांडेय के मुताबिक, कड़ा धाम शक्ति की आराध्य देवी मां शीतला के मंदिर परिसर में गर्दभ का मेला शीतला अष्टमी को लगता है. दूर-दूर और दूसरे जिलों से लोग आते हैं. यहां पर गधा मेहनत का प्रतीक माना जाता है. जो मां शीतला की सवारी भी है. इसकी लोग पूजा भी करते हैं. इस बार 95 हजार का गधा बिका हुआ है, जिसे प्रतापगढ़ के शकील अहमद ने लिया है. बाहर से कलंदर समाज धोबी समाज के लोग यहां आते हैं. अपने बेटी-बेटा का शादी भी तय करते हैं. गर्दभ खरीदते हैं. मां शीतला का दर्शन पूजन करते हैं और गंगा स्नान करते हैं.

क्यों है यहां गधे की मान्यता
मां शीतला मंदिर के पुजारी मदन लाल किंकरके मुताबिक, मां शीतला का वाहन गर्दभ है. मां शीतला अष्टक के संस्कृत श्लोक का उच्चारण कर उन्होंने प्रमाण स्वरुप बताया कि मां शीतला का वाहन खच्चर है. अपभृंश में लोग गर्दभ को गधा कहते हैं. यह जो गधा मेला लगता है, इसको कोई भी इतिहासकार, बुजुर्ग यह नहीं बता सकता कि यह किस तारीख से लगता है.

गधे मेले में अपने जानवर के साथ आए राम नरेश के मुताबिक, वह पिछले 10 सालों से अपने जानवरों को लेकर यहां आते हैं. अपने खच्चर की कीमत उन्होंने एक लाख लगाई है.कौशांबी के गर्दभ मेले की खासियत यह है कि यहां के गधों व खच्चरों को जम्मू कश्मीर के व्यापारी अधिक पसंद करते हैं. मेले में किसी के जानवर दूसरे जानवरों की झुंड में खो न जाएं, इसी लिए इनके ऊपर रंगों से विशेष निशान बनाए जाते हैं.

कौशांबी : कड़ा स्थित शक्ति की आराध्य देवी मां शीतला के परिसर में लगने वाला गधा मेला देश ही नहीं, दुनिया में आकर्षण का केंद्र है. सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी अपने उसी मौलिक स्वरूप में लोगों के सामने है. यहां देश के कोने-कोने से रजक कलंदर और सपेरा समाज के लोग अपने गधा, खच्चर व घोड़ों को बेचने और खरीदने के लिए लाते हैं.

इस मेले में इन जानवरों को संजाने-संवारने का सामान भी दुकानों में मौजूद रहता है. पंडा और धोबी समाज के लोग संयुक्त रूप से इस मेले का आयोजन करते हैं. मेले में जुटे धोबी समाज के तमाम लोग अपने लड़के व लड़कियों का रिश्ता भी तय करते हैं. मान्यता है कि शीतला धाम में तय किया गया रिश्ता अटूट होता है.

लाखों में बेंचे और खरीदे जाते हैं इस मेले में खच्चर

मेला आयोजन समिति के सदस्य विनय पांडेय के मुताबिक, कड़ा धाम शक्ति की आराध्य देवी मां शीतला के मंदिर परिसर में गर्दभ का मेला शीतला अष्टमी को लगता है. दूर-दूर और दूसरे जिलों से लोग आते हैं. यहां पर गधा मेहनत का प्रतीक माना जाता है. जो मां शीतला की सवारी भी है. इसकी लोग पूजा भी करते हैं. इस बार 95 हजार का गधा बिका हुआ है, जिसे प्रतापगढ़ के शकील अहमद ने लिया है. बाहर से कलंदर समाज धोबी समाज के लोग यहां आते हैं. अपने बेटी-बेटा का शादी भी तय करते हैं. गर्दभ खरीदते हैं. मां शीतला का दर्शन पूजन करते हैं और गंगा स्नान करते हैं.

क्यों है यहां गधे की मान्यता
मां शीतला मंदिर के पुजारी मदन लाल किंकरके मुताबिक, मां शीतला का वाहन गर्दभ है. मां शीतला अष्टक के संस्कृत श्लोक का उच्चारण कर उन्होंने प्रमाण स्वरुप बताया कि मां शीतला का वाहन खच्चर है. अपभृंश में लोग गर्दभ को गधा कहते हैं. यह जो गधा मेला लगता है, इसको कोई भी इतिहासकार, बुजुर्ग यह नहीं बता सकता कि यह किस तारीख से लगता है.

गधे मेले में अपने जानवर के साथ आए राम नरेश के मुताबिक, वह पिछले 10 सालों से अपने जानवरों को लेकर यहां आते हैं. अपने खच्चर की कीमत उन्होंने एक लाख लगाई है.कौशांबी के गर्दभ मेले की खासियत यह है कि यहां के गधों व खच्चरों को जम्मू कश्मीर के व्यापारी अधिक पसंद करते हैं. मेले में किसी के जानवर दूसरे जानवरों की झुंड में खो न जाएं, इसी लिए इनके ऊपर रंगों से विशेष निशान बनाए जाते हैं.

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30MAR-UP-KAUSHAMBI-SATYENDRA-DONKEY FAIR ke naam se bheji hai

ANCHOR-- कौशाम्बी में कड़ा स्थित शक्ति की आराध्य देवी माँ शीतला के परिसर में लगने वाला गधा मेला देश और दुनिया में आकर्षण का केंद्र है | सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी अपने उसी मौलिक स्वरूप में लोगो के सामने है | यहाँ देश के कोने कोने से रजक कलंदर और सपेरा समाज के लोग अपने जानवर गधा, खच्चर, व् घोड़ो को बेचने और खरीदने के लिए लाते है | इस मेले में इन जानवरो को सजाने सवारने का सामान भी दुकानों में मौजूद रहता है | पण्डा और धोबी समाज के लोग संयुक्त रूप से इस मेले का आयोजन करते है | मेले में जुटे धोबी समाज के तमाम लोग अपने लडके व लड़कियों का रिश्ता भी तय करते है| मान्यता है कि शीतला धाम में तय किया गया रिश्ता अटूट होता है |





Body:VO-01-- मेले के आयोजन समिति के सदस्य विनय पांडेय के मुताबिक कड़ा धाम शक्ति की आराध्य देवी माँ शीतला के मंदिर परिसर में गर्दभ का मेला शीतला अष्टमी को लगता है | दूर दूर और दूसरे जिलों से लोग आते है | यहाँ पर गधा मेहनत का प्रतीक माना जाता है जो माँ शीतला की सवारी भी है | इसकी हम लोग पूजा भी करते है | इस बार 95 हज़ार का गधा बिका हुआ है जिसे प्रतापगढ़ के शकील अहमद ने लिया है | बाहर बाहर से कलन्दर समाज धोबी समाज के लोग यहाँ आते है | अपने बेटी बेटा का शादी भी तय करते है | गर्दभ खरीदते है माँ शीतला का दर्शन पूजन करते है गंगा स्नान भी करते है | 


BYTE--विनय पांडेय, सदस्य, गर्दभ मेला आयोजन समिति, कौशाम्बी  


VO-02-- माँ शीतला मंदिर के पुजारी मदन लाल किंकर  के मुताबिक माँ शीतला का वाहन गर्दभ है | माँ शीतला अष्टक के सस्कृत श्लोक का उच्चारण कर उन्होंने प्रमाण स्वरुप बताया कि माँ शीतला का वाहन खच्चर है | अपभृंश में लोग गर्दभ को गधा शब्द का इस्तेमाल करते है | यह जो गधा मेला लगता है इसको कोई भी इतिहासकार, बुजुर्ग यह नहीं बता सकता कि यह किस डेट से लगता है | माता अनादि है इसलिए उनका खच्चर वाहन भी अनादि है, इस अनादिता के साथ-साथ यह मेला भी अनादि है | इसकी कोई डेट निश्चित नहीं की कब से लगता है | 


BYTE-- मदन लाल किंकर 


VO-03-- गधा मेले में अपने जानवर के साथ आये राम नरेश के मुताबिक वह पिछले 10 सालो से अपने जानवरो को लेकर यहाँ आते है | इस बार भी आये है | अपने खच्चर की कीमत उन्होंने एक लाख लगाई है | एक खरीददार 85 हज़ार दे रहा था, सौदा अभी तय नहीं हुया है | उसने इस जानवर की कीमत 95 हज़ार लगाईं है | 


BYTE-- राम नरेश, मेले में जानवर लेकर आया शख्स 

 




Conclusion:कौशाम्बी के गर्दभ मेले की खासियत यह है कि यहाँ के गधो व खच्चरों को जम्मू कश्मीर के व्यापारी अधिक पसंद करते है | मेले में किसी में जानवर दूसरे जानवरों की झुंड में खो न जाये इसी लिए इनके ऊपर रंगों से विशेष निशान बनाये जाते है | मेले बारे में कहा जाता है पौराणिक मान्यता के मुताबिक गदर्भ (गधा)  देवी शीतला की सवारी है इसी लिए कड़ा शीतला धाम में ऐसा मेला लगता है| इस तरह का अलबेला गधों का मेला और कहीं नहीं लगता है | इस मेले में  राजस्थान , बिहार , म.प्र. , जैसे कई राज्यों के लोग आते है | यहाँ काफी महगे जानवर बिकते है जिनकी कीमत हजारो में होती है | तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में गधा, खच्चर व घोड़ों की खरीद फरोक्त की संख्या हजारों में पहुँच जाती है| यहाँ पर सबसे अधिक "टीपू" नस्ल के खच्चर की खरीद फरोक्त होती है। "टीपू" नस्ल के वही खच्चर व्यापारियों को पसंद होतें है, जिनकी लम्बाई साढ़े छह बालिस (बिस्ता) होती है। मेले में जुटे धोबी समाज के तमाम लोग अपने लडके व लड़कियों का रिश्ता भी तय करते है| मान्यता है कि शीतला धाम में तय किया गया रिश्ता अटूट होता है |




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SATYENDRA KHARE
      KAUSHAMBI
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