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फूलन देवी नरसंहार​​​​​​​ के बाद बनी थी पुलिस चौकी, 38 साल में नहीं दर्ज हुई एक भी शिकायत - उत्तर प्रदेश पुलिस

'उत्तर प्रदेश पुलिस सदैव तत्पर है', यह स्लोगन आमतौर पर सूबे के सभी थानों में लिखा हुआ देखा जा सकता है, लेकिन आज हम आपको कानपुर देहात के बेहमई रिपोर्टिंग पुलिस चौकी के बारे में दिखाने जा रहे हैं, जहां 38 सालों में एक भी शिकायत दर्ज नहीं हुई है.

कानपुर देहात बेहमई रिपोर्टिंग पुलिस चौकी.
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Published : Nov 16, 2019, 10:23 PM IST

कानपुर देहात: 'उत्तर प्रदेश पुलिस सदैव तत्पर है', यह स्लोगन आमतौर पर सूबे के सभी थानों में लिखा हुआ देखा जा सकता है, लेकिन आज हम आपको यूपी पुलिस की एक ऐसी रिपोर्टिंग पुलिस चौकी के बारे में दिखाने जा रहे हैं, जिसे बने हुए तो 38 साल बीत चुके हैं और यहां आज भी पुलिसकर्मी तैनात हैं, लेकिन इन 38 वर्षों में आज तक यहां तैनात पुलिसकर्मियों ने एक भी शिकायत दर्ज करने की जहमत तक नहीं उठाई. जब ईटीवी भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया तो पता चला रिपोर्टिंग चौकी ताले लटके हुए हैं. देश की ऐतिहासिक रिपोर्टिंग चौकी की पुलिस आखिरकार कहां रहती है.

कानपुर देहात बेहमई रिपोर्टिंग पुलिस चौकी.

14 फरवरी 1981
यह चौकी कानपुर देहात के बेहमई इलाके की है, जहां एक समय डकैत फूलन देवी, आतंक का पर्याय बना चुकी थी. फूलन देवी ने इसी बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 के दिन 20 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके एक साथ मौत के घाट उतार दिया था. फूलन देवी नरसंहार में बचे आखरी गवाह जन्टर सिंह बताते है कि यूपी का अब तक का यह सबसे बड़ा नरसंहार था. इसकी चर्चा देश ही नहीं विदेशों में भी जोरों पर थी. मामला विश्व प्रसिद्ध हुआ और तत्कालीन सरकार ने इस इलाके की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करने के लिए यहां एक रिपोर्टिंग पुलिस चौकी का निर्माण करवाया, लेकिन आज इसी चौकी में लटकता हुआ ताला नजर आता है.

फूलन देवी नरसंहार
फूलन देवी नरसंहार में बचे आखिरी गवाह जन्टर सिंह बताते हैं कि रिपोर्टिंग पुलिस चौकी ऐसे जगहों पर बनाई जाती है, जो थाने से काफी दूर हो, लेकिन वहां पुलिस की चहल कदमी हर वक्त हो जिस दौर में इस पुलिस चौकी का निर्माण किया गया था, उस वक्त इस इलाके में सड़क तक नहीं थी. लिहाजा कुछ समय बाद इलाके के बड़े क्षेत्रफल को देखते हुए स्थानीय पुलिस महकमे ने यहां राजपुर थाने का निर्माण कराया.

चौकी में नहीं दर्ज है एक भी एफआईआर
इसके बाद इस पुलिस चौकी को राजपुर थाने के अधीन कर दिया गया, तब से यहां लगातार पुलिसकर्मियों की तैनाती रही है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि इन 38 वर्षों में आज तक इस बेहमई पुलिस चौकी में तैनात पुलिसकर्मियों ने एक भी शिकायत दर्ज करने की जहमत तक नहीं उठाई. बेहमई गांव के ग्रामीणों से बात की तो उनका साफतौर से कहना था अच्छा ही है कि रिपोर्टिंग चौकी में कोई काम नहीं होता, नहीं तो महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध को लेकर महिलाएं पुलिस के पास पहुंच जाती.

ताला डाल कर लापता पुलिसकर्मी
आपको बताते चलें कि यह रिपोर्टिंग पुलिस चौकी इस समय राजपुर थाने के अंतर्गत है और पूरे राजपुर थाने के गांव में से 25% गांव इसी बेहमई पुलिस चौकी के दायरे में आती है. वहीं इस पूरे मामले में कानून के अफसरों का कहना है कि इस पुलिस चौकी में एक भी शिकायत दर्ज न होने की वजह से शासन व प्रशासन की क्षमता को दर्शाता है. साथ ही 38 वर्षों से तैनात पुलिसकर्मियों की तनख्वाह के नाम पर शासन द्वारा धन का दुरुपयोग किया जा रहा है.

रिपोर्टिंग पुलिस चौकी में 38 वर्षों में एक भी एफआईआर दर्ज न हुई हो उसे बनाने का मतलब क्षेत्रीय लोगों का उपहास करना है. नाम मात्र के लिए चौकी में पुलिसकर्मी तैनात हैं, जो चौकी में ताला डाल कर लापता रहते हैं.

चौकी प्रभारी समेत चार सिपाही और होमगार्ड बेहमई रिपोर्टिंग चौकी में तैनात है. जब से (Crime and Criminal Tracking Network and Systems) पुलिस विभाग में लागू हुआ है, तब से चौकियों में एफआईआर लिखना बंद हो गई है.
अनूप कुमार, एएसपी

कानपुर देहात: 'उत्तर प्रदेश पुलिस सदैव तत्पर है', यह स्लोगन आमतौर पर सूबे के सभी थानों में लिखा हुआ देखा जा सकता है, लेकिन आज हम आपको यूपी पुलिस की एक ऐसी रिपोर्टिंग पुलिस चौकी के बारे में दिखाने जा रहे हैं, जिसे बने हुए तो 38 साल बीत चुके हैं और यहां आज भी पुलिसकर्मी तैनात हैं, लेकिन इन 38 वर्षों में आज तक यहां तैनात पुलिसकर्मियों ने एक भी शिकायत दर्ज करने की जहमत तक नहीं उठाई. जब ईटीवी भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया तो पता चला रिपोर्टिंग चौकी ताले लटके हुए हैं. देश की ऐतिहासिक रिपोर्टिंग चौकी की पुलिस आखिरकार कहां रहती है.

कानपुर देहात बेहमई रिपोर्टिंग पुलिस चौकी.

14 फरवरी 1981
यह चौकी कानपुर देहात के बेहमई इलाके की है, जहां एक समय डकैत फूलन देवी, आतंक का पर्याय बना चुकी थी. फूलन देवी ने इसी बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 के दिन 20 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके एक साथ मौत के घाट उतार दिया था. फूलन देवी नरसंहार में बचे आखरी गवाह जन्टर सिंह बताते है कि यूपी का अब तक का यह सबसे बड़ा नरसंहार था. इसकी चर्चा देश ही नहीं विदेशों में भी जोरों पर थी. मामला विश्व प्रसिद्ध हुआ और तत्कालीन सरकार ने इस इलाके की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करने के लिए यहां एक रिपोर्टिंग पुलिस चौकी का निर्माण करवाया, लेकिन आज इसी चौकी में लटकता हुआ ताला नजर आता है.

फूलन देवी नरसंहार
फूलन देवी नरसंहार में बचे आखिरी गवाह जन्टर सिंह बताते हैं कि रिपोर्टिंग पुलिस चौकी ऐसे जगहों पर बनाई जाती है, जो थाने से काफी दूर हो, लेकिन वहां पुलिस की चहल कदमी हर वक्त हो जिस दौर में इस पुलिस चौकी का निर्माण किया गया था, उस वक्त इस इलाके में सड़क तक नहीं थी. लिहाजा कुछ समय बाद इलाके के बड़े क्षेत्रफल को देखते हुए स्थानीय पुलिस महकमे ने यहां राजपुर थाने का निर्माण कराया.

चौकी में नहीं दर्ज है एक भी एफआईआर
इसके बाद इस पुलिस चौकी को राजपुर थाने के अधीन कर दिया गया, तब से यहां लगातार पुलिसकर्मियों की तैनाती रही है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि इन 38 वर्षों में आज तक इस बेहमई पुलिस चौकी में तैनात पुलिसकर्मियों ने एक भी शिकायत दर्ज करने की जहमत तक नहीं उठाई. बेहमई गांव के ग्रामीणों से बात की तो उनका साफतौर से कहना था अच्छा ही है कि रिपोर्टिंग चौकी में कोई काम नहीं होता, नहीं तो महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध को लेकर महिलाएं पुलिस के पास पहुंच जाती.

ताला डाल कर लापता पुलिसकर्मी
आपको बताते चलें कि यह रिपोर्टिंग पुलिस चौकी इस समय राजपुर थाने के अंतर्गत है और पूरे राजपुर थाने के गांव में से 25% गांव इसी बेहमई पुलिस चौकी के दायरे में आती है. वहीं इस पूरे मामले में कानून के अफसरों का कहना है कि इस पुलिस चौकी में एक भी शिकायत दर्ज न होने की वजह से शासन व प्रशासन की क्षमता को दर्शाता है. साथ ही 38 वर्षों से तैनात पुलिसकर्मियों की तनख्वाह के नाम पर शासन द्वारा धन का दुरुपयोग किया जा रहा है.

रिपोर्टिंग पुलिस चौकी में 38 वर्षों में एक भी एफआईआर दर्ज न हुई हो उसे बनाने का मतलब क्षेत्रीय लोगों का उपहास करना है. नाम मात्र के लिए चौकी में पुलिसकर्मी तैनात हैं, जो चौकी में ताला डाल कर लापता रहते हैं.

चौकी प्रभारी समेत चार सिपाही और होमगार्ड बेहमई रिपोर्टिंग चौकी में तैनात है. जब से (Crime and Criminal Tracking Network and Systems) पुलिस विभाग में लागू हुआ है, तब से चौकियों में एफआईआर लिखना बंद हो गई है.
अनूप कुमार, एएसपी

Intro:नोट_यहा खबर sarveshwar pathak सर के आदेशानुसार भेजी जा रही है।


एंकर_उत्तर प्रदेश पुलिस सदैव तत्पर है.. यह स्लोगन आमतौर पर सूबे के सभी थानों में लिखा हुआ देखा जा सकता है..लेकिन आज हम आपको यूपी पुलिस की एक ऐसी रिपोर्टिंग पुलिस चौकी के बारे में दिखा रहे हैं..जिसे बने हुए तो 38 साल बीत चुके हैं..और यहां आज भी पुलिसकर्मी तैनात हैं.. लेकिन इन 38 वर्षों में आज तक यहां तैनात पुलिसकर्मियों ने एक भी एफ आई आर दर्ज करने की जहमत तक नहीं उठाई..और शायद ऐसी तस्वीरें उत्तर प्रदेश क्या पूरे भारत देश के किसी राज्य में देखने को नहीं मिलेगी..जब ईटीवी भारत की टीम ने रियलिटी चेक किया तो पता चला रिपोर्टिंग चौकी ताले से जड़ी नजर आती है..और देश की ऐतिहासिक रिपोर्टिंग चौकी पुलिस आखिरकार पुलिस कहा रहती है लापता...देखे etv भारत की इस स्पेशल रिपोर्ट में....


Body:वी0ओ0_मामला कानपुर देहात के बेहमई इलाके का है.. जहां एक समय डकैत फूलन देवी का आतंक का पर्याय बना चुकी थी.. और फूलन देवी ने इसी बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 के दिन 20 ठाकुरों को लाइन में खड़ा कर कर एक साथ मौत के घाट उतार दिया था..यू पी का अब तक का यह सबसे बड़ा नरसंहार था..जिसकी चर्चा देश ही नहीं विदेश में जोरों पर थी..मामला विश्व प्रसिद्ध हुआ..और तत्कालीन सरकार ने इस इलाके की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता करने के लिए यह एक रिपोर्टिंग पुलिस चौकी की निर्माण करवाया..रिपोर्टिंग पुलिस चौकी ऐसे जगहों पर बनाई जाती है... जो थाने से काफी दूर हो लेकिन वह पुलिस की चहल कदमी हर वक्त हो जिस दौर में इस पुलिस चौकी का निर्माण किया गया था.. उस वक्त इस इलाके में सड़क तक नहीं थी... लिहाजा कुछ समय बाद इलाके के बड़े क्षेत्रफल को देखते हुए स्थानीय पुलिस महकमे ने यहां राजपुर थाने का निर्माण कराया जिसके बाद इस पुलिस चौकी को राजपुर थाने के अधीन कर दिया गया...तब से यह लगातार पुलिस कर्मियों की तैनाती रही है लेकिन इन 38 वर्षों में आज तक इस बेहमई पुलिस चौकी में तैनात पुलिसकर्मियों ने एक भी एफ आई आर दर्ज करने की जहमत तक नहीं उठाई.. ऐसे में इस ऐतिहासिक पुलिस चौकी के बारे में जब ईटीवी भारत की टीम ने जानना चाहा कानपुर देहात के पुलिस के अधिकारियों से तो उनका कहना था यह सुविधा सिर्फ थानों में होती है और अपने पुलिसकर्मियों का बचाव करते नजर आए... तो वहीं पर बेहमई गांव के ग्रामीणों से बात की तो उनका सांचौर से कहना था अच्छा ही है की रिपोर्टिंग चौकी में कोई काम नही होता..नही तो महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध को लेकर महिलाएं पुलिस के पास पहुच जाए.... आपको बताते चलें कि यह रिपोर्टिंग पुलिस चौकी इस समय राजपुर थाने के अंतर्गत है और पूरे राजपुर थाने के गांव में से 25% गांव इसी बेहमई पुलिस चौकी के दायरे में आते हैं.. वहीं इस पूरे मामले में कानून के अप्सरो का कहना है.. कि इस पुलिस चौकी में एक भी एफ आई आर दर्ज ना होने की वजह शासन व प्रशासन की क्षमता को दर्शाता है...साथ ही 38 वर्षों से तैनात पुलिस कर्मियों की तनख्वाह के नाम पर शासन द्वारा धन का दुरुपयोग किया जा रहा है..वहीं जिस रिपोर्टिंग पुलिस चौकी में 38 वर्षों में एक भी एफ आई आर दर्ज ना हुई हो उसे बनाने का मतलब क्षेत्रीय लोगों का उपसा करना है...भले ही चौकी में पुलिस कर्मी तैनात हो लेकिन वो रिपोर्टिंग चौकी में ताला डाल कर लापता रहते है...

वाईट_जन्टर सिंह (भूलन देवी नरसंहार में बचे आखरी गवाह)

वाईट_जितेंद्र प्रताब सिंह( एडवोकेट सदस्य विधिक सेवा परिषद )

वाईट_गांधी सिंह (पूर्व प्रधान बेहमई गांव)


Conclusion:वी0ओ0_तो वहीं पर etv भारत की टीम ने इस पूरे मामले में कानपुर देहात के पुलिस अधिकारियों से बात की तो उनका साफ तौर से कहना था की चौकी प्रभारी समेत चार सिपाही व होमगार्ड बेहमई रिपोर्टिंग चौकी में तैनात है.. और जब से c c t n s पुलिस विभाग में लागू हुआ है..तब से चौकियों में f.i.r. लिखना बंद हो गई अब हम सवाल ये उठता है यह सेवा तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुश्किल से आए 1 साल ही हुए हैं लागू हुए तो 37 साल तक चौकी की पुलिस क्या कर रही थी....

वाईट_अनूप कुमार (asp कानपुर देहात)

Date- 16_11_2019

Center - Kanpur dehat

Reporter - Himanshu sharma

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