कासगंजः संत तुलसीदास और अमीर खुसरो की जन्मस्थली कासगंज काली नदी और भागीरथी गंगा के बीच बसा एक नया ज़िला है. 17 अप्रैल, 2008 को बने कासगंज से जुड़ा एक रोचक मिथक है कि जिस पार्टी को यहां से जीत मिलती है वही उत्तर प्रदेश में सरकार बनाता है...17 में से 14 चुनावों में कासगंज के वोटरों ने जीतने वाले की बिल्कुल सटीक भविष्यवाणी की है. 40 साल से ये मिथक सच होता आया है, तीसरे चरण में 20 फरवरी को होने वाले चुनाव में कासगंज से जुड़ा ये मिथक टूटेगा इस पर सबकी निगाहें हैं. चलिए आपको कासगंज के राजनीतिक इतिहास में ले चलते हैं और बताते हैं इस सीट से कब, किसे जीत मिली और किसने सरकार बनाई.
1952 में कांग्रेस के बाबूराम गुप्ता ने कासगंज में जीत हासिल की तो यूपी में कांग्रेस की सरकार बनी. 1957 में कांग्रेस के कालीचरन अग्रवाल ने जीत का परचम लहराया तो फिर कांग्रेस की सरकार बनी.1977 में जनता दल के नेतराम सिंह कासगंज से जीते और सरकार जनता दल की बनी. 1980 के चुनाव में कांग्रेस के मानपाल सिंह ने जीत दर्ज की और कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की. 1985 में एकबार फिर मानपाल सिंह कांग्रेस से जीते और दोबारा कांग्रेस की सरकार बनी. 1989 में जनता दल के गोवर्धन सिंह कासगंज से जीते और मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में जनता दल ने यूपी में सरकार बनाई.
1991 में बाबरी मस्जिद टूटने के एक साल पहले नेतराम सिंह ने बीजेपी से जीत हासिल की, उस साल बीजेपी ने यूपी में सरकार बनाई. 1996 में नेतराम ने फिर बीजेपी से जीत दर्ज की और इस बार सरकार बीजेपी बीएसपी गठबंधन की बनी. 2002 में समाजवादी पार्टी से मानपाल सिंह कासगंज से जीतकर आए लेकिन सरकार बीजेपी बीएसपी की बन गई लेकिन मायावती की पार्टी के विधायकों के पार्टी छोड़ने से सत्ता मुलायम सिंह यादव के हाथों में चली गई.
2007 में बीएसपी के हसरत उल्ला खान कासगंज से चुनाव जीते और सरकार मायावती की बनी. 2012 में समाजवादी पार्टी से एकबार फिर मनपाल सिंह चुनाव जीत गए और सरकार अखिलेश यादव की बनीं. 2017 में बीजेपी के देवेंदर राजपूत ने बीएसपी के अजय चतुर्वेदी को 50,000 वोटों से हराकर जीत दर्ज की और सरकार योग आदित्यनाथ की बनीं.
आपको बता दें कि कासगंज विधानसभा सीट पर 25 फीसदी लोधी राजपूत, 12 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी ठाकुर, 10 फीसदी ब्राह्मण, 8 फीसदी शाक्य, 8 फीसदी जाटव, 5 फीसदी यादव, 4 फीसदी धीमर, 3 फीसदी बघेल, 2 फीसदी तेली और शेष 11 फीसदी अन्य जाति वर्ग धर्म के वोटरों की संख्या है.
सवाल है क्या इस बार बरसों से चला आ रहा ये मिथक टूटेगा. समाजवादी से पुराने धुरंधर मनपाल सिंह एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. 85 साल के मनपाल सिंह मौजूदा बीजेपी विधायक देवेंदर राजपूत को कड़ी चुनौती दे रहे हैं. देखना दिलचस्प होगा कि क्या मनपाल सिंह जीतकर समाजवादी पार्टी की सरकार बनवाते हैं या देवेंदर राजपूत जीतकर बीजेपी की. अगर समाजवादी पार्टी जीतती है तो मिथक बरकरार रहेगा और अगर बीजेपी जीती तो मिथक टूटेगा. कुछ भी हो लेकिन कासगंज में लड़ाई दिलचस्प होगी इसमे दो राय नहीं.
कब कौन जीता
साल उम्मीदवार पार्टी
1952 बाबूराम गुप्ता कांग्रेस
1957 कालीचरन अग्रवाल कांग्रेस
1977 नेतराम सिंह जनता दल
1980 मानपाल सिंह कांग्रेस
1985 मानपाल सिंह कांग्रेस
1989 गोवर्धन सिंह समाजवादी पार्टी
1991 नेतराम सिंह बीजेपी
1996 नेतराम सिंह बीजेपी
2002 मानपाल सिंह समाजवादी पार्टी
2007 हसरत उल्ला खान बीएसपी
2012 मानपाल सिंह समाजवादी पार्टी
2017 देवेंदर राजपूत बीजेपी
ये रहे जातीय समीकरण
लोधी राजपूत 25%, मुस्लिम 12%, ठाकुर 12%, ब्राह्मण 10%, शाक्य 8%, जाटव 8%, यादव 5%, धीमर 4%, बघेल 3%, तेली 2% व अन्य 11%
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