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किसानों के लिए वरदान साबित होगी दलहन की ये वैरायटी: गेंहू-धान की खेती के बीच ले सकेंगे मोटा मुनाफा - हरियाणा की ताजी न्यूज

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में अरहर की नई प्रजातियां लहलहाएगी. कानपुर के दलहन अनुसंधान को इस संबंध में बड़ी सफलता मिली है. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 25, 2023, 8:42 AM IST

Updated : Nov 25, 2023, 2:52 PM IST

आईआईपीआर के निदेशक प्रो. जीपी दीक्षित ने दी यह जानकारी.

कानपुर: वर्ष भर लगातार धान और गेहूं की खेती के बीच हरियाणा, पंजाबी और पश्चिमी यूपी के किसानों को लगभग पांच माह खाली रहना पड़ता है. ऐसे में किसानों की समस्या का समाधान कानपुर के दलहन अनुसंधान (IIPR) ने खोज निकाला है. संस्थान ने अरहर की एक ऐसी फसल खोज निकाली है जिससे न केवल किसानों का मुनाफा बढ़ेगा बल्कि खाली समय की भरपाई भी हो जाएगी. इस खोज से पश्चिमी यूपी, पंजाब और हरियाणा के किसानों को काफी लाभ मिलेगा.


किसान संघों ने कानपुर के भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (IIPR) में वैज्ञानिकों व जिम्मेदारों को दिक्कतों वाला पत्र भेजा था. इसमें धान और गेहूं की खेती के बीच के अंतर में कोई फसल उगाने के लिए मदद मांगी गई थी. इसे लेकर आईआईपीआर के वैज्ञानिकों ने शोध शुरू किया और जो नतीजा सामने आया उससे किसानों के चेहरे खिल गए.

आईआईपीआर में अरहर की दो नई प्रजातियां- आईपीएच 9-5 और आईपीएच 15-3 तैयार कर दी गईं. 140 से 145 दिनों की अवधि में ये फसलें तैयार हो जातीं हैं. वैज्ञानिकों का कहना था, कि अब हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी यूपी के तमाम शहरों में खेतों के अंदर आईआईपीआर में विकसित अरहर लहलहाती दिखेगी. वहीं, संस्थान के निदेशक प्रो.जीपी दीक्षित ने कहा कि आने वाले समय में देश के जिस राज्य और शहर में इस प्रजाति की मांग होगी, हम वहां किसानों को बीज मुहैया करा देंगे.

18 से 20 क्विंटल फसल प्रति हेक्टेयर होगी तैयार: संस्थान के निदेशक प्रो.जीपी दीक्षित ने बताया, कि अरहर की जो नई प्रजातियां तैयार हुईं हैं जब उनकी खेती की जाएगी तो प्रति हेक्टेयर 18 से 20 क्विंटल फसल तैयार हो जाएगी. इसकी जानकारी भी किसानों को दे दी गई है. उन्होंने बताया कि जब संस्थान में शोध हुआ था तो हमारे यहां इसके सफल परिणाम सामने आए. कहा कि अरहर एक ऐसी प्रजाति है जिसका उपयोग बहुत अधिक है इसलिए यह फसल किसानों के लिए हर नजरिए से लाभप्रद है. अब पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी के किसानों के सामने धान, गेहूं के साथ ही अरहर का विकल्प भी तैयार होगा.


नाइट्रोजन मिट्टी में रह जाने से बढ़ जाएगी उर्वरा शक्ति: निदेशक प्रो.जीपी दीक्षित ने बताया कि जब किसान अरहर की फसल बोते हैं, तो उसके बाद जब कटाई हो जाती है तो वहां जो मिट्टी होती है उसमें नाइट्रोजन की मात्रा पहले की अपेक्षा बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि अब जब किसान धान और गेहूं की फसल तैयार करने के साथ अरहर की खेती करेंगे तो अरहर की कटाई के बाद जब नई फसल की बुआई होगी तो उन्हें काफी हद तक फायदा मिलेगा. मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाने से फसल की पैदावार भी अधिक होगी.

ये भी पढ़ेंः झांसी नगर निगम का गजब कारनामाः श्मशान घाट को बकाया हाऊस टैक्स का नोटिस भेज दी कुर्की की चेतावनी, विरोध-प्रदर्शन

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आईआईपीआर के निदेशक प्रो. जीपी दीक्षित ने दी यह जानकारी.

कानपुर: वर्ष भर लगातार धान और गेहूं की खेती के बीच हरियाणा, पंजाबी और पश्चिमी यूपी के किसानों को लगभग पांच माह खाली रहना पड़ता है. ऐसे में किसानों की समस्या का समाधान कानपुर के दलहन अनुसंधान (IIPR) ने खोज निकाला है. संस्थान ने अरहर की एक ऐसी फसल खोज निकाली है जिससे न केवल किसानों का मुनाफा बढ़ेगा बल्कि खाली समय की भरपाई भी हो जाएगी. इस खोज से पश्चिमी यूपी, पंजाब और हरियाणा के किसानों को काफी लाभ मिलेगा.


किसान संघों ने कानपुर के भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (IIPR) में वैज्ञानिकों व जिम्मेदारों को दिक्कतों वाला पत्र भेजा था. इसमें धान और गेहूं की खेती के बीच के अंतर में कोई फसल उगाने के लिए मदद मांगी गई थी. इसे लेकर आईआईपीआर के वैज्ञानिकों ने शोध शुरू किया और जो नतीजा सामने आया उससे किसानों के चेहरे खिल गए.

आईआईपीआर में अरहर की दो नई प्रजातियां- आईपीएच 9-5 और आईपीएच 15-3 तैयार कर दी गईं. 140 से 145 दिनों की अवधि में ये फसलें तैयार हो जातीं हैं. वैज्ञानिकों का कहना था, कि अब हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी यूपी के तमाम शहरों में खेतों के अंदर आईआईपीआर में विकसित अरहर लहलहाती दिखेगी. वहीं, संस्थान के निदेशक प्रो.जीपी दीक्षित ने कहा कि आने वाले समय में देश के जिस राज्य और शहर में इस प्रजाति की मांग होगी, हम वहां किसानों को बीज मुहैया करा देंगे.

18 से 20 क्विंटल फसल प्रति हेक्टेयर होगी तैयार: संस्थान के निदेशक प्रो.जीपी दीक्षित ने बताया, कि अरहर की जो नई प्रजातियां तैयार हुईं हैं जब उनकी खेती की जाएगी तो प्रति हेक्टेयर 18 से 20 क्विंटल फसल तैयार हो जाएगी. इसकी जानकारी भी किसानों को दे दी गई है. उन्होंने बताया कि जब संस्थान में शोध हुआ था तो हमारे यहां इसके सफल परिणाम सामने आए. कहा कि अरहर एक ऐसी प्रजाति है जिसका उपयोग बहुत अधिक है इसलिए यह फसल किसानों के लिए हर नजरिए से लाभप्रद है. अब पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी के किसानों के सामने धान, गेहूं के साथ ही अरहर का विकल्प भी तैयार होगा.


नाइट्रोजन मिट्टी में रह जाने से बढ़ जाएगी उर्वरा शक्ति: निदेशक प्रो.जीपी दीक्षित ने बताया कि जब किसान अरहर की फसल बोते हैं, तो उसके बाद जब कटाई हो जाती है तो वहां जो मिट्टी होती है उसमें नाइट्रोजन की मात्रा पहले की अपेक्षा बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि अब जब किसान धान और गेहूं की फसल तैयार करने के साथ अरहर की खेती करेंगे तो अरहर की कटाई के बाद जब नई फसल की बुआई होगी तो उन्हें काफी हद तक फायदा मिलेगा. मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाने से फसल की पैदावार भी अधिक होगी.

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Last Updated : Nov 25, 2023, 2:52 PM IST
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