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IIT कानपुर और मद्रास ने 5जी आरएएन सब-सिस्टम किया विकसित, 12 करोड़ में बेचा लाइसेंस - 5G radio access network

टाटा समूह के तेजस नेटवर्क (Tata Group Tejas Network) को 5 जी तकनीक का लाइसेंस (license for 5G technology) मिला है. पिछले कई सालों से आईआईटी कानपुर और आईआईटी मद्रास (IIT Kanpur and IIT Madras) के विशेषज्ञ इसपर काम कर रहे थे.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 12, 2023, 4:45 PM IST

Updated : Dec 12, 2023, 5:09 PM IST


कानपुर: आईआईटी कानपुर के नवाचारों का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है. चाहे कृषि क्षेत्र हो, या चिकित्सा और प्रौद्योगिकी. हर क्षेत्र में आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों का आए दिन ही कमाल दिखता है. इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए अब आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास और समीर संस्था के विशेषज्ञों की टीम ने पहली बार 5 जी तकनीक को विकसित कर दिखाया है.

12 करोड़ रुपये में तेजस कंपनी को बेचाः देश को आत्मनिर्भर बनाते हुए आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास और सोसाइटी फॉर एप्लाइड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च ने 5जी रेडियो एक्सेस नेटवर्क (आरएएन) तकनीक के लाइसेंस को एक टेलीकाम कंपनी ने 12 कराेड़ रुपये में दिया है. तीनों संस्थानों ने मिलकर 5जी टेस्ट बेड पर एक '5जी आरएएन सब-सिस्टम' विकसित किया है. टेलीकॉम कंपनी प्रगति के आधार पर कई किस्तों में 12 करोड़ रुपये के गैर-विशेष, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) लाइसेंस शुल्क का भुगतान करेगा.

इसे भी पढ़े-आईआईटी कानपुर में हेल्थकेयर इंडस्ट्री के इंजीनियर्स होंगे तैयार, मेहता फैमिली सेंटर फॉर इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन बना

5 जी के लिए वैज्ञानिकों को मिला था अलग-अलग जिम्मा: आईआईटी मद्रास में आयोजित हुए कार्यक्रम में आईआईटी कानपुर के प्रो.रोहित बुद्धिराजा शामिल हुए. दरअसल, भारत सरकार ने स्वदेशी 5-जी नेटवर्क तैयार करने के लिए देश के चुनिंदा संस्थानों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी थी. आईआईटी मद्रास, आईआईटी कानपुर और समीर ने 5-जी बेस स्टेशन की बेसबैंड यूनिट विकसित की थी. आईआईटी कानपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिक प्रो. रोहित बुद्धिराजा ने बताया आईआईटी कानपुर ने 5जी टेस्ट बेड के लिए अत्याधुनिक 5जी हार्डवेयर और एल्गोरिदम डिजाइन किया है.

दो साल तक हुआ शोध कार्य, फिर जरूरी बेसबैंड यूनिट तैयार: प्रो.रोहित बुद्धिराजा ने बताया उक्त तीनों संस्थानों ने मिलकर दो साल की रिसर्च के बाद वायरलेस बेस स्टेशन के लिए जरूरी बेसबैंड यूनिट तैयार की है. यह यूनिट टॉवर के निचले हिस्से में लगती है, जिसे टावर का दिल और दिमाग कहते हैं. इस यूनिट का काम सिग्नल को डाटा के रूप में कनवर्ट कर उपलब्ध कराना होता है. यह यूनिट जितना अच्छा काम करेगी, नेटवर्क की स्पीड और क्वॉलिटी उतनी ही बेहतर होगी. आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. एस. गणेश ने कहा कि संस्थान ने इस अत्याधुनिक स्वदेशी 5जी टेस्ट बेड के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

यह भी पढ़े-IIT कानपुर को QS रैंकिंग में मिला 63 वां स्थान, एशिया के शीर्ष 100 स्थानों में फिर मिली जगह


कानपुर: आईआईटी कानपुर के नवाचारों का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है. चाहे कृषि क्षेत्र हो, या चिकित्सा और प्रौद्योगिकी. हर क्षेत्र में आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों का आए दिन ही कमाल दिखता है. इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए अब आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास और समीर संस्था के विशेषज्ञों की टीम ने पहली बार 5 जी तकनीक को विकसित कर दिखाया है.

12 करोड़ रुपये में तेजस कंपनी को बेचाः देश को आत्मनिर्भर बनाते हुए आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास और सोसाइटी फॉर एप्लाइड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च ने 5जी रेडियो एक्सेस नेटवर्क (आरएएन) तकनीक के लाइसेंस को एक टेलीकाम कंपनी ने 12 कराेड़ रुपये में दिया है. तीनों संस्थानों ने मिलकर 5जी टेस्ट बेड पर एक '5जी आरएएन सब-सिस्टम' विकसित किया है. टेलीकॉम कंपनी प्रगति के आधार पर कई किस्तों में 12 करोड़ रुपये के गैर-विशेष, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) लाइसेंस शुल्क का भुगतान करेगा.

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5 जी के लिए वैज्ञानिकों को मिला था अलग-अलग जिम्मा: आईआईटी मद्रास में आयोजित हुए कार्यक्रम में आईआईटी कानपुर के प्रो.रोहित बुद्धिराजा शामिल हुए. दरअसल, भारत सरकार ने स्वदेशी 5-जी नेटवर्क तैयार करने के लिए देश के चुनिंदा संस्थानों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी थी. आईआईटी मद्रास, आईआईटी कानपुर और समीर ने 5-जी बेस स्टेशन की बेसबैंड यूनिट विकसित की थी. आईआईटी कानपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिक प्रो. रोहित बुद्धिराजा ने बताया आईआईटी कानपुर ने 5जी टेस्ट बेड के लिए अत्याधुनिक 5जी हार्डवेयर और एल्गोरिदम डिजाइन किया है.

दो साल तक हुआ शोध कार्य, फिर जरूरी बेसबैंड यूनिट तैयार: प्रो.रोहित बुद्धिराजा ने बताया उक्त तीनों संस्थानों ने मिलकर दो साल की रिसर्च के बाद वायरलेस बेस स्टेशन के लिए जरूरी बेसबैंड यूनिट तैयार की है. यह यूनिट टॉवर के निचले हिस्से में लगती है, जिसे टावर का दिल और दिमाग कहते हैं. इस यूनिट का काम सिग्नल को डाटा के रूप में कनवर्ट कर उपलब्ध कराना होता है. यह यूनिट जितना अच्छा काम करेगी, नेटवर्क की स्पीड और क्वॉलिटी उतनी ही बेहतर होगी. आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. एस. गणेश ने कहा कि संस्थान ने इस अत्याधुनिक स्वदेशी 5जी टेस्ट बेड के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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Last Updated : Dec 12, 2023, 5:09 PM IST
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