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मोस्टवान्टेड विकास दुबे...हिंसा, एक्शन...ड्रामा...कहानी पूरी फिल्मी है!

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Published : Jul 10, 2020, 10:41 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 7:14 AM IST

कानपुर के बिकरू गांव में हुई मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाले पांच लाख के इनामी विकास दुबे को आखिरकार शुक्रवार सुबह हुई मुठभेड़ में मार गिराया गया. विकास की मौत के बाद से राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी बढ़ गई है. वहीं विकास की मां की भी हालत ठीक नहीं है. जानिए विकास दुबे कैसे बना शातिर अपराधी...उसके आपराधिक इतिहास की पूरी कहानी...

जानिए विकास दुबे की कहानी.
जानिए विकास दुबे की कहानी.

कानपुर: आपने बॉलीवुड के फिल्मों में देखा होगा कि एक दुर्दांत अपराधी पहले ताकत के नशे में लोगों पर बेइंतहा जुल्म करता है. पुलिस वाले भी उस विलेन के साथी होते हैं ..मगर एक ऐसा वक्त आता है, जब विलेन पुलिस को ही निशाना बनाने लगता है..फिर शुरू होता है विलेन को खत्म करने का मिशन. इंटरवल के बाद की कहानी में पुलिस विलेन और उसके गैंग का पीछा करती है. अंत होता है विलेन के एनकाउंटर से..इसके बाद हैपी एंडिंग...

रेडियो मैकेनिक विकास दुबे की डॉन के तौर पर तरक्की, उसके राजनीतिक रूझान, पुलिस से सांठगांठ और अंत में 8 दिनों की भागदौड़ के बाद कानपुर में एनकाउंटर तक का अंतिम सफर भी ऐसी ही बॉलीवुड कहानी सरीखा है.

स्कूल से निकलते ही अपराध की दुनिया से जुड़ा
घटना 1984 की है. विकास राजा दरियावचंद्र इंटर कॉलेज में हाईस्कूल की पढ़ाई करता था. वह तमंचा लेकर कॉलेज गया. पता चलने पर प्रिसिंपल ने तमंचा छीनकर उसकी पिटाई कर दी. अगले दिन उसने कई शिक्षकों के साथ मारपीट कर दी. विकास के चाचा प्रेम किशोर दुबे बताते हैं कि उसने जेब खर्च के लिए रेडियो मैकेनिक बन गया. इन 4 सालों में उसने जरायम की दुनिया में अपना रास्ता ढूंढ लिया.

जानिए विकास दुबे की कहानी.

1993 में ही बना लिया था विकास दुबे ने अपना गैंग
शिवली क्षेत्र के बिकरू गांव निवासी विकास दुबे ने 1993 से आपराधिक दुनिया में कदम रखा. कई युवकों के साथ अपना खुद का गैंग बनाया और लूट, डकैती, मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगा. कानपुर शहर से कानपुर देहात तक उसके नाम की तूती बोलने लगी, जिसके बाद विकास ने नेताओं और पुलिस में भी अपनी जबरदस्त पैठ बना ली.

5 साल तक चली संतोष शुक्ला से लड़ाई
साल 1996.. विधानसभा चुनाव के दौरान चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ. विकास दुबे ने श्रीवास्तव को जिताने का फरमान जारी कर दिया. चुनाव में हरिकृष्ण श्रीवास्तव जीत गए. इसके बाद संतोष शुक्ला और विकास दुबे में जंग शुरू हो गई. 5 साल तक चली लड़ाई में दोनों तरफ के कई लोगों की जानें भी चली गईं.

संतोष शुक्ला की हत्या के बाद बना डॉन
साल 2001 में यूपी में भाजपा सरकार बनी, तो संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया. 2001 में संतोष शुक्ला एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ पहुंचा और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. वो जान बचाने के लिए शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और लॉकअप में छिपे बैठे संतोष को बाहर लाकर मौत के घाट उतार दिया था. वारदात के बाद विकास दुबे ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ महीनों बाद जेल से बाहर आ गया. 2006 में अदालत से दोषमुक्त होने पर उसका हौसला और बढ़ गया.

पूरे कानपुर में चलता था विकास का सिक्का
संतोष शुक्ला की हत्या के बाद से विकास दुबे ने सभी राजनीतिक दलों में पैठ बनानी शुरू कर दी. साल 2002, जब मायावती सूबे की सीएम थीं, तब इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था. इस दौरान इसने जमीनों पर अवैध कब्जे के साथ अन्य गैर कानूनी तरीके से संपत्ति बनाई. जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचयात अध्यक्ष का चुनाव जीत गया.

कई बार प्रदेश में चला ऑपरेशन क्लीन, मगर विकास जिंदा रहा
2002 के बाद कई सरकारें प्रदेश में आईं. उत्तर प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ अभियान चले. मगर विकास और उसके गैंग का बाल बांका नहीं हुआ. मायावती और अखिलेश यादव की सरकार में कभी उसके खिलाफ अंगुली नहीं उठी. 2002 से 2008 के बीच उत्तर प्रदेश में 231 और 2010-13 के बीच 138 एनकाउंटर ऐसे हुए, जिसमें नैशनल ह्यूमन राइट कमिशन ने सवाल उठाया था. मुठभेड़ के उस दौर में भी विकास दुबे का नाम कभी टॉप 10 हिस्ट्री शीटर में नहीं शामिल हुआ. 6 दिसंबर 2019 को यूपी पुलिस ने ट्वीट कर बताया कि पिछले दो वर्षों में 5178 एनकाउंटर हुए, जिसमें 103 अपराधी मारे गए और 1859 घायल हुए. मगर विकास ऐसे अभियानों से अछूता ही रहा.

क्यों बचता रहा विकास दुबे?
राजनीति और पुलिस में पैठ के कारण विकास दुबे हमेशा कानून की गिरफ्त से बचता रहा. 2-3 जुलाई की दरम्यानी रात जब उसे पता चला कि पुलिस की टीम उसे पकड़ने आ रही है तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उसने गुस्से में कहा कि लॉकडाउन के दौरान जिन पुलिसवालों का ख्याल रखा है, अब वह उसके दुश्मन बने हैं. चौबेपुर थाना के अलावा कई थानों में बैठे मुलाजिम विकास के लिए मुखबिरी करते रहे. जब भी उसके खिलाफ शिकायत आती, पुलिस वाले ही पीड़ितों को समझौते के लिए बाध्य करते थे. हालांकि विकास दुबे के खिलाफ 60 मुकदमे दर्ज थे और उस पर 50 हजार का ईनाम था.

एक शिकायत, दबिश ...और विकास का गुस्सा
हाल के दिनों में जब राहुल तिवारी नाम के शख़्स ने विकास दुबे के ख़िलाफ़ हत्या का प्रयास (307 )का मुक़दमा दर्ज कराया. इसके बाद बिल्हौर सर्किल के डीएसपी देवेंद्र मिश्र ने गुरुवार रात बिकरू में विकास के घर में दबिश देने का फैसला किया. वह तीन थानों चौबेपुर, बिठूर और बिल्हौर की फोर्स लेकर बिकरू गांव पहुंचे थे. मगर चौबेपुर थाने से की गई मुखबिरी के कारण विकास पुलिस टीम पर भारी पड़ा. छतों से की गई गोलीबारी में देवेंद्र मिश्र समेत 8 पुलिस वाले मारे गए, जबकि 7 घायल हो गए. इस घटना के बाद विकास 5 लाख का इनामी हो गया.

बदला खाकी का रुख..शुरू हुआ लुकाछिपी का खेल
2 जून की रात 8 पुलिसकर्मियों की मौत के बाद पुलिस की 100 टीमें यूपी, दिल्ली, मध्यप्रदेश में सक्रिय हुई. 8 दिनों में एनकाउंटर्स और गिरफ्तारियों का दौर चलता रहा. 4 जुलाई को बिकरू गांव में विकास का घर ध्वस्त किया गया. इस बीच विकास भी फरीदाबाद में देखा गया. दिल्ली के साकेत कोर्ट में सरेंडर की खबरें भी उड़ने लगीं. मगर यूपी पुलिस उसके छोड़े गए निशानों का पीछा करती रही. विकास के 6 साथी एनकाउंटर में मारे गए...उसके रिश्तेदारों समेत कई सहयोगियों की गिरफ्तारी हुई. लेकिन विकास को लेकर बुधवार रात 8 जुलाई तक सस्पेंस बना रहा.

9 जुलाई को उज्जैन के महाकाल मंदिर में हाई वोल्टेज ड्रामा
9 जुलाई, दिन गुरुवार, विकास अचानक उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करने जा पहुंचा. 250 रुपये वाला वीआईपी टिकट लेकर दर्शन भी किए. इस बीच वहां के सिक्योरिटी गार्ड और फूल विक्रेता ने उसकी पहचान कर ली. काफी देर नजर रखने के बाद उज्जैन पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पकड़े जाने पर उसने चिल्लाकर कहा था- मैं विकास हूं, कानपुर वाला... इस घटना के बाद ऐसा लगा कि विकास का खेल खत्म हो चुका है...यूपी एसटीएफ ने देर शाम उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया था. मगर अभी क्लाईमैक्स बाकी था..

10 जुलाई को सुबह 6:30 बजे शुरू हुआ क्लाईमैक्स, 24 मिनट में ' दि एंड'
शुक्रवार सुबह तीन बजकर 13 मिनट पर झांसी के रक्सा टोल प्लाजा पर तीन गाड़ियों का एसटीएफ का काफिला विकास दुबे को लेकर पहुंचा. वहां से टीम कानपुर के लिए रवाना हुई. विकास की मौत का काउंटडाउन चल रहा था. जिंदगी के साढे तीन घंटे बाकी थे. जब विकास और एसटीएफ की टीम कानपुर पहुंच चुकी थी, करीब 6:30 बजे टोल प्लाजा पर मीडिया को रोक रही थी. खबर आई कि कानपुर नगर के भौती के पास विकास की गाड़ी पलट गई है. करीब सुबह 6:54 बजे पुलिस शिकंजे के भागने की कोशिश में विकास को पुलिस ने गोली मार दी. विकास दुबे को चार गोलियाँ लगी थीं. तीन गोली सीने में और एक हाथ में. उसे हैलट हॉस्पिटल ले जाया गया..जहां विकास की बॉडी बेसुध पड़ी थी. एक लंबी कहानी का दि एंड हो चुका था.

यह है इस लंबी कहानी में मां वाला एंगल
जब 2 जुलाई की रात विकास और उसके गुर्गों ने पुलिसवालों की हत्या की तो लखनऊ में बैठी मां सरला देवी ने गुस्से में कहा था कि वह अपराधी है, उसका एनकाउंटर कर दो. जब 9 जुलाई को विकास उज्जैन में पकड़ा गया तो मां ने कहा, महाकाल ने बचा लिया. विकास हर साल महाकाल का दर्शन करने जाता था. 10 जुलाई को एनकाउंटर के बाद मां सरला देवी की हालत ठीक नहीं है.

कानपुर: आपने बॉलीवुड के फिल्मों में देखा होगा कि एक दुर्दांत अपराधी पहले ताकत के नशे में लोगों पर बेइंतहा जुल्म करता है. पुलिस वाले भी उस विलेन के साथी होते हैं ..मगर एक ऐसा वक्त आता है, जब विलेन पुलिस को ही निशाना बनाने लगता है..फिर शुरू होता है विलेन को खत्म करने का मिशन. इंटरवल के बाद की कहानी में पुलिस विलेन और उसके गैंग का पीछा करती है. अंत होता है विलेन के एनकाउंटर से..इसके बाद हैपी एंडिंग...

रेडियो मैकेनिक विकास दुबे की डॉन के तौर पर तरक्की, उसके राजनीतिक रूझान, पुलिस से सांठगांठ और अंत में 8 दिनों की भागदौड़ के बाद कानपुर में एनकाउंटर तक का अंतिम सफर भी ऐसी ही बॉलीवुड कहानी सरीखा है.

स्कूल से निकलते ही अपराध की दुनिया से जुड़ा
घटना 1984 की है. विकास राजा दरियावचंद्र इंटर कॉलेज में हाईस्कूल की पढ़ाई करता था. वह तमंचा लेकर कॉलेज गया. पता चलने पर प्रिसिंपल ने तमंचा छीनकर उसकी पिटाई कर दी. अगले दिन उसने कई शिक्षकों के साथ मारपीट कर दी. विकास के चाचा प्रेम किशोर दुबे बताते हैं कि उसने जेब खर्च के लिए रेडियो मैकेनिक बन गया. इन 4 सालों में उसने जरायम की दुनिया में अपना रास्ता ढूंढ लिया.

जानिए विकास दुबे की कहानी.

1993 में ही बना लिया था विकास दुबे ने अपना गैंग
शिवली क्षेत्र के बिकरू गांव निवासी विकास दुबे ने 1993 से आपराधिक दुनिया में कदम रखा. कई युवकों के साथ अपना खुद का गैंग बनाया और लूट, डकैती, मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगा. कानपुर शहर से कानपुर देहात तक उसके नाम की तूती बोलने लगी, जिसके बाद विकास ने नेताओं और पुलिस में भी अपनी जबरदस्त पैठ बना ली.

5 साल तक चली संतोष शुक्ला से लड़ाई
साल 1996.. विधानसभा चुनाव के दौरान चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ. विकास दुबे ने श्रीवास्तव को जिताने का फरमान जारी कर दिया. चुनाव में हरिकृष्ण श्रीवास्तव जीत गए. इसके बाद संतोष शुक्ला और विकास दुबे में जंग शुरू हो गई. 5 साल तक चली लड़ाई में दोनों तरफ के कई लोगों की जानें भी चली गईं.

संतोष शुक्ला की हत्या के बाद बना डॉन
साल 2001 में यूपी में भाजपा सरकार बनी, तो संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया. 2001 में संतोष शुक्ला एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ पहुंचा और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. वो जान बचाने के लिए शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और लॉकअप में छिपे बैठे संतोष को बाहर लाकर मौत के घाट उतार दिया था. वारदात के बाद विकास दुबे ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ महीनों बाद जेल से बाहर आ गया. 2006 में अदालत से दोषमुक्त होने पर उसका हौसला और बढ़ गया.

पूरे कानपुर में चलता था विकास का सिक्का
संतोष शुक्ला की हत्या के बाद से विकास दुबे ने सभी राजनीतिक दलों में पैठ बनानी शुरू कर दी. साल 2002, जब मायावती सूबे की सीएम थीं, तब इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था. इस दौरान इसने जमीनों पर अवैध कब्जे के साथ अन्य गैर कानूनी तरीके से संपत्ति बनाई. जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचयात अध्यक्ष का चुनाव जीत गया.

कई बार प्रदेश में चला ऑपरेशन क्लीन, मगर विकास जिंदा रहा
2002 के बाद कई सरकारें प्रदेश में आईं. उत्तर प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ अभियान चले. मगर विकास और उसके गैंग का बाल बांका नहीं हुआ. मायावती और अखिलेश यादव की सरकार में कभी उसके खिलाफ अंगुली नहीं उठी. 2002 से 2008 के बीच उत्तर प्रदेश में 231 और 2010-13 के बीच 138 एनकाउंटर ऐसे हुए, जिसमें नैशनल ह्यूमन राइट कमिशन ने सवाल उठाया था. मुठभेड़ के उस दौर में भी विकास दुबे का नाम कभी टॉप 10 हिस्ट्री शीटर में नहीं शामिल हुआ. 6 दिसंबर 2019 को यूपी पुलिस ने ट्वीट कर बताया कि पिछले दो वर्षों में 5178 एनकाउंटर हुए, जिसमें 103 अपराधी मारे गए और 1859 घायल हुए. मगर विकास ऐसे अभियानों से अछूता ही रहा.

क्यों बचता रहा विकास दुबे?
राजनीति और पुलिस में पैठ के कारण विकास दुबे हमेशा कानून की गिरफ्त से बचता रहा. 2-3 जुलाई की दरम्यानी रात जब उसे पता चला कि पुलिस की टीम उसे पकड़ने आ रही है तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उसने गुस्से में कहा कि लॉकडाउन के दौरान जिन पुलिसवालों का ख्याल रखा है, अब वह उसके दुश्मन बने हैं. चौबेपुर थाना के अलावा कई थानों में बैठे मुलाजिम विकास के लिए मुखबिरी करते रहे. जब भी उसके खिलाफ शिकायत आती, पुलिस वाले ही पीड़ितों को समझौते के लिए बाध्य करते थे. हालांकि विकास दुबे के खिलाफ 60 मुकदमे दर्ज थे और उस पर 50 हजार का ईनाम था.

एक शिकायत, दबिश ...और विकास का गुस्सा
हाल के दिनों में जब राहुल तिवारी नाम के शख़्स ने विकास दुबे के ख़िलाफ़ हत्या का प्रयास (307 )का मुक़दमा दर्ज कराया. इसके बाद बिल्हौर सर्किल के डीएसपी देवेंद्र मिश्र ने गुरुवार रात बिकरू में विकास के घर में दबिश देने का फैसला किया. वह तीन थानों चौबेपुर, बिठूर और बिल्हौर की फोर्स लेकर बिकरू गांव पहुंचे थे. मगर चौबेपुर थाने से की गई मुखबिरी के कारण विकास पुलिस टीम पर भारी पड़ा. छतों से की गई गोलीबारी में देवेंद्र मिश्र समेत 8 पुलिस वाले मारे गए, जबकि 7 घायल हो गए. इस घटना के बाद विकास 5 लाख का इनामी हो गया.

बदला खाकी का रुख..शुरू हुआ लुकाछिपी का खेल
2 जून की रात 8 पुलिसकर्मियों की मौत के बाद पुलिस की 100 टीमें यूपी, दिल्ली, मध्यप्रदेश में सक्रिय हुई. 8 दिनों में एनकाउंटर्स और गिरफ्तारियों का दौर चलता रहा. 4 जुलाई को बिकरू गांव में विकास का घर ध्वस्त किया गया. इस बीच विकास भी फरीदाबाद में देखा गया. दिल्ली के साकेत कोर्ट में सरेंडर की खबरें भी उड़ने लगीं. मगर यूपी पुलिस उसके छोड़े गए निशानों का पीछा करती रही. विकास के 6 साथी एनकाउंटर में मारे गए...उसके रिश्तेदारों समेत कई सहयोगियों की गिरफ्तारी हुई. लेकिन विकास को लेकर बुधवार रात 8 जुलाई तक सस्पेंस बना रहा.

9 जुलाई को उज्जैन के महाकाल मंदिर में हाई वोल्टेज ड्रामा
9 जुलाई, दिन गुरुवार, विकास अचानक उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन करने जा पहुंचा. 250 रुपये वाला वीआईपी टिकट लेकर दर्शन भी किए. इस बीच वहां के सिक्योरिटी गार्ड और फूल विक्रेता ने उसकी पहचान कर ली. काफी देर नजर रखने के बाद उज्जैन पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पकड़े जाने पर उसने चिल्लाकर कहा था- मैं विकास हूं, कानपुर वाला... इस घटना के बाद ऐसा लगा कि विकास का खेल खत्म हो चुका है...यूपी एसटीएफ ने देर शाम उसे ट्रांजिट रिमांड पर ले लिया था. मगर अभी क्लाईमैक्स बाकी था..

10 जुलाई को सुबह 6:30 बजे शुरू हुआ क्लाईमैक्स, 24 मिनट में ' दि एंड'
शुक्रवार सुबह तीन बजकर 13 मिनट पर झांसी के रक्सा टोल प्लाजा पर तीन गाड़ियों का एसटीएफ का काफिला विकास दुबे को लेकर पहुंचा. वहां से टीम कानपुर के लिए रवाना हुई. विकास की मौत का काउंटडाउन चल रहा था. जिंदगी के साढे तीन घंटे बाकी थे. जब विकास और एसटीएफ की टीम कानपुर पहुंच चुकी थी, करीब 6:30 बजे टोल प्लाजा पर मीडिया को रोक रही थी. खबर आई कि कानपुर नगर के भौती के पास विकास की गाड़ी पलट गई है. करीब सुबह 6:54 बजे पुलिस शिकंजे के भागने की कोशिश में विकास को पुलिस ने गोली मार दी. विकास दुबे को चार गोलियाँ लगी थीं. तीन गोली सीने में और एक हाथ में. उसे हैलट हॉस्पिटल ले जाया गया..जहां विकास की बॉडी बेसुध पड़ी थी. एक लंबी कहानी का दि एंड हो चुका था.

यह है इस लंबी कहानी में मां वाला एंगल
जब 2 जुलाई की रात विकास और उसके गुर्गों ने पुलिसवालों की हत्या की तो लखनऊ में बैठी मां सरला देवी ने गुस्से में कहा था कि वह अपराधी है, उसका एनकाउंटर कर दो. जब 9 जुलाई को विकास उज्जैन में पकड़ा गया तो मां ने कहा, महाकाल ने बचा लिया. विकास हर साल महाकाल का दर्शन करने जाता था. 10 जुलाई को एनकाउंटर के बाद मां सरला देवी की हालत ठीक नहीं है.

Last Updated : Jul 11, 2020, 7:14 AM IST
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