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कौन था हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे, पढ़ें पूरी कहानी - कानपुर में पुलिसकर्मियों पर फायरिंग

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में एनकाउंटर के दौरान पुलिस और एसटीएफ की टीम ने कुख्यात अपराधी विकास दुबे को ढेर कर दिया. कानपुर में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के घर दबिश देने गई पुलिस की टीम पर हुई फायरिंग में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे. हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे पर 60 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. पढ़ें इस हिस्ट्रीशीटर की पूरी कहानी...

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे. (फाइल फोटो)
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Published : Jul 3, 2020, 9:22 AM IST

Updated : Jul 10, 2020, 9:35 AM IST

कानपुर: उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में एनकाउंटर के दौरान पुलिस और एसटीएफ की टीम ने कुख्यात अपराधी विकास दुबे को ढेर कर दिया. कानपुर में गुरुवार देर रात कुख्यात हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के घर दबिश देने गई पुलिस की टीम पर हुई ताबड़तोड़ फायरिंग में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए. फायरिंग में 5 पुलिसकर्मी समेत 7 घायल हो गए हैं. ये घटना शिवली थाना क्षेत्र के बिकरू गांव की है.

जानिए कौन था विकास दुबे

विकास दुबे ने 1993 से आपराधिक दुनिया में कदम रखा. कई युवकों के साथ अपना खुद का गैंग बनाया और लूट, डकैती, मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगा. शिवली क्षेत्र के बिकरू गांव निवासी विकास दुबे के खिलाफ 52 से ज्यादा मामले यूपी के कई जिलों के थानों में चल रहे हैं. इस पर पुलिस ने हजारों का इनाम रखा हुआ था. हत्या और हत्या के प्रयास के मामले पर पुलिस इसकी तलाश कर रही है.

बड़े नेताओं से थे संपर्क

कानपुर नगर से लेकर देहात तक में विकास दुबे की सल्तनत कायम थी. पंचायत, निकाय, विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव के वक्त राजनेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना इसका पेशा बन गया. इसी दौरान इसके संबंध सपा, बसपा, भाजपा के बड़े नेताओं से हो गए. 2001 में इसने भाजपा सरकार के दर्जा प्राप्त मंत्री को थाने के अंदर घुसकर गोलियों से भून डाला था. हाई प्रोफाइल मर्डर के बाद शिवली के डॉन ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ माह के बाद जमानत पर बाहर आ गया. इसके बाद इसने राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में इंट्री की और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीत गया था.

शिवराजपुर से नगर पंचयात अध्यक्ष का चुनाव जीता

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की यूपी के चारों राजनीतिक दलों में अच्छी पकड़ थी. 2002 के वक्त जब मायावती सूबे की सीएम थीं, तब इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था. इस दौरान इसने जमीनों पर अवैध कब्जे के साथ अन्य गैर कानूनी तरीके से संपत्ति बनाई. जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचयात अध्यक्ष का चुनाव जीत गया. बसपा सरकार के एक कद्दावर नेता से इसके गहरे संबंध थे. चुनाव की आहट मिलते ही इसने पैर बाहर निकाले और इसी के बाद इसकी गिरफ्तारी का आदेश आ गया था. जानकारों का कहना है कि भाजपा के एक विधायक से इसका छत्तीस का आकड़ा था और बिल्हौर, शिवराजपुर, चौबेपुर नगर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने खास लोगों को जिताने के लिए लगा रखा था.

जीत के जश्न के बाद संतोष शुक्ला से हुआ था विवाद

1996 के विधानसभा चुनाव के दौरान चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ. विकास दुबे ने श्रीवास्तव को जिताने का फरमान जारी कर दिया. इस दौरान संतोष शुक्ला और विकास के बीच कहासुनी हुई. इलेक्शन हरिकृष्ण श्रीवास्तव जीत गए. विकास और इसके गुर्गे जश्न मना रहे थे. इसी दौरान संतोष शुक्ला वहां से गुजर रहे थे. विकास ने उनकी कार को रोक कर गाली-गलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जमकर हाथापाई हुई. इसके बाद से विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली. पांच साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही और इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जानें भी चली गईं.

राज्यमंत्री की थाने में घुसकर की थी हत्या

साल 2001 में यूपी में भाजपा सरकार बनी, तो संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया. इसके बाद से विकास दुबे की उल्टी गिनती शुरू हो गई. उसी वक्त विकास बसपा के साथ ही भाजपा नेताओं के संपर्क में आ गया. भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे. उसी दौरान संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर इसका एनकाउंटर कराने का प्लान बनाया, जिसकी भनक विकास को हुई, तो ये संतोष को मारने के लिए अपने गुर्गों के साथ निकल पड़ा. 2001 में संतोष शुक्ला एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ पहुंचा और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. वो जान बचाने के लिए शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और लॉकअप में छिपे बैठे संतोष को बाहर लाकर मौत के घाट उतार दिया था.

चेत जाती पुलिस, तो न होती इतनी बड़ी घटना

जिस तरीके से पुलिस और अपराधियों के मुठभेड़ में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए, ऐसे में कहा जा रहा है कि विकास दुबे के मामले में पुलिस सही से प्लानिंग के तहत जाती, तो शायद इतनी बड़ी घटना न होती.

कानपुर: उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में एनकाउंटर के दौरान पुलिस और एसटीएफ की टीम ने कुख्यात अपराधी विकास दुबे को ढेर कर दिया. कानपुर में गुरुवार देर रात कुख्यात हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के घर दबिश देने गई पुलिस की टीम पर हुई ताबड़तोड़ फायरिंग में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए. फायरिंग में 5 पुलिसकर्मी समेत 7 घायल हो गए हैं. ये घटना शिवली थाना क्षेत्र के बिकरू गांव की है.

जानिए कौन था विकास दुबे

विकास दुबे ने 1993 से आपराधिक दुनिया में कदम रखा. कई युवकों के साथ अपना खुद का गैंग बनाया और लूट, डकैती, मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगा. शिवली क्षेत्र के बिकरू गांव निवासी विकास दुबे के खिलाफ 52 से ज्यादा मामले यूपी के कई जिलों के थानों में चल रहे हैं. इस पर पुलिस ने हजारों का इनाम रखा हुआ था. हत्या और हत्या के प्रयास के मामले पर पुलिस इसकी तलाश कर रही है.

बड़े नेताओं से थे संपर्क

कानपुर नगर से लेकर देहात तक में विकास दुबे की सल्तनत कायम थी. पंचायत, निकाय, विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव के वक्त राजनेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना इसका पेशा बन गया. इसी दौरान इसके संबंध सपा, बसपा, भाजपा के बड़े नेताओं से हो गए. 2001 में इसने भाजपा सरकार के दर्जा प्राप्त मंत्री को थाने के अंदर घुसकर गोलियों से भून डाला था. हाई प्रोफाइल मर्डर के बाद शिवली के डॉन ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ माह के बाद जमानत पर बाहर आ गया. इसके बाद इसने राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में इंट्री की और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीत गया था.

शिवराजपुर से नगर पंचयात अध्यक्ष का चुनाव जीता

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की यूपी के चारों राजनीतिक दलों में अच्छी पकड़ थी. 2002 के वक्त जब मायावती सूबे की सीएम थीं, तब इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था. इस दौरान इसने जमीनों पर अवैध कब्जे के साथ अन्य गैर कानूनी तरीके से संपत्ति बनाई. जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचयात अध्यक्ष का चुनाव जीत गया. बसपा सरकार के एक कद्दावर नेता से इसके गहरे संबंध थे. चुनाव की आहट मिलते ही इसने पैर बाहर निकाले और इसी के बाद इसकी गिरफ्तारी का आदेश आ गया था. जानकारों का कहना है कि भाजपा के एक विधायक से इसका छत्तीस का आकड़ा था और बिल्हौर, शिवराजपुर, चौबेपुर नगर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने खास लोगों को जिताने के लिए लगा रखा था.

जीत के जश्न के बाद संतोष शुक्ला से हुआ था विवाद

1996 के विधानसभा चुनाव के दौरान चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ. विकास दुबे ने श्रीवास्तव को जिताने का फरमान जारी कर दिया. इस दौरान संतोष शुक्ला और विकास के बीच कहासुनी हुई. इलेक्शन हरिकृष्ण श्रीवास्तव जीत गए. विकास और इसके गुर्गे जश्न मना रहे थे. इसी दौरान संतोष शुक्ला वहां से गुजर रहे थे. विकास ने उनकी कार को रोक कर गाली-गलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जमकर हाथापाई हुई. इसके बाद से विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली. पांच साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही और इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जानें भी चली गईं.

राज्यमंत्री की थाने में घुसकर की थी हत्या

साल 2001 में यूपी में भाजपा सरकार बनी, तो संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया. इसके बाद से विकास दुबे की उल्टी गिनती शुरू हो गई. उसी वक्त विकास बसपा के साथ ही भाजपा नेताओं के संपर्क में आ गया. भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे. उसी दौरान संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर इसका एनकाउंटर कराने का प्लान बनाया, जिसकी भनक विकास को हुई, तो ये संतोष को मारने के लिए अपने गुर्गों के साथ निकल पड़ा. 2001 में संतोष शुक्ला एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ पहुंचा और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. वो जान बचाने के लिए शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और लॉकअप में छिपे बैठे संतोष को बाहर लाकर मौत के घाट उतार दिया था.

चेत जाती पुलिस, तो न होती इतनी बड़ी घटना

जिस तरीके से पुलिस और अपराधियों के मुठभेड़ में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए, ऐसे में कहा जा रहा है कि विकास दुबे के मामले में पुलिस सही से प्लानिंग के तहत जाती, तो शायद इतनी बड़ी घटना न होती.

Last Updated : Jul 10, 2020, 9:35 AM IST
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