कानपुर देहातः घाटमपुर क्षेत्र के बेहटा-बुजुर्ग गांव में स्थित भगवान जगन्नाथ का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है. मान्यता है कि यह मंदिर मानसून आने की सूचना पहले ही देता है. स्थानीय निवासियों और पुरातत्व विभाग का कहना है कि मंदिर की छत से करीब 5 से 7 दिन पहले ही बूंदें टपकने लगती हैं. ऐसा कहा जाता है कि जितनी बड़ी बूंदें होंगी उसी के अनुसार बारिश होने के आसार होते हैं.
मंदिर के गुंबद से टपकता है पानी
घाटमपुर में भीतरगांव के बेहटा-बुजुर्ग गांव स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के गुंबद में लगे पत्थरों से पानी की बूंदें टपकनी शुरू हो गई हैं. मंदिर के महंत ने बताया की पानी की बूंदें 2 जून से टपकनी शुरू हुई हैं. अभी इनका आकार काफी छोटा है. गांव के बुजुर्गों ने बताया की वह लोग अपने पुरखों से सुनते चले आए हैं कि जगन्नाथ मंदिर की छत पर लगे पत्थर से जब पानी की बूंदें टपकनी शुरू हो जाती हैं तो इसके एक पखवारे बाद मानसून सक्रिय हो जाता है. यदि बूंदों का आकार कम होता है तो उस वर्ष बारिश भी कमजोर होती है. गांव वालों ने बताया की वह लोग पत्थर से टपकने वाली बूंदों को मानसूनी बारिश का आगाज मानकर खेती-किसानी के काम शुरू करते हैं.
कई बार की गई रहस्य जानने की कोशिश
मंदिर से पानी टपकने के इस रहस्य को जानने के लिए कई बार प्रयास हो चुके हैं, लेकिन तमाम सर्वेक्षणों के बाद भी मंदिर के रहस्य का वैज्ञानिक पता नहीं लगा सके हैं. पुरातत्व विभाग ने बस इतना ही पता लग पाया कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं सदी में हुआ था. उसके पहले कब और कितने जीर्णोद्धार हुए या इसका निर्माण किसने कराया जैसी जानकारियां आज भी अबूझ पहेली बनी हुई हैं.
मंदिर के इतिहास में मतभेद
इतिहासकारों के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण 9वीं-10वीं शताब्दी में हुआ था. मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं. साथ ही प्रांगण में सूर्यदेव और पद्मनाभ की मूर्तियां भी हैं. इस मंदिर को चूना-पत्थर के इस्तेमाल से बनाया गया है. इसकी दीवारें 14 फीट मोटी हैं. बाहरी बनावट बौद्ध मठ की तरह है, जिससे मंदिर का निर्माण सम्राट आशोक के शासन काल का बताया जाता है. वहीं मंदिर के बाहर मोर का निशान और चक्र बने होने से इसे सम्राट हर्षवर्धन के काल का बताया जाता है.
उड़ीसा शैली से अलग है यह मंदिर
उड़ीसा शैली के जगन्नाथ मंदिरों में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके अग्रज बलदाऊ और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं होती हैं. किंतु भीतरगांव का यह मंदिर इससे अलग है. अणुवृत्त आकार के मंदिर का भीतरी हिस्सा करीब 700 वर्ग फीट है. पूर्व मुखी द्वार के सामने प्राचीन कुआं और तालाब भी है. मंदिर के पुजारी दिनेश शुक्ल बताते हैं कि उनकी सात पीढ़ियां इस मंदिर में पूजा-पाठ करती आई हैं और अब वे यहां पूजा-पाठ करते हैं.