कानपुर: सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने सर्दी की शुरुआत होने के साथ ही 6 नवंबर को अधिकारियों की बैठक में तीन दिन में रैन बसेरों को तैयार करने और उसमें निअश्रित लोगों को प्रशासन पहुंचाने को कहा गया, लेकिन जमीनी स्तर पर पटाखों के धुएं की तरह यह आदेश भी उड़ा दिया गया. आदेश को आएं 9 दिन से ऊपर हो गया, लेकिन लोग अभी भी सड़कों पर सोने को मजबूर है और रैन बसेरे में न तो कोई ले जाने वाला है और न ही रैन बसेरों की यह स्थिति है की कोई वहां कोई रह सकें. उनकी बदहाली की कहानी वो खुद बयां कर रहे हैं. वहीं जिम्मेदार सिर्फ जल्द स्थिति सुधारने की बात कहकर अपना पल्ला झाड रहे हैं.
फुटपाथ पर बचपन सोने को मजबूर
लगातार शासन के आदेशों के बाद भी अभी लोग फुटपाथ पर सो रहे हैं. उन्हें रैन बसेरों में कहीं ताला लटका मिला है तो कहीं की स्थिति इतनी बदतर है कि वहां व्यक्ति सो ही नहीं सकता. कहीं जाले लगे हैं तो कहीं गंदगी फैली हुई है.
रैन बसेरे में लाइट न सोने को तख्त
जब ईटीवी भारत की टीम दीवाली की रात रैन बसेरे पहुंची तो रैन बसेरे में पहले तो गेट पर ताला था. बसेरे के अंदर एक भी व्यक्ति नहीं सो रहा था. पुरुष कक्ष में गंदगी फैली थी तो महिला कक्ष में लाइट तक की व्यवस्था तक नहीं थी. इसी के साथ बिस्तर के नाम पर न कंबल थे और न ही तख्त पड़ा था.
एक हफ्ते और लगेगा
जोन 6 के अभियंता आर के सिंह से जब रैन बसेरों को लेकर बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभी रैन बसेरों को लेकर काम शुरू हुआ है और अभी इस रैन बसेरों को लेकर एक हफ्ते और लगेगा उसके बाद इसकी स्थिति भी सुधर जाएगी. ऐसे आदेशों और हालात को देख शायर का शेर याद आता है कि "तुम्हारी फ़ाइल में गांव का मौसम गुलाबी है मगर यह आदेश झूठे है यह दावा किताबी है". शासन की यह आदत कि आदेश आना और उसका पूरा न हो पाना फिर उसको पूरा करने को लेकर फिर नया आदेश, लेकिन आदेशों के इस जाल में गरीब बेहाल था और अभी भी बेहाल है.