कन्नौज : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित होकर युवा विज्ञान और तकनीक की सहायता से नई-नई खोज करने में लगे हैं. इसी का एक उदाहरण कन्नौज जिले में देखने को मिला. इंटर की परीक्षा पास कर चुके गौरव नाम के छात्र ने कबाड़ से जुगाड़ की तकनीक अपनाकर कम लागत में एक डिजाइनिंग मशीन तैयार की है. यह डिजाइनिंग मशीन चंद मिनटों में कठिन से कठिन आकृति को कागज पर बना देती है. साथ ही नन्हें साइंटिस्ट ने आंखों से दिव्यांग लोगों के एक चश्मा भी बनाया है. इसके अलावा छात्र गौरव ने कबाड़ से तमाम उपकरण तैयार किए हैं. इसके लिए गौरव को सम्मानित भी किया जा चुका है.
इत्रनगरी के कन्हैया लाल विद्या मंदिर इंटर कॉलेज मकरंद नगर से कक्षा 12 की परीक्षा पास कर चुका छात्र गौरव नीट की तैयारी कर रहा है. नन्हे वैज्ञानिक गौरव ने अपने घर के अंदर एक छोटे से कमरे में प्रयोगशाला बना रखी है. इसमें वह पिछले कई सालों से नए-नए आविष्कार कर अपनी काबिलियत का लोहा मनवा रहे हैं. गौरव ने सबसे पहले आंखों पर लगने वाली चश्मे के फ्रेम जैसी एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाई, जो आंख से देख न पाने वाले दिव्यांगों के लिए मददगार साबित हो सकती है. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को आंखों पर लगाने पर दिव्यांग को आसपास की चीजों से टकराने से पहले ही बीप की आवाज निकालकर सतर्क कर देती है.
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बिना थम्ब लगाए स्टार्ट होती है बाइक
इतना ही नहीं, नन्हे साइंटिस्ट ने अपनी लैब में कबाड़ से एक ड्रोन कैमरा भी तैयार कर डाला. फिर गौरव ने थम्ब से बाइक स्टार्ट करने की डिवाइस का आविष्कार किया. बाइक को डिवाइस से लगाने के बाद बिना थम्ब लगाए बाइक को स्टार्ट नहीं कर सकते हैं. इसके अलावा मोबाइल से घर की लाइट व पंखा चलाने की भी डिवाइस गौरव ने बना रखी है.
50 हजार की मशीन महज 7 हजार में बनाया
गौरव ने बाजार में बिकने वाली करीब 50 हजार रुपये से अधिक कीमत वाली डिजाइनिंग मशीन को कबाड़ से जुगाड़ की तकनीक से महज 5 से 7 हजार रुपये में बनाकर तैयार कर दिया. डिजाइनिंग मशीन की खास बात यह है कि चंद मिनटों में ही बड़ी से बड़ी या यूं कहें तो कठिन कठिन से आकृति को तैयार कर देती है. गौरव को अपनी इन उपलब्धियों की वजह से कई जगह सम्मानित भी किया जा चुका है.
रक्षा मंत्रालय के लिए बनाना चाहता है डिवाइस
गौरव का सपना है कि वह देश की सेवा करें. साथ ही देश के लिए पूर्णतया स्वदेशी उपकरण बनाना चाहता है. लेकिन उसके आगे आर्थिक समस्या व संसाधन न होने के कारण वह नए आविष्कार नहीं कर पा रहा है. उसका कहना है कि अगर उसको कहीं से सपोर्ट मिल जाए तो वह रक्षा मंत्रालय के लिए ऐसी-ऐसी डिवाइस बना सकता है जो देश के जवान के जीवन रक्षा में काम आ सके और आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रख सके.