कानपुर: वैसे तो सरकार के मंत्री और आला अफसरशाह जब अपने अधीनस्थ अफसरों से उनके कामकाज की स्थिति के विषय में जानकारी लेते हैं तो अधीनस्थ अफसरों का जवाब होता है कि सारा काम दुरुस्त है. लेकिन, कभी-कभी अफसरों को तमाम मामलों में गंभीरता न बरतने पर ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए वह कभी तैयार नहीं होना चाहते. श्रम विभाग के कर्मियों की बहाली के आदेश का अनुपालन नहीं करने पर नगर आयुक्त के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हुआ था.
गुरुवार को कानपुर में कुछ ऐसा ही वाक्या नगर आयुक्त शिवशरणप्पा जीएन के साथ हुआ. कई सालों पहले श्रमिकों की बहाली के आदेश का अनुपालन न कराने पर उन्हें कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा. नगर आयुक्त के सरेंडर की जानकारी मिलते ही नगर निगम से लेकर पूरे शहर में हड़कंप मच गया. कई अफसरों ने पहले इस जानकारी को असत्य माना. लेकिन, जब नगर आयुक्त कोर्ट पहुंच गए तो सभी ने मामले की जानकारी ली.
25 हजार रुपये के मुचलके पर नगर आयुक्त को फौरन ही वापस जाने दिया गया. नगर निगम अफसरों का कहना था कि श्रम विभाग के कर्मियों ने श्रम विभाग की कोर्ट से अपनी बहाली का मुकदमा जीता था. इसके बाद सभी श्रमिकों को बहाल करने का आदेश जारी हो गया था. इस मामले की जानकारी कोर्ट द्वारा नगर आयुक्त को दी गई थी. पर जब तय समय पर नगर आयुक्त ने आदेश नहीं देखा तो उन्हें कोर्ट में तलब किया गया. नगर आयुक्त शिवशरणप्पा जीएन ने बताया कि श्रमिकों की बहाली के आदेश का मामला कोर्ट में है. ऐसे में किसी तरह का कोई जवाब नहीं दिया गया था. सरेंडर का आदेश था तो सरेंडर समय से हो गए थे.
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