कानपुर: आईआईटी कानपुर लगातार अपने शौधो को लेकर जाना जाता है. एक बार फिर आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्रों ने एक ऐसा अनोखा मीटर तैयार किया है. जिससे औद्योगिक इकाइयों में पानी के इस्तेमाल के बारे में जाना जा सकेगा तो वही पानी की बर्बादी को रोकने के लिए भी यह तकनीक काफी कारगर साबित हो सकती है.
औद्योगिक इकाइयों में होती है जल की बर्बादी
अमूमन देखा जाता है कि औद्योगिक इकाइयों में पानी की बहुत बर्बादी होती है. जिसको लेकर केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार भी पानी की बर्बादी को रोकने के लिए समय-समय पर गाइड लाइन भी जारी करती है. तो वही अब आईआईटी द्वारा बनाए गए इस अल्ट्रासोनिक मीटर से न केवल पानी के इस्तेमाल के बारे में जानकारी रखी जा सकेगी. इसके साथी पानी को रोकने के लिए यह काफी मददगार साबित होगा.
क्या है धरा अल्ट्रासोनिक फ्लो मीटर
धरा अल्ट्रासोनिक फ्लो मीटर आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्रों ने मिलकर बनाया है. यह मीटर बैटरी से चलता है. इसके जरिए औद्योगिक इकाइयों में कितना पानी इस्तेमाल हो रहा है. इसको लेकर जानकारी देगा. इसके साथ ही यह सचेत भी करेगा कि कितना पानी इस्तेमाल हो चुका है. इतना ही नहीं जलस्तर की कमी होने पर यह संदेश भी देगा और इसके जरिए सभी वास्तविक डाटा निकाला जा सकता है. इसमें पुराना डाटा भी हमेशा के लिए सेव रहता है.
मोबाइल पर आएगा पानी की खपत का विवरण
एयर फ्लो मीटर न केवल पानी का सारा डाटा एकत्रित करेगा बल्कि औद्योगिक इकाइयों के मालिकों के पास फोन में पानी से जुड़ा पूरा विवरण भी मैसेज के जरिए आएगा. ऐसे में वे लोग हमेशा सचेत रहेंगे कि पानी बर्बाद तो नहीं हो रहा.
पानी की बर्बादी रोकने के लिए सरकारी भी जारी करती हैं गाइडलाइन
लगातार घट रहे भूजल को देखते हुए सरकारें भी समय-समय पर गाइडलाइन जारी कर औद्योगिक इकाइयों में बर्बाद हो रहे पानी को लेकर गाइडलाइन जारी करती हैं. जिनको उद्योग इकाइयों को पालन करना होता है, लेकिन देखा जाता है कि औद्योगिक इकाइयों में हजारों लीटर पानी वेस्ट हो जाता है. इस फ्लोमीटर के इस्तेमाल से औद्योगिक इकाइयों में पानी का इस्तेमाल बखूबी हो सकेगा, बर्बादी कम से कम होगी और पूरा डाटा भी संरक्षित रहेगा.
जानिए औद्योगिक इकाइयों में कितने लीटर पानी की खपत
वहीं बात की जाए उद्योग इकाइयों के जल खपत को लेकर तो अक्सर देखा जाता है कि स्माल स्केल औद्योगिक इकाइयों में प्रतिदिन लगभग 2 से 3 हजार लीटर पानी का इस्तेमाल होता है. तो वहीं बड़ी औद्योगिक इकाइयों में प्रतिदिन लगभग 25 से 30 हजार लीटर पानी की खपत होती है. जिसमें प्रदेश सरकार चाहती है कि कम से कम 20% की पानी की बचत हो सके. जिसके चलते अंडर ग्राउंड वाटर लेवल डार्क जोन में पहुंचने से रुक जाए.
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