कासगंज: तीर्थ नगरी सोरों (शूकर क्षेत्र) सतयुग काल से ही सनातन संस्कृति का सबसे अद्भुत, अलौकिक और दिव्य केंद्र रहा है. इस पौराणिक नगर के कण-कण में दिव्यता समाई हुई है. इसी दिव्य तीर्थ में वह अद्भुत श्रीयंत्र है. कहते हैं कि जिसकी धनतेरस पर पूजा और दर्शन मात्र से दरिद्रता दूर हो जाती है. इसलिए धनतेरस पर यहां पर पूजा-अर्चना करने काफी श्रद्धालु आते हैं. इस श्रीयंत्र की स्थापना आज से 1200 वर्ष पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी.
गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्मस्थली और भगवान वराह की प्राकट्य और निर्वाण स्थली कासगंज की तीर्थ नगरी सोरों (शूकर क्षेत्र) के बटुक भैरवनाथ मंदिर में सतयुग कालीन गृद्ध वट वृक्ष के नीचे स्थित है यह अद्भुत श्रीयंत्र. इस श्रीयंत्र का प्रयोग श्रीविद्या और तंत्र क्रियाओं में होता है. इस श्रीयंत्र को नव चक्र, यंत्र राज और महामेरू भी कहते हैं.
बटुक नाथ मंदिर के सेवादार गोविंद पाठक पुरी बताते हैं कि तंत्र की 10 महाविद्याओं में से एक विद्या है श्रीयंत्र. जो स्वयं लक्ष्मी जी का उपासक है. धनतेरस वाले दिन दूर-दूर से यहां लोग आते हैं. पुरोहित यहां पर आकर जलाभिषेक भी करते हैं. श्रीयंत्र की पूजा और जलाभिषेक करने से लक्ष्मी जी का वास घरों में होता है और दरिद्रता दूर होती है.
इतिहासकार अमित तिवारी बताते हैं कि इस अद्भुत श्रीयंत्र की स्थापना आज से 1200 वर्ष पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी. यह एक जटिल जयामितीय आकृति है और इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी भगवती जया त्रिपुर सुंदरी हैं. इसकी उपपीठ बटुक नाथ मंदिर में स्थित है. धनतेरस वाले दिन श्रीयंत्र की पूजा और आराधना करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. नवरात्रि और धनतेरस के दिन श्रीयंत्र का पूजन करने से महालक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं.
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इस श्रीयंत्र के केंद्र में एक बिंदु है. इस बिंदु के चारों और नौ अन्तर्ग्रथित त्रिभुज हैं, जो नव शक्ति के प्रतीक हैं. इन 9 त्रिभुजों के अन्तर्ग्रथित होने से कुल 43 लघु त्रिभुज बनते हैं. श्रीयंत्र में ब्रह्मांड के स्वरूप के साथ-साथ धन लक्ष्मी कुबेर का वास भी माना गया है. इत्यादि श्रीयंत्र के दर्शन और मंत्रोस्तुति मात्र से निर्धनों की निर्धनता दूर हो जाती है और जीवन सौभाग्य से भर जाता है.