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कभी जूतों के सैंपल हुए थे फेल, अब विदेश में है जबर्दस्त डिमांड, जानिए सुचेता वाही के सफलता की कहानी

19 साल पहले ओमान से शुरू हुनर का सफर फ्रांस से अब मलेशिया पहुंच चुका है. कानपुर की सुचेता वाही के फैक्ट्री के शेफ्टी शू की विदेशों में जबर्दस्त मांग हो रही है.हाल ही में इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिशएन की महिला शाखा का उन्हें चेयरपर्सन बनाया गया है.

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Published : Aug 10, 2023, 6:52 PM IST

सुचेता वाही ने बयां कि अपने सफलता की कहानी

कानपुर: कहा जाता है, अगर खुद में हुनर का माद्दा हो तो बड़ी से बड़ी चुनौतियां भी घुटने टेक देती हैं. यह पंक्तियां पूरी तरह चरितार्थ होती हैं, कानपुर निवासी सुचेता वाही पर. एक महिला उद्यमी के रूप में सुचेता वाही ने अपनी वो पहचान बनाई, जिसे विदेश में सराहा जा रहा है. 19 साल पहले ओमान से अपने हुनर का सफर शुरू करने वाली सुचेता का कारोबार मौजूदा समय में फ्रांस, मलेशिया और मिडिल ईस्ट के कई देशों तक फैल गया है.

असफलता से नहीं माना हारः सुचेता ने बताया कि कभी कारोबार में वह दौर भी देखा था जब उनके द्वारा तैयार किए गए शेफ्टी शू का सैंपल फेल हो जाता था. लेकिन, उनकी आंखों में जो सपना था, उसे वह पूरा करने के लिए संघर्ष करती रहीं. आज शहर के दादा नगर स्थित औद्योगिक इकाई में जो शेफ्टी शू बनते हैं, उनकी विदेशों में जबर्दस्त मांग है. सुचेता बताती हैं कि एक शू तैयार करने में महज 450 रुपये का खर्च आता है. लेकिन विदेश में इसकी कीमत वहां के कर और अन्य खर्चों को देखते हुए तय की जाती है. हाल ही में इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिशएन की महिला शाखा का उन्हें चेयरपर्सन बनाया गया है.

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दो पूर्व राष्ट्रपति कर चुके हैं सम्मानित: महिला उद्यमिता के क्षेत्र में बेहतर काम करने पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम आजाद और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल सुचेता वाही को साल 2009-10 के बीच में सम्मानित कर चुकी हैं. इसके अलावा शहर के कई आयोजनों में भी सुचेता बढ़-चढ़कर प्रतिभाग करती हैं. सुचेता वाही कहती हैं कि उन्हें केवल उनके काम से ही जाना जाता है. वह अब ग्रेटर नोएडा में 21 से 25 सितंबर तक होने वाली रिवर्स बायर-सेलर मीट में जाने की तैयारी कर रही हैं.

कंटेनर में भरकर विदेशों तक पहुंचते हैं जूते: सुचेता बताती हैं कि जिन देशों से आर्डर मिलते हैं. वहां संख्या के हिसाब से जूते भेजे जाते हैं. हालांकि, अच्छी संख्या होने पर हम कंटेनर का उपयोग करते हैं और शू भेजते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि जूतों को बनाने के लिए जो चमड़ा उपयोग किया जाता है, वह कानपुर से होता है. लेकिन, आइलेट्स और जूते के सोल समेत कई अन्य भाग और सामान लेने के लिए हमें दूसरे शहरों से मंगाना होता है. सुचेता वाही ने बताया कि औद्योगिक इकाईयों के साथ ही खदानों में जो कर्मी काम करते हैं वह इन जूतों का उपयोग करते हैं.

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सुचेता वाही ने बयां कि अपने सफलता की कहानी

कानपुर: कहा जाता है, अगर खुद में हुनर का माद्दा हो तो बड़ी से बड़ी चुनौतियां भी घुटने टेक देती हैं. यह पंक्तियां पूरी तरह चरितार्थ होती हैं, कानपुर निवासी सुचेता वाही पर. एक महिला उद्यमी के रूप में सुचेता वाही ने अपनी वो पहचान बनाई, जिसे विदेश में सराहा जा रहा है. 19 साल पहले ओमान से अपने हुनर का सफर शुरू करने वाली सुचेता का कारोबार मौजूदा समय में फ्रांस, मलेशिया और मिडिल ईस्ट के कई देशों तक फैल गया है.

असफलता से नहीं माना हारः सुचेता ने बताया कि कभी कारोबार में वह दौर भी देखा था जब उनके द्वारा तैयार किए गए शेफ्टी शू का सैंपल फेल हो जाता था. लेकिन, उनकी आंखों में जो सपना था, उसे वह पूरा करने के लिए संघर्ष करती रहीं. आज शहर के दादा नगर स्थित औद्योगिक इकाई में जो शेफ्टी शू बनते हैं, उनकी विदेशों में जबर्दस्त मांग है. सुचेता बताती हैं कि एक शू तैयार करने में महज 450 रुपये का खर्च आता है. लेकिन विदेश में इसकी कीमत वहां के कर और अन्य खर्चों को देखते हुए तय की जाती है. हाल ही में इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिशएन की महिला शाखा का उन्हें चेयरपर्सन बनाया गया है.

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दो पूर्व राष्ट्रपति कर चुके हैं सम्मानित: महिला उद्यमिता के क्षेत्र में बेहतर काम करने पर पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम आजाद और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल सुचेता वाही को साल 2009-10 के बीच में सम्मानित कर चुकी हैं. इसके अलावा शहर के कई आयोजनों में भी सुचेता बढ़-चढ़कर प्रतिभाग करती हैं. सुचेता वाही कहती हैं कि उन्हें केवल उनके काम से ही जाना जाता है. वह अब ग्रेटर नोएडा में 21 से 25 सितंबर तक होने वाली रिवर्स बायर-सेलर मीट में जाने की तैयारी कर रही हैं.

कंटेनर में भरकर विदेशों तक पहुंचते हैं जूते: सुचेता बताती हैं कि जिन देशों से आर्डर मिलते हैं. वहां संख्या के हिसाब से जूते भेजे जाते हैं. हालांकि, अच्छी संख्या होने पर हम कंटेनर का उपयोग करते हैं और शू भेजते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि जूतों को बनाने के लिए जो चमड़ा उपयोग किया जाता है, वह कानपुर से होता है. लेकिन, आइलेट्स और जूते के सोल समेत कई अन्य भाग और सामान लेने के लिए हमें दूसरे शहरों से मंगाना होता है. सुचेता वाही ने बताया कि औद्योगिक इकाईयों के साथ ही खदानों में जो कर्मी काम करते हैं वह इन जूतों का उपयोग करते हैं.

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