कानपुर: जिले के सर्किट हाउस के पास रहने वाले सत्य प्रकाश कनौडिया ने 26 जनवरी 1987 को जब अपनी बेटी मंजरी की शादी कलकत्ता के नामी परिवार सीताराम सेक्सरिया के पौत्र गौरव सेक्सरिया के साथ की थी, तब हंसी-खुशी दिल के अरमानों की सेज को संजोकर मंजरी अपनी ससुराल कलकत्ता पहुंची. कुछ दिनों बाद मंजरी ने एक दिव्यांग बच्ची को जन्म दिया, जिसका नतीजा यह निकला कि ससुराल पक्ष के लोगों ने मंजरी को घर से निकाल दिया, जिसके बाद मंजरी अपने मायके कानपुर लौट आईं.
मंजरी ने बताया की ससुराल वाले लड़का चाहते थे, लेकिन लड़की पैदा हो गई, जो दिव्यांग थी. इसके बाद ससुरालियों ने उसके साथ क्रूरता करना शुरू कर दिया, लेकिन मेरे पति का व्यवहार मेरे साथ नार्मल ही रहा. हम लोग संयुक्त परिवार में रहते रहे. 1998 में मंजरी की देवरानी को जब लड़का हुआ, तो उसके बाद प्रापर्टी को लेकर विवाद होना शुरू हो गया.
मंजरी ने बताया पति गौरव पर दबाव बनाकर ससुराल वालों ने कलकत्ता पारिवारिक न्यायालय में 2003 में तलाक का मुकदमा दायर किया. केस करने के बाद ससुराल वाले प्रताड़ित करने लगे. उसके बाद मंजरी ने कानपुर पारिवारिक न्यायालय में 29 अप्रैल 2013 को मुकदमा कानपुर कोर्ट में स्थानांतरित करवा लिया.
सन् 2011 के बाद कानपुर कोर्ट में मंजरी केस की सुनवाई शुरू हुई, जिसके बाद गौरव केवल एक बार माननीय न्यायालय में हाजिर हुए. गौरव ने कोर्ट में स्वीकार किया कि मंजरी मेरी पत्नी है और हम दोनों एक साथ रहना चाहते हैं, लेकिन गौरव का भाई सौरव सेक्सरिया व उसकी पत्नी और ससुराल के सभी लोग अरबों की संपत्ति हजम करने के फिराक में थे. इस पूरे मुकदमे में कानपुर पारिवारिक न्यायालय के जज रवींद्र अग्रवाल ने जब पूरे मुकदमे को समझा, तब उन्होंने अपने आदेश में कहा की मामला संपत्ति से संबधित है. माननीय न्यायालय की तरफ से सेक्शन 13 को खारिज कर दिया गया और सेक्शन 9 अपने आप प्रभावहीन हो गया.
17 साल बाद माननीय न्यायालय का फैसला मंजरी के पक्ष में दिया गया. पति-पत्नी दोनों को एक साथ रहने की इजाजत दे दी गई. मंजरी कहती हैं कि जिन लोगों का भगवान पर यकीन रहता है, उनको जीत एक न एक दिन जरूर मिलती है. कोर्ट के इस फैसले से मंजरी और उनके पति अब काफी खुश हैं.