कानपुर: राष्ट्रीय शर्करा संस्था (एनएसआइ) के विशेषज्ञों ने एक ऐसी तकनीक से चीनी तैयार करने का फैसला किया है, जो सेहत के लिए फायदेमंद है. इस तकनीक का नाम है ग्रीन प्रासेस. इस तकनीक के इस्तेमाल से न केवल लाखों लीटर पानी की बचत की जा सकेगी बल्कि वातावरण भी शुद्ध रहेगा. विशेषज्ञों के मुताबिक ब्रेवरेज व फार्मा इंडस्ट्री के लिए इस तरह की चीनी पहली पसंद साबित होगी
नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रो.नरेंद्र मोहन ने बताया कि एनएसआई के विशेषज्ञों ने महाराष्ट्र व कर्नाटक की दो प्रयोगशालाओं में ग्रीन प्रासेस की मदद से चीनी तैयार की है. इस प्रासेस में फास्फोरिक एसिड के बजाय कार्बन डाई आक्साइड का इस्तेमाल किया गया. इससे सीओटू वातावरण में नहीं पहुंची और वातावरण स्वच्छ बना रहा. यही नहीं इससे तैयार चीनी में अशुद्धियां भी कम थीं. इससे यह चीनी सेहत के लिए भी फायदेमंद रहेगी. इस चीनी के तकनीक और निर्माण की जानकारी खाद्य मंत्रालय को भेजी जा रही है. आने वाले समय में देश में इस नई तकनीक से चीनी का उत्पादन होगा.
निदेशक प्रो.नरेंद्र मोहन ने बताया कि अभी तक जब चीनी बनती थी तब औसतन 100 टन गन्ना पेराई में 40 टन स्टीम की खपत हो जाती थी. ग्रीन प्रासेस से चीनी बनाने में केवल 12 से 13 टन स्टीम का उपयोग किया गया. इसी तरह जब गन्ने से रस निकालकर उससे चीनी बनाई गई तो पहले लाखों लीटर पानी की जरूरत लगती थी, मगर ग्रीन प्रासेस की प्रक्रिया में पानी न के बराबर लगा.
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