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कानपुर देहात: शीतला मां का प्रचीन मंदिर, जहां पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं - kanpur dehat

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के विजयपुर गांव में मां शीतला का प्राचीन मंदिर है. मंदिर के पुजारियों के अनुसार साल 1984 में जब तालाब की खुदाई की गई थी, तो यहां से मां शीतला की प्राचीन प्रतिमा मिली थी. स्थानीय लोगों ने बताया कि नवरात्र के दिनों में यहां प्रदेश के दूर-दराज क्षेत्रों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

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विजयपुर गांव में मां शीतला का प्रचीन मंदिर.
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Published : Jul 12, 2020, 11:36 PM IST

कानपुर देहात: जिले के विजयपुर गांव के बीहड़ में मां शीतला का प्राचीन मंदिर है. सालों पहले गांव के तालाब में खुदाई के दौरान मां शीतला की प्रतिमा मिली थी. यह मंदिर जिले में स्थित बाणासुर किले से करीब 500 मीटर की दूरी पर है. बताया जाता है कि सालों पहले यहां पर बाणासुर का साम्राज्य हुआ करता था. ऐसी मान्यता है कि यहां पर दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की मुराद पुरी हो जाती है. ग्रामीणों के अनुसार नवरात्र के दिनों में यहां प्रदेश के दूर-दराज क्षेत्रों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

शीतला मां का प्रचीन मंदिर.

1984 में तालाब की खुदाई में मिली थी प्रतिमा

महाभारत काल में यहां शिव भक्त बाणासुर का साम्राज्य हुआ करता था. वह अपने तालाब में नहाने के बाद शिव की पूजा करता था. मंदिर के पुजारियों ने बताया कि साल 1984 में जब तालाब की खुदाई की गई, तो यहां से मां शीतला की प्राचीन प्रतिमा मिली. इसके बाद तत्कालीन बाल योगी ब्रम्हचारी स्वामी चरणदास महराज ने यहां पर मां शीलत का मंदिर बनवाया.

मंदिर के दो पुजारी ले चुके हैं समाधी

मंदिर के पहले पुजारी बाल योगी ब्रम्हचारी स्वामी चरणदास महराज ने साल 1991 में मंदिर परिसर में ही समाधी ले ली. इसके बाद मंदिर की पूजा बाल ब्रम्हचारी स्वामी ओमप्रकाश दास महाराज करने लगे और उन्होंने भी साल 2009 में समाधी ले ली. मौजूदा समय में स्वामी ओमकार महाराज मंदिर की पूजा और देखरेख करते हैं.

सूर्य की पहली किरण पड़ती है मां शीलता के चरणों में

स्वामी ओमकार महाराज ने बताया कि सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरण मां शीलता के चरणों में पड़ती है. उन्होंने बताया कि यहां पर जिसकी भी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वह मंदिर परिसर में स्थित पेड़ में एक घंटी बाधता है. शिवपुराण और महाभारत में ही यहां पर बाणासुर के साम्राज्य होने का जिक्र किया गया है. वहीं मंदिर के पुजारी नीरज कुमार शर्मा ने बताया कि मंदिर में शीतला मां के नीचे एक कुंड है, उसके पानी में आज भी कीड़े नहीं पड़े हैं. उन्होंने बताया कि यह कुंड भी प्राचीन समय से ही है.

कानपुर देहात: जिले के विजयपुर गांव के बीहड़ में मां शीतला का प्राचीन मंदिर है. सालों पहले गांव के तालाब में खुदाई के दौरान मां शीतला की प्रतिमा मिली थी. यह मंदिर जिले में स्थित बाणासुर किले से करीब 500 मीटर की दूरी पर है. बताया जाता है कि सालों पहले यहां पर बाणासुर का साम्राज्य हुआ करता था. ऐसी मान्यता है कि यहां पर दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की मुराद पुरी हो जाती है. ग्रामीणों के अनुसार नवरात्र के दिनों में यहां प्रदेश के दूर-दराज क्षेत्रों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

शीतला मां का प्रचीन मंदिर.

1984 में तालाब की खुदाई में मिली थी प्रतिमा

महाभारत काल में यहां शिव भक्त बाणासुर का साम्राज्य हुआ करता था. वह अपने तालाब में नहाने के बाद शिव की पूजा करता था. मंदिर के पुजारियों ने बताया कि साल 1984 में जब तालाब की खुदाई की गई, तो यहां से मां शीतला की प्राचीन प्रतिमा मिली. इसके बाद तत्कालीन बाल योगी ब्रम्हचारी स्वामी चरणदास महराज ने यहां पर मां शीलत का मंदिर बनवाया.

मंदिर के दो पुजारी ले चुके हैं समाधी

मंदिर के पहले पुजारी बाल योगी ब्रम्हचारी स्वामी चरणदास महराज ने साल 1991 में मंदिर परिसर में ही समाधी ले ली. इसके बाद मंदिर की पूजा बाल ब्रम्हचारी स्वामी ओमप्रकाश दास महाराज करने लगे और उन्होंने भी साल 2009 में समाधी ले ली. मौजूदा समय में स्वामी ओमकार महाराज मंदिर की पूजा और देखरेख करते हैं.

सूर्य की पहली किरण पड़ती है मां शीलता के चरणों में

स्वामी ओमकार महाराज ने बताया कि सूर्योदय के समय सूर्य की पहली किरण मां शीलता के चरणों में पड़ती है. उन्होंने बताया कि यहां पर जिसकी भी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वह मंदिर परिसर में स्थित पेड़ में एक घंटी बाधता है. शिवपुराण और महाभारत में ही यहां पर बाणासुर के साम्राज्य होने का जिक्र किया गया है. वहीं मंदिर के पुजारी नीरज कुमार शर्मा ने बताया कि मंदिर में शीतला मां के नीचे एक कुंड है, उसके पानी में आज भी कीड़े नहीं पड़े हैं. उन्होंने बताया कि यह कुंड भी प्राचीन समय से ही है.

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