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भट्ठा मजदूरों के 4 बच्चों को मिली 12-12 लाख छात्रवृत्ति, अब बेंगलुरु में करेंगे पढ़ाई - अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी बेंगलुरु

कानपुर में ईंट-भट्ठों की तपन के बीच से निकले छात्र अब बेंगलुरु में पढ़ेंगे. इन छात्रों को 12-12 लाख रुपये की छात्रवृत्ति मिली है. ये छात्र ईंट-भट्ठों के पास आशा ट्रस्ट द्वारा संचालित अपना घर संस्था में रहते हैं.

ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले बच्चे अब बेंगलुरु में पढ़ेंगे
ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले बच्चे अब बेंगलुरु में पढ़ेंगे
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Published : Jun 20, 2023, 8:37 PM IST

ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले बच्चे अब बेंगलुरु में पढ़ेंगे

कानपुर: कहते हैं कि अगर दृृढ इच्छा शक्ति हो तो मंजिल मिल ही जाती है. कोई भी बाधा सफलता के बीच नहीं आ सकती, बस उचित मार्गदर्शन मिल जाए. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है, कानपुर में ईंट-भट्ठे पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चों ने. गरीबी को मात देते हुए चार बच्चों ने उच्च शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश पाया है. इतना ही नहीं इन्हें 12-12 लाख रुपये छात्रवृत्ति मिली है, जिससे ये सभी बेंगलुरु में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे.

कानपुर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर मंधना स्थित तातियांगज गांव स्थित ईंट भट्ठे पर काम करने वाले परिवारों के बच्चे राज, विक्रम, समीर व अखिलेश ने सालों पहले आशा ट्रस्ट द्वारा संचालित "अपना घर संस्था के केंद्र" में प्रवेश लिया था. हाल ही में 12वीं करने के बाद अब चारों छात्रों का दाखिला अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी बेंगलुरु में हो गया है. इस विवि की ओर से चारों छात्रों को 12-12 लाख रुपये की छात्रवृत्ति मिली है. ये सभी छात्र अजीम प्रेम जी विवि में स्नातक स्तर की अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे. छात्र राज मूलरूप हमीरपुर से हैं, वहीं विक्रम व अखिलेश बिहार के रहने वाले हैं. जबकि समीर प्रयागराज निवासी हैं.



बच्चे करते हैं जैविक खेती: अपना घर संस्था के संचालक महेश कुमार ने बताया कि इस केंद्र में हर साल दूसरे राज्यों के वह बच्चे आते हैं, जिनके माता-पिता ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं. केंद्र में बच्चों की पढ़ाई से लेकर दैनिक कार्यों के लिए सभी सुविधाएं हैं. श्रमिकों के बच्चे होने के बावजूद यहां सभी बच्चे कंप्यूटर व लैपटॉप चलाते हैं. वहीं, सबसे खास बात यह है कि साढ़े पांच बीघा में फैले केंद्र के आधे हिस्से में बच्चे खुद जैविक खेती करते हैं और ताजे फल व सब्जियां उगाते हैं. इन सब्जियों का प्रयोग बच्चों के खाने में किया जाता है. इसके अलावा केंद्र में गौशाला भी बनी है. पूरे केंद्र का संचालन सोलर सिस्टम पर आधारित है.

श्रमिकों के बच्चों को मिले अच्छी शिक्षा: जब ईटीवी भारत संवाददाता ने चारों छात्रों से एक कॉमन सवाल किया कि पढ़ाई के बाद आप सभी का सपना क्या है? तब सभी ने जवाब दिया, कि वह चाहते हैं कि उनकी जब पढ़ाई पूरी हो तो वह ऐसा काम करें, जिससे श्रमिकों के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ सकें.

संस्था से आईआईटी के कई प्रोफेसर भी जुड़े : अपना घर संस्था के संचालक महेश कुमार ने बताया कि इस केंद्र से आईआईटी कानपुर के कई प्रोफेसर जुड़े हैं. समय-समय पर सभी आकर बच्चों से मिलते हैं और उनकी हरसंभव मदद करते हैं. उन्होंने कहा, संस्था के संस्थापक मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. संदीप पांडेय व आईआईटी के प्रो. दीपक गुप्ता हैं.

यह भी पढ़ें: जमुना झील की सफाई के नाम पर बढ़ रहा सिर्फ बिजली का बिल, जानिए कैसे हो रहा भ्रष्टाचार

ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले बच्चे अब बेंगलुरु में पढ़ेंगे

कानपुर: कहते हैं कि अगर दृृढ इच्छा शक्ति हो तो मंजिल मिल ही जाती है. कोई भी बाधा सफलता के बीच नहीं आ सकती, बस उचित मार्गदर्शन मिल जाए. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है, कानपुर में ईंट-भट्ठे पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चों ने. गरीबी को मात देते हुए चार बच्चों ने उच्च शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश पाया है. इतना ही नहीं इन्हें 12-12 लाख रुपये छात्रवृत्ति मिली है, जिससे ये सभी बेंगलुरु में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे.

कानपुर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर मंधना स्थित तातियांगज गांव स्थित ईंट भट्ठे पर काम करने वाले परिवारों के बच्चे राज, विक्रम, समीर व अखिलेश ने सालों पहले आशा ट्रस्ट द्वारा संचालित "अपना घर संस्था के केंद्र" में प्रवेश लिया था. हाल ही में 12वीं करने के बाद अब चारों छात्रों का दाखिला अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी बेंगलुरु में हो गया है. इस विवि की ओर से चारों छात्रों को 12-12 लाख रुपये की छात्रवृत्ति मिली है. ये सभी छात्र अजीम प्रेम जी विवि में स्नातक स्तर की अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे. छात्र राज मूलरूप हमीरपुर से हैं, वहीं विक्रम व अखिलेश बिहार के रहने वाले हैं. जबकि समीर प्रयागराज निवासी हैं.



बच्चे करते हैं जैविक खेती: अपना घर संस्था के संचालक महेश कुमार ने बताया कि इस केंद्र में हर साल दूसरे राज्यों के वह बच्चे आते हैं, जिनके माता-पिता ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं. केंद्र में बच्चों की पढ़ाई से लेकर दैनिक कार्यों के लिए सभी सुविधाएं हैं. श्रमिकों के बच्चे होने के बावजूद यहां सभी बच्चे कंप्यूटर व लैपटॉप चलाते हैं. वहीं, सबसे खास बात यह है कि साढ़े पांच बीघा में फैले केंद्र के आधे हिस्से में बच्चे खुद जैविक खेती करते हैं और ताजे फल व सब्जियां उगाते हैं. इन सब्जियों का प्रयोग बच्चों के खाने में किया जाता है. इसके अलावा केंद्र में गौशाला भी बनी है. पूरे केंद्र का संचालन सोलर सिस्टम पर आधारित है.

श्रमिकों के बच्चों को मिले अच्छी शिक्षा: जब ईटीवी भारत संवाददाता ने चारों छात्रों से एक कॉमन सवाल किया कि पढ़ाई के बाद आप सभी का सपना क्या है? तब सभी ने जवाब दिया, कि वह चाहते हैं कि उनकी जब पढ़ाई पूरी हो तो वह ऐसा काम करें, जिससे श्रमिकों के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ सकें.

संस्था से आईआईटी के कई प्रोफेसर भी जुड़े : अपना घर संस्था के संचालक महेश कुमार ने बताया कि इस केंद्र से आईआईटी कानपुर के कई प्रोफेसर जुड़े हैं. समय-समय पर सभी आकर बच्चों से मिलते हैं और उनकी हरसंभव मदद करते हैं. उन्होंने कहा, संस्था के संस्थापक मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. संदीप पांडेय व आईआईटी के प्रो. दीपक गुप्ता हैं.

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