कानपुर : जिस तरह लखनऊ के भाजपा कार्यालय में आतिशबाजी और जीत का जश्न मन रहा था, ठीक वैसे ही शहर के नौबस्ता स्थित क्षेत्रीय कार्यालय का नजारा था. दोबारा करीब एक लाख मतों से जीतकर जैसे ही भाजपा मेयर प्रत्याशी प्रमिला पांडेय कार्यालय पहुंची तो पहले पटाखों की आवाजें आने लगीं और ढोल की थाप बजने लगी. इसके बाद तो मानो कार्यकर्ताओं को लगा कि जैसे टीम इंडिया ने विश्व कप जीत लिया है और अपने ही अंदाज में सभी झूमने लगे.
खुशी के इस मौके पर भाजपा मेयर पद पर जीत हासिल करने वालीं प्रमिला पांडेय ने ईटीवी भारत संवाददाता से विशेष बातचीत में कहा कि अब वह पांच साल जमकर काम करेंगी. जो अधूरे काम उनके पिछले कार्यकाल में रह गए थे, उन्हें ही प्राथमिकता पर पूरा करेंगी. इसी तरह चुनाव के दौरान उन्हें विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने समर्थन दिया था? इस सवाल के जवाब में मुस्कुराकर बोलीं कि सतीश महाना कानपुर की शान हैं. उन्होंने अपनी जीत का पूरा श्रेय कानपुर की जनता को दिया और कहा कि जनता का प्यार है जो मैं अब दोबारा मेयर बनूंगी. इसी तरह जब संवाददाता ने उनसे सवाल किया कि क्या कोई प्रत्याशी चुनाव में उनके सामने टक्कर के तौर पर था? तो जवाब में प्रमिला पांडेय ने इसे सिरे से नकार दिया और कहा कोई टक्कर में नहीं था.'
2107 में 1.05 लाख वोटों से जीती थीं : प्रमिला पांडेय जब साल 2017 में मेयर पद पर भाजपा से चुनाव लड़ी थीं तो करीब 1.05 लाख वोटों से जीती थीं, वहीं, शनिवार को वह दोबारा 2023 का चुनाव करीब एक लाख से अधिक वोटों से जीतीं. शनिवार को जब काउंटिंग शुरू हुई थी तो प्रमिला पांडेय शुरू से ही बढ़त बनाती चली गईं और अंतत: उन्होंने कमल खिला दिया.
100 सालों के इतिहास में प्रमिला दोबारा बनीं मेयर : कानपुर से बतौर विशेषज्ञ और पूर्व पत्रकार शैलेश अवस्थी बताते हैं कि शहर में 1916 में पहली बार नगर पालिका का चुनाव हुआ था. तब केवल सात वार्ड हुआ करते थे. हर वार्ड से तीन सदस्य चुने जाते थे. उस दौर के समाजसेवी व प्रतिष्ठित लोगों में गिने जाने वाले बाबू बिहारी लाल पहली बार वार्ड स्तर पर चुनाव जीते. इसके बाद जब चेयरमैन का चुनाव हुआ तो उनके सामने कांग्रेस से विशंभर नाथ चुनाव लड़े थे, हालांकि पहले ही चुनाव में बाबू बिहारी लाल ने विशंंभर नाथ को हरा दिया था. इसके बाद वह दोबारा चेयरमैन का चुनाव फिर जीते, हालांकि उसके बाद 1959 में नगर महापालिका का चुनाव हुआ, जिसमें रामरतन गुप्ता पहली बार मेयर बने थे. उस समय कानपुर में 36 वार्ड थे और 72 सभासद चुने जाते थे. आठ एल्डर मैन मेंबर होते थे और उन्हें मिलाकर कुल 80 का सदन होता था. इसके बाद 1964 में कानपुर के पूर्व मेयर अनिल शर्मा के पिता रतन लाल शर्मा मेयर बने.
19 साल नहीं हुआ चुनाव, 1988-89 में वार्डों की संख्या 50 हो गई : पूर्व पत्रकार शैलेश अवस्थी कहते हैं कि '1964 के बाद सीधे 1988-89 में नगर महापालिका का चुनाव हुआ, जिसमें 50 वार्ड हो गए और 100 सभासद चुने जाने लगे. उस दौर में पहली बार पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल मेयर बने, हालांकि उन्होंने दो साल के कार्यकाल से पहले इस्तीफा दे दिया. फिर शहर से मेयर सरदार महेंद्र सिंह को चुना गया, लेकिन, 1995 में पहली बार कानपुर में जनता द्वारा जब मेयर चुना गया था तो भाजपा से स्व. सरला सिंह चुनाव जीती थीं. उसके बाद सन् 2000 में अनिल शर्मा, 2006 में रवींद्र पाटनी और 2012 में भाजपा से कैप्टन पं.जगतवीर सिंह द्रोण ने चुनाव जीता, वहीं, साल 2017 में जब मेयर प्रत्याशी प्रमिला पांडेय को बनाया गया तो प्रमिला ने 1.05 लाख वोटों से जीत दर्ज की.
प्रदेश उपाध्यक्ष ने निभाई अहम भूमिका : भाजपा की मेयर प्रत्याशी प्रमिला पांडेय की जीत में संगठन की ओर से प्रदेश उपाध्यक्ष मानवेंद्र सिंह ने अहम भूमिका निभाई. पांच मई से वह शहर में आ गए थे और अपने स्तर से चुनावी रणनीति बना रहे थे, जबकि उससे पहले उन्हें प्रदेश नेतृत्व ने झांसी में जिम्मा सौंपा था और झांसी में भी भाजपा की जीत हुई. प्रदेश उपाध्यक्ष मानवेंद्र सिंह ने क्षेत्रीय अध्यक्ष के कार्यकाल में भी भाजपा को कई सीटों पर जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी.
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