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सूखा पड़ने पर बुंदेलखंड के खेतों में कृत्रिम बारिश कराएगा अमेरिका का एयरक्राफ्ट, जानिए खासियत

आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने कृत्रिम बारिश कराने को लेकर विभिन्न चरणों में अमेरिका के एयरक्राफ्ट का सफल परीक्षण का काम पूरा किया है. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश कराने केलिए बादलों का होना जरूरी है.

कृत्रिम बारिश से भिगोएगा अमेरिका का एयरक्राफ्ट
कृत्रिम बारिश से भिगोएगा अमेरिका का एयरक्राफ्ट
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Published : Jul 4, 2023, 9:43 PM IST

कृत्रिम बारिश से भिगोएगा अमेरिका का एयरक्राफ्ट

कानपुर: मौसम वैज्ञानिक भले ही मानसून सीजन से पहले यह दावा करते रहे हों कि सूबे में अच्छी बारिश होगी. लेकिन कानपुर से सटे बुंदेलखंड के क्षेत्रों में लगातार पिछले कई सालों से सूखा पड़ने की बात सामने आती रही है. सूखा पड़ने की वजह से ही कई किसानों ने दम भी तोड़ा. अब सूखे से निजात दिलाने के लिए आईआईटी कानपुर नई तकनीक का इजाद किया है. जिससे अब सूखा पड़ने की स्थिति के दौरान कृत्रिम बारिश कराई जा सकेगी.

बुंदेलखंड के क्षेत्रों में आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ अमेरिका के सेना एयरक्राफ्ट की मदद से बारिश करा सकेंगे. यानी अमेरिका का एयरक्राफ्ट बुंदेलखंड के खेतों को भिगोएगा. बुंदेलखंड के साथ-साथ यह सुविधा कानपुर के लिए भी होगी. आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने कृत्रिम बारिश कराने के लिए विभिन्न चरणों में सफल परीक्षण का काम पूरा कर लिया है और इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं.

जानिए क्या होती है कृत्रिम बारिश: आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर व पद्मश्री से सम्मानित प्रो.मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि कृत्रिम बारिश के लिए हमें कृत्रिम बादल बनाने की कोई जरूरत नहीं होती है. कृत्रिम बारिश के लिए प्राकृतिक तौर पर घने बादल छाए रहने चाहिए. जिसे हम कह सकते हैं कि बदली होनी चाहिए. इसके बाद जो सेसना एयरक्राफ्ट है, वह बादलों के समीप पहुंचता है. एयरक्राफ्ट से फायरिंग होती है.

इस मोड में बहुत महीन कण बाहर निकलते हैं. यह कण बादलों में पहुंचते हैं, जहां पहले से मॉयश्चर या नमी मौजूद रहती है. जब कण बादलों के अंदर शिफ्ट होते हैं तो नमी में स्थान बनता है और फिर गुरुत्वाकर्षण के चलते कणों की वजह से छोटी महीन बूंदे बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं. उन्होंने कहा कि अगर वातावरण में बदली या घने बादल नहीं होंगे, तो कृत्रिम बारिश नहीं कराई जा सकती.

कानपुर में हुआ था सफल परीक्षण: साल 2020 में कोरोना महामारी का दौर शुरू हुआ था और उससे पहले आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने कानपुर में पहली बार कृत्रिम बारिश का सफल परीक्षण किया था. इस बारिश के लिए आईआईटी कानपुर को डीजीसीए से भी अनुमति मिल चुकी है.

यह भी पढ़ें: बुंदेलखंड को सूखे से बचाने के लिए कृत्रिम बारिश कराएगी योगी सरकार

कृत्रिम बारिश से भिगोएगा अमेरिका का एयरक्राफ्ट

कानपुर: मौसम वैज्ञानिक भले ही मानसून सीजन से पहले यह दावा करते रहे हों कि सूबे में अच्छी बारिश होगी. लेकिन कानपुर से सटे बुंदेलखंड के क्षेत्रों में लगातार पिछले कई सालों से सूखा पड़ने की बात सामने आती रही है. सूखा पड़ने की वजह से ही कई किसानों ने दम भी तोड़ा. अब सूखे से निजात दिलाने के लिए आईआईटी कानपुर नई तकनीक का इजाद किया है. जिससे अब सूखा पड़ने की स्थिति के दौरान कृत्रिम बारिश कराई जा सकेगी.

बुंदेलखंड के क्षेत्रों में आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ अमेरिका के सेना एयरक्राफ्ट की मदद से बारिश करा सकेंगे. यानी अमेरिका का एयरक्राफ्ट बुंदेलखंड के खेतों को भिगोएगा. बुंदेलखंड के साथ-साथ यह सुविधा कानपुर के लिए भी होगी. आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने कृत्रिम बारिश कराने के लिए विभिन्न चरणों में सफल परीक्षण का काम पूरा कर लिया है और इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं.

जानिए क्या होती है कृत्रिम बारिश: आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर व पद्मश्री से सम्मानित प्रो.मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि कृत्रिम बारिश के लिए हमें कृत्रिम बादल बनाने की कोई जरूरत नहीं होती है. कृत्रिम बारिश के लिए प्राकृतिक तौर पर घने बादल छाए रहने चाहिए. जिसे हम कह सकते हैं कि बदली होनी चाहिए. इसके बाद जो सेसना एयरक्राफ्ट है, वह बादलों के समीप पहुंचता है. एयरक्राफ्ट से फायरिंग होती है.

इस मोड में बहुत महीन कण बाहर निकलते हैं. यह कण बादलों में पहुंचते हैं, जहां पहले से मॉयश्चर या नमी मौजूद रहती है. जब कण बादलों के अंदर शिफ्ट होते हैं तो नमी में स्थान बनता है और फिर गुरुत्वाकर्षण के चलते कणों की वजह से छोटी महीन बूंदे बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं. उन्होंने कहा कि अगर वातावरण में बदली या घने बादल नहीं होंगे, तो कृत्रिम बारिश नहीं कराई जा सकती.

कानपुर में हुआ था सफल परीक्षण: साल 2020 में कोरोना महामारी का दौर शुरू हुआ था और उससे पहले आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने कानपुर में पहली बार कृत्रिम बारिश का सफल परीक्षण किया था. इस बारिश के लिए आईआईटी कानपुर को डीजीसीए से भी अनुमति मिल चुकी है.

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