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जानिए यूपी के किस गांव में चोरी हुई थी प्रभु श्रीराम की चरण पादुका - चरवां गांव

शैव और वैष्णव भक्ति का अनोखा संगम भी देखने को मिलता है भगवान राम के धाम चोर तीर्थ में. श्रंगवेरपुर से वनवासी वेश धारण करने के बाद भगवान राम ने पहला शिवलिंग भी कौशांबी के इसी चोरधाम में स्थापित किया था. यही वजह है कि यह स्थान शैव और वैष्णव भक्ति के मिलन का आदि संगम भी बन गया है.

राम चोर तीर्थ
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Published : Apr 12, 2019, 12:41 PM IST

कौशांबी : संस्कार और मानव मूल्यों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम का एक तीर्थ ऐसा भी है, जो उनके चोर तीर्थ के रूप में जाना जाता है. यूपी के कौशांबी का चरवा गांव इसी तीर्थ के नाम से जाना जाता है. भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास पर जाते समय एक दिन कौशांबी के इसी चरवा के बड़हरी के जंगल में भी गुजारा था. बड़हरी के जंगलों में भगवान राम ने जिस सरोवर के पास बरगद के पेड़ के नीचे रुक कर विश्राम किया था, वह आज राम जोइथा सरोवर के नाम से जाना जाता है.

चरवा गांव में चोरी हुई थी प्रभु श्रीराम की चरण पादुका.

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अवशेष के रूप में आज भी उस स्थान पर बरगद का पेड़ मौजूद है. यहां पर एक चबूतरा भी बना है, जिसमें भगवान राम की चरण पादुका के चिह्न भी मौजूद हैं. साधु-महात्मा उस चरण पादुका की पूजा-अर्चना भी करते हैं.

बताते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम माता कैकेई के वरदान और पिता दशरथ के वचन को पूरा करने के लिए अयोध्या से श्रृंगवेरपुर के गंगा घाट पर पहुंचे. अगले दिन नाव से गंगा पार कर वत्स राज्य की धरती कुबरी घाट पर उतरे. इसके बाद राम, लक्ष्मण और सीता ने पहली बार भीषण और घने बड़हरी जंगल के इसी सरोवर के तट पर बरगद के नीचे रात्रि विश्राम किया. सुबह जब राम अपने लक्ष्मण और सीता के साथ प्रयागराज के लिए जाने लगे, तब उनकी खड़ाऊं रखे गए स्थान से गायब मिली. रामायण और राम चरित्र के ग्रंथों की माने तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनकी खड़ाऊं चुरा ली तो गांव वाले प्रभु श्रीराम से इसी स्थान पर रुक जाने का विनय करने लगे. तभी से इस स्थान का नाम चोरवा के नाम से विख्यात हो गया. यह समय के साथ अपभ्रंश रूप में आज कौशांबी जिले के चरवा गांव के नाम से जाना जाता है.

श्रीराम विश्राम स्थल के महत्व के विषय में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में बड़े सुंदर ढंग से चौपाई का उदाहरण किया है 'तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखां सब कीन्ह सुपासू॥ प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई॥' जब निषादराज केवट के साथ भगवान प्रभु श्री राम छोटे भाई लक्ष्मण और मां जानकी जी के साथ गंगा पार करके जब पद यात्रा की तो वनगमन के प्रथम स्थान जहां श्रीराम ने पहला विश्राम किया, यह विश्राम स्थल वही है. यहां पर भगवान राम एक रात्रि निवास करके प्रातः काल पूजा-पाठ करके तब प्रयागराज को प्रस्थान करते हैं. वाल्मीकि रामायण में भी इसका उदाहरण मिलता है. 'तेतू तस्मिन माह वृक्षे, कुस्तव रजनीश शुभाम।' तो वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों के महत्व को देखते हुए ये निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है.

चोर तीर्थ में ही श्रीराम ने की थी पहले शिवलिंग की स्थापना
शैव और वैष्णव भक्ति का अनोखा संगम भी देखने को मिलता है भगवान राम के धाम चोर तीर्थ में. अपने वनवास के समय भगवान राम जहां-जहां गए हैं, उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना के लिए वहां-वहां शिवलिंग की स्थापना की है. श्रंगवेरपुर से वनवासी वेश धारण करने के बाद भगवान राम ने पहला शिवलिंग भी कौशांबी के इसी चोरधाम में स्थापित किया था. यही वजह है कि यह स्थान शैव और वैष्णव भक्ति के मिलन का आदि संगम भी बन गया है.

कौशांबी : संस्कार और मानव मूल्यों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम का एक तीर्थ ऐसा भी है, जो उनके चोर तीर्थ के रूप में जाना जाता है. यूपी के कौशांबी का चरवा गांव इसी तीर्थ के नाम से जाना जाता है. भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास पर जाते समय एक दिन कौशांबी के इसी चरवा के बड़हरी के जंगल में भी गुजारा था. बड़हरी के जंगलों में भगवान राम ने जिस सरोवर के पास बरगद के पेड़ के नीचे रुक कर विश्राम किया था, वह आज राम जोइथा सरोवर के नाम से जाना जाता है.

चरवा गांव में चोरी हुई थी प्रभु श्रीराम की चरण पादुका.

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अवशेष के रूप में आज भी उस स्थान पर बरगद का पेड़ मौजूद है. यहां पर एक चबूतरा भी बना है, जिसमें भगवान राम की चरण पादुका के चिह्न भी मौजूद हैं. साधु-महात्मा उस चरण पादुका की पूजा-अर्चना भी करते हैं.

बताते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम माता कैकेई के वरदान और पिता दशरथ के वचन को पूरा करने के लिए अयोध्या से श्रृंगवेरपुर के गंगा घाट पर पहुंचे. अगले दिन नाव से गंगा पार कर वत्स राज्य की धरती कुबरी घाट पर उतरे. इसके बाद राम, लक्ष्मण और सीता ने पहली बार भीषण और घने बड़हरी जंगल के इसी सरोवर के तट पर बरगद के नीचे रात्रि विश्राम किया. सुबह जब राम अपने लक्ष्मण और सीता के साथ प्रयागराज के लिए जाने लगे, तब उनकी खड़ाऊं रखे गए स्थान से गायब मिली. रामायण और राम चरित्र के ग्रंथों की माने तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनकी खड़ाऊं चुरा ली तो गांव वाले प्रभु श्रीराम से इसी स्थान पर रुक जाने का विनय करने लगे. तभी से इस स्थान का नाम चोरवा के नाम से विख्यात हो गया. यह समय के साथ अपभ्रंश रूप में आज कौशांबी जिले के चरवा गांव के नाम से जाना जाता है.

श्रीराम विश्राम स्थल के महत्व के विषय में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में बड़े सुंदर ढंग से चौपाई का उदाहरण किया है 'तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखां सब कीन्ह सुपासू॥ प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई॥' जब निषादराज केवट के साथ भगवान प्रभु श्री राम छोटे भाई लक्ष्मण और मां जानकी जी के साथ गंगा पार करके जब पद यात्रा की तो वनगमन के प्रथम स्थान जहां श्रीराम ने पहला विश्राम किया, यह विश्राम स्थल वही है. यहां पर भगवान राम एक रात्रि निवास करके प्रातः काल पूजा-पाठ करके तब प्रयागराज को प्रस्थान करते हैं. वाल्मीकि रामायण में भी इसका उदाहरण मिलता है. 'तेतू तस्मिन माह वृक्षे, कुस्तव रजनीश शुभाम।' तो वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों के महत्व को देखते हुए ये निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है.

चोर तीर्थ में ही श्रीराम ने की थी पहले शिवलिंग की स्थापना
शैव और वैष्णव भक्ति का अनोखा संगम भी देखने को मिलता है भगवान राम के धाम चोर तीर्थ में. अपने वनवास के समय भगवान राम जहां-जहां गए हैं, उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना के लिए वहां-वहां शिवलिंग की स्थापना की है. श्रंगवेरपुर से वनवासी वेश धारण करने के बाद भगवान राम ने पहला शिवलिंग भी कौशांबी के इसी चोरधाम में स्थापित किया था. यही वजह है कि यह स्थान शैव और वैष्णव भक्ति के मिलन का आदि संगम भी बन गया है.

Intro:ANCHOR--संस्कार और मानव मूल्यों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम का एक तीर्थ ऐसा भी है जो राम के चोरतीर्थ के रूप में जाना जाता है । उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जिले के चरवा गाँव इसी तीर्थ के नाम से जाना जाता है । भगवान राम ने अपने चौदह वर्ष के वनवास पर जाते समय एक दिन कौशाम्बी के इसी चरवा के बड़हरी के जंगल में भी गुजारे थे , चरवा के बड़हरी के जंगलो में भगवान राम जिस सरोवर के पास बरगद के पेड़ के नीचे रुक कर विश्राम करने लगे ,वह सरोवर आज राम जोइथा सरोवर के नाम से जाना जाता है ....मर्यादा पुरुषोत्तम राम के इस तीर्थ के अवशेष के रूप में आज भी उस स्थान पर बरगद का पेड़ मौजूद है  | बरगद के नीचे जिस जगह भगवान राम ने विश्राम किया वहा पर एक चबूतरा भी बना है जिसमे भगवान राम की चरण पादुका के चिन्ह भी मौजूद है , साधू महात्मा उस चरण पादुका की पूजा अर्चना भी करते हैं । 





Body:VO-01--धरती पर मानव आदर्श की स्थापना करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम राम जब माता कैकेई के वरदान और पिता दशरथ के वचन को पूरा करने के लिए जब सुमंत के साथ अयोध्या से श्रृंगवेरपुर के गंगा घाट पर रथ से पहुचे। लेकिन अगले दिन नाव से गंगा पार कर वत्स राज्य की धरती  .. कुबरी घाट पर उतरे तो राम लक्ष्मण और सीता ने पहली बार भीषण और घने बड़हरी जंगल के इसी सरोवर के तट पर ..इसी बरगद के नीचे रात्रि विश्राम किया । सुबह होते ही जब राम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ जब प्रयागराज के लिए जाने लगे ..तब उनके खडाहू रखे गए स्थान से गायब मिले । रामायण और राम चरित्र के ग्रंथो की माने तो गाँव के किसी व्यक्ति ने उनकी खड़ाहू चुरा ली और प्रभु श्रीराम को इसी स्थान पर रुक जाने का विनय करने लगे । तभी स्थान का नाम चोरवा के नाम से विख्यात हो गया ...जो समय के साथ अपभ्रंश रूप में आज कौशाम्बी जिले के चरवा के नाम से जाना जाता है ।


VO-02-- श्रीराम विश्राम स्थल के महत्व के विषय में गोस्वामी तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस में बड़े सुंदर ढंग से चौपाई का उदाहरण किया है "तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू॥ प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई॥"  जब निषादराज केवट के साथ भगवान प्रभुु श्री राम छोटे भाई लक्ष्मण व माँ जानकी जी के साथ गंगा पार करके जब पद यात्रा करते है तो वनगमन के प्रथम स्थान जहाँ श्रीराम पहला विश्राम किया यह विश्राम स्थलीय वही है। यहाँ पर भगवान राम एक रात्रि निवास करके प्रातः काल स्नान मंजन प्रातः कालीन पूजा पाठ करके तब प्रयागराज को प्रस्थान करते है । बाल्मीकि रामायण में भी इसका उदाहरण मिलता है ।" तेतू तस्मिन माह वृक्षे, कुस्तव रजनीश शुभाम।" तो बाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथो के महत्व को देखए हुए ये निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है।


Byte -  सत्यप्रकाश   घर्म शास्त्री 


Vo.- 03- सबसे ज्यादा प्रासंगिक विषय है कि भगवान राम की यहाँ पर भक्तों ने खड़ाऊ को क्यों चुराया। वस्तुतः उनका भावार्थ यह था कि भगवान एक दो दिन और रुक जाए और तब यहाँ से प्रस्थान करे।लेकिन भगवान राम की विवस्ता थी कि दूसरे ही दिन भरतद्वाज आश्रम को जाना था तो भक्तों ने उनकी चरण पादुका पूजनार्थ के लिए चुरा लिया । इसलिए यह गांव चोरवा के नाम से प्रसिद्ध हुआ जो कि आज अप्रभंश हो करके चरवा के नाम से प्रसिद्ध है।


Byte -  सत्यप्रकाश घर्म शास्त्री 





Conclusion:चोर तीर्थ में ही श्रीराम ने किया था पहले शिवलिंग की स्थापना


शैव और वैष्णव भक्ति का अनोखा संगम भी देखने को मिलता है भगवान् राम के अनूठे भक्तों के धाम चोर तीर्थ में ...| अपने वनवास के समय भगवान् राम जहां -जहां गए हैं उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना के लिए वहां -वहां शिवलिंग की स्थापना अवश्य की है श्रंगवेरपुर से वनवासी वेश धारण करने के बाद भगवान् राम ने पहला शिव लिंग भी कौशाम्बी के इस चोरधाम में स्थापित किया और यही वजह है की यह स्थान शैव और वैष्णव भक्ति के मिलन का आदि संगम भी बन गया है |   


 क्या कहते है भक्त 


वैष्णो धर्म और शैव धर्म दोनों के साथ आराधना होती है । हम लोग भगवान राम को अपना आराध्य मानते हैं और राम के आराध्य देव शिव थे।  ऐसा माना जाता है कि भगवान राम जहां जहां भी एक भी रात विश्राम किया तो उन्होंने अपने आराध्य शिव की स्थापना की। और यही एक अच्छा संगम है कि एक तरफ राम विश्राम स्थल है और उसके सामने भगवान शिव का एक भव्य मंदिर है और उसके लिंग मात्र के दर्शन से ही लोगो को अहसास हो जाता है कि ये कोई ज्योतिलिग से कम नही है । यहाँ दोनों का पहला संगम है । जो व्यक्ति यहाँ राम की पूजा करता है उसके बाद वह सीधे उसके सामने बने शिव के दर्शन करता है । ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने ही इस मंदिर की स्थापना की थी।


Byte- अनूप केशरवानी   भक्त


यहां भगवान श्री राम आए हैं। रात्रि विश्राम किए हैं ।और सुबह उठकर नहा धोकर शंकर जी की पूजा की है। इसीलिए हम लोग भी यहां पर शिव शंकर भगवान और राम भगवान दोनों की पूजा करने लगे हैं। यहां इस समय नवरात्रि का दिन है यहाँ 9 दिन भीड़ लगी रहती है और सब लोग पूजा करते हैं।


Byte- आशा केशरवानी भक्त 






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