कानपुर देहात: जनपद में प्राचीनकाल का एक ऐसा शिव मंदिर मौजूद है, जिसकी लोगों में खासी मान्यता है. जिसे बाणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.बाणेश्वर महादेव मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना दैत्य राज बाली के पुत्र बाणासुर ने कराई थी.
महाशिवरात्रि के अवसर पर इस देवालय पर पंद्रह दिवसीय मेले का प्रति वर्ष आयोजन होता है. इस अवसर पर जालौन ,बांदा ,हमीरपुर तथा कानपुर देहात के पैदल तीर्थ यात्री जो पहले कानपुर जाकर गंगा जल भर कर अपनी- अपनी कांवड़ के साथ जलाभिषेक के लिए लोधेश्वर महादेव जिला बाराबंकी जाते हैं. वापस आकर बाणेश्वर महादेव का जलाभिषेक करते हैं.
बाणासुर ने किया था शिवलिंग की स्थापना-
बाणासुर की पुत्री ऊषा ने दासी चित्रलेखा के जरिये भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनुरुद्ध का अपरहण करा लिया था. इस पर श्री कृष्ण व बाणासुर के बीच युद्ध हुआ था तो नगर नष्ट हो गया. इसके बाद में राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने नगर को फिर से बसाकर बाणापुरा जन्मेजय नाम दिया. बेटी ऊषा की भक्ति को देखते हुए बाणासुर ने कैलाश पर्वत जाकर बाबा शिव को भक्ति से मनाकर अपनी भुजाओं पर लादकर कानपुर देहात के बनिपारा जिनाई गांव में स्थापित किया.
कैसे पहुंचे बाणेश्वर महादेव मंदिर-
झींझक रेलवे स्टेशन से उतर कर रोड द्वारा मिंडा का कुंआ से होकर बाणेश्वर महादेव मंदिर पहुंच सकते है. रसूलाबाद कस्बे से इस मंदिर की दूरी 20 किलोमीटर है. बिल्हौर रेलवे स्टेशन से उतर कर रसूलाबाद होकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.
सिठऊपुरवा (श्रोणितपुर) दैत्यराज वाणासुर की राजधानी थी. दैत्यराज बलि के पुत्र वाणासुर ने मंदिर में विशाल शिवलिंग की स्थापना की थी. श्रीकृष्ण वाणासुर युद्ध के बाद स्थल ध्वस्त हो गया था.परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने इसका जीर्णोद्धार कराकर वाणपुरा जन्मेजय नाम रखा था, जो अपभ्रंश रूप में बनीपारा जिनई हो गया.
-प्रो. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी,इतिहास लेखक