कानपुर : जब-जब पीएम मोदी या सीएम योगी शहर आते हैं तो उनके संबोधन में गंगा का जिक्र जरूर होता है. पीएम और सीएम हमेशा कहते हैं कि गंगा को प्रदूषणमुक्त करने की दिशा में काफी हद तक सफलता मिल गई है. हालांकि हकीकत पूरी तरह से इसके विपरीत है. शहर के छह नालों- रानीघाट, सत्तीचौरा, गोलाघाट, डबका व पनकी के दो नालों का दूषित पानी सीधे गंगा और उनकी सहायक नदियों में पहुंच रहा. इससे गंगा का प्रदूषण लेवल कम होने के आसार नहीं दिख रहे हैं.
पिछले कई माह से इन नालों पर नगर निगम की ओर से बायोरेमिडेशन का काम कराया जा रहा था. जिसकी हकीकत खुद जिलाधिकारी विशाखजी ने परखी. जिलाधिकारी बीते गुरुवार को मौका मुआयना करने पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने अफसरों से दो टूक कह दिया कि अब बायोरेमिडेशन के नाम पर जो खेल हो रहा है उसे बंद कर दें. कंपनी को भुगतान तब ही होगा जब पानी का बीओडी लेवल मानक के अनुरूप होगा. जिलाधिकारी के सख्त तेवर के बाद से नगर निगम अफसरों के बीच हड़कम्प की स्थिति बनी हुई है. अफसर अपने अपने कील कांटे दुरुस्त करने में जुट गए हैं.
करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद परिणाम शून्य : डीएम ने जब अफसरों से पूछा कि आखिर हम करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं फिर भी परिणाम शून्य है. ऐसे में ऐसी कवायद का क्या फायदा? इस पर जिम्मेदार अफसर किसी तरह का जवाब नहीं दे सके. उन्होंने बायोआक्सी ग्रीन कंपनी के प्रतिनिधियों से कहा कि अपनी प्रयोगशाला बनाइए. वहां पानी के नमूनों का परीक्षण करिए. उसका मिलान उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रयोगशाला में हुए परीक्षण से कराइए. इसके बाद हम मानेंगे कि धरातल पर काम हो रहा है. डीएम ने कहा कि अब हर 15 दिन में इस काम की समीक्षा होगी और इसकी रिपोर्ट नगर निगम के अफसर तैयार करेंगे.
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