ETV Bharat / state

कानपुर में 13 क्रान्तिकारियों को अंग्रेजों ने नीम के पेड़ पर दी थी एक साथ फांसी, जानें इसकी दास्तां

कानपुर में जब 1857 की जंग का ऐलान हुआ तो चारों तरफ हाय तौबा मच गई थी. एक तरफ अंग्रेजों के चाबुकों की आवाज थी. तो दूसरी तरफ आजादी के लिए क्रांतिकारियों का सैलाब थामे नहीं थम रहा था.

Etv Bharat
क्रन्तिकारियो के वंशज
author img

By

Published : Aug 15, 2022, 1:38 PM IST

Updated : Aug 15, 2022, 4:06 PM IST

कानपुर: 1857 की क्रांति में उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के सबलपुर गांव में अंग्रेजों ने 13 क्रांतिकारियों को एक नीम के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था. इन शहीदों के बलिदान के बाद उस जगह पर मात्र एक चबूतरा बनाकर खानापूर्ति कर ली गई थी. आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी किसी भी सरकार ने इन शहीदों के परिवार की कोई सुध नहीं ली. लेकिन इस बार जनपद में जिलाधिकारी से लेकर मुख्यविकास अधिकारी तक अधिकांश महिला अधिकारी है. इन्होंने पूरे जनपद के शहीद स्थलों की सूरत बदलकर रख दी है. इसकी खबर etv भारत की टीम पिछले चार सालों से लगातार दिखता चला आ रहा है ओर इस बार शहीद के परिवार वाले भी बेहद खुश है कि, जिले में महिला अधिकारियों के होने के चलते शहीद स्थल की तस्वीर बदल दी गयी है.

सबलपुर गांव.

कानपुर देहात की मुख्य विकास अधिकारी सौम्या पांडेय ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि, इस बार कानपुर देहात में जितने भी शहीद स्थल हैं. जहां पर कभी ध्यान नहीं दिया गया, उन जगहों पर विशेष तौर पर सजावट की गई है. उन जगहों का जीव उद्धार किया गया है. महिला अधिकारी होने के नाते जिला अधिकारी के साथ मिलकर शहीद स्थलों की सूरत बदल दी गयी है. इससे उनके वंशज परिवार के लोग भी आज बेहद खुश नजर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मिलकर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. उसी के तहत नारी शक्ति की मिसाल बनते हुए हम सभी महिला अधिकारियों ने शहीद स्थलों की तस्वीर बदल दी है.

कहा जाता है कि, जब 1857 की जंग का ऐलान हुआ तो चारों तरफ हाय तौबा मच गई थी. एक तरफ अंग्रेजों के चाबुकों की आवाज थी तो दूसरी तरफ आजादी के लिए क्रांतिकारियों का सैलाब थामे नहीं थम रहा था. लोग घरों से निकलकर भारत मां को आजाद कराने का बीड़ा उठा चुके थे. गांव में क्रांतिकारी जन्म ले रहे थे. यहीं, हाल कानपुर देहात के गांव सबलपुर का भी था. जहां क्रांतिकारी जंग के मैदान में कूद पड़े. जब अंग्रेजों को इसकी भनक लगी तो, अंग्रेज अफसरों ने 13 क्रांतिकारी उमराव सिंह देवचंद्र रत्ना, राजपूत भानु ,राजपूत प्रभु ,राजपूत केशवचंद्र धर्मा, रमन राठौर चंदन, राजपूत बलदेव, राजपूत खुमान सिंह, करण सिंह सहित झींझक के बाबू सिंह उर्फ खिलाड़ी नेट को नीम के पेड़ से फांसी पर लटका दिया. सभी क्रांतिकारी एक साथ शहीद हो गए.

इसे भी पढ़े-लखनऊ में अंग्रेजों की 30 कब्रें बता रही क्रांतिकारियों की शहादत की गाथाएं

शहीदों के परिवार के वंशजों ने बताया कि, इस चबूतरे के पास एक नीम का पेड़ हुआ करता था. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने एक साथ गांव के 13 लोगों को फांसी पर लटका दिया था. इसके बाद आज तक इस गांव की किसी ने सुध नहीं ली थी. गंदगी घास फूस, कूड़ा करकट पड़ा रहता था. जब भी 15 अगस्त या 26 जनवरी आती थी तो गांव वाले ही साफ सफाई कर कर यहां झंडारोहण कर लिया करते थे और अपने शहीद परिवार के वंशजों को याद कर लिया करते थे. लेकिन, इस बार जिले की महिला अधिकारियों ने मिलकर उस जगह की सूरत और सीरत ही बदल दी.

ऐसी ही जरुरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत

कानपुर: 1857 की क्रांति में उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के सबलपुर गांव में अंग्रेजों ने 13 क्रांतिकारियों को एक नीम के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था. इन शहीदों के बलिदान के बाद उस जगह पर मात्र एक चबूतरा बनाकर खानापूर्ति कर ली गई थी. आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी किसी भी सरकार ने इन शहीदों के परिवार की कोई सुध नहीं ली. लेकिन इस बार जनपद में जिलाधिकारी से लेकर मुख्यविकास अधिकारी तक अधिकांश महिला अधिकारी है. इन्होंने पूरे जनपद के शहीद स्थलों की सूरत बदलकर रख दी है. इसकी खबर etv भारत की टीम पिछले चार सालों से लगातार दिखता चला आ रहा है ओर इस बार शहीद के परिवार वाले भी बेहद खुश है कि, जिले में महिला अधिकारियों के होने के चलते शहीद स्थल की तस्वीर बदल दी गयी है.

सबलपुर गांव.

कानपुर देहात की मुख्य विकास अधिकारी सौम्या पांडेय ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि, इस बार कानपुर देहात में जितने भी शहीद स्थल हैं. जहां पर कभी ध्यान नहीं दिया गया, उन जगहों पर विशेष तौर पर सजावट की गई है. उन जगहों का जीव उद्धार किया गया है. महिला अधिकारी होने के नाते जिला अधिकारी के साथ मिलकर शहीद स्थलों की सूरत बदल दी गयी है. इससे उनके वंशज परिवार के लोग भी आज बेहद खुश नजर आ रहे हैं. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मिलकर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. उसी के तहत नारी शक्ति की मिसाल बनते हुए हम सभी महिला अधिकारियों ने शहीद स्थलों की तस्वीर बदल दी है.

कहा जाता है कि, जब 1857 की जंग का ऐलान हुआ तो चारों तरफ हाय तौबा मच गई थी. एक तरफ अंग्रेजों के चाबुकों की आवाज थी तो दूसरी तरफ आजादी के लिए क्रांतिकारियों का सैलाब थामे नहीं थम रहा था. लोग घरों से निकलकर भारत मां को आजाद कराने का बीड़ा उठा चुके थे. गांव में क्रांतिकारी जन्म ले रहे थे. यहीं, हाल कानपुर देहात के गांव सबलपुर का भी था. जहां क्रांतिकारी जंग के मैदान में कूद पड़े. जब अंग्रेजों को इसकी भनक लगी तो, अंग्रेज अफसरों ने 13 क्रांतिकारी उमराव सिंह देवचंद्र रत्ना, राजपूत भानु ,राजपूत प्रभु ,राजपूत केशवचंद्र धर्मा, रमन राठौर चंदन, राजपूत बलदेव, राजपूत खुमान सिंह, करण सिंह सहित झींझक के बाबू सिंह उर्फ खिलाड़ी नेट को नीम के पेड़ से फांसी पर लटका दिया. सभी क्रांतिकारी एक साथ शहीद हो गए.

इसे भी पढ़े-लखनऊ में अंग्रेजों की 30 कब्रें बता रही क्रांतिकारियों की शहादत की गाथाएं

शहीदों के परिवार के वंशजों ने बताया कि, इस चबूतरे के पास एक नीम का पेड़ हुआ करता था. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों ने एक साथ गांव के 13 लोगों को फांसी पर लटका दिया था. इसके बाद आज तक इस गांव की किसी ने सुध नहीं ली थी. गंदगी घास फूस, कूड़ा करकट पड़ा रहता था. जब भी 15 अगस्त या 26 जनवरी आती थी तो गांव वाले ही साफ सफाई कर कर यहां झंडारोहण कर लिया करते थे और अपने शहीद परिवार के वंशजों को याद कर लिया करते थे. लेकिन, इस बार जिले की महिला अधिकारियों ने मिलकर उस जगह की सूरत और सीरत ही बदल दी.

ऐसी ही जरुरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत

Last Updated : Aug 15, 2022, 4:06 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.