कन्नौज: लॉकडाउन के दौरान अन्य राज्यों से वापस अपने घर आए प्रवासी मजदूरों के हाल उनके गांव में भी अच्छे नहीं हैं. कुछ ऐसा ही हाल जिले के फतेहपुर जसोदा निवासी श्रीराम का भी है. श्रीराम करीब 30 साल से तमिलनाडु में कुल्फी बेच कर परिवार का भरण-पोषण कर रहा था. लॉकडाउन के दौरान उसे तमिलनाडु से वापस आना पड़ा. अब इस परिवार के सामने खाने के भी लाले हैं. परिवार के सामने जब पेट पालने की समस्या आ खड़ी हुई तो परिवार के लोगों ने जेवर बेचना शुरू कर दिया है. परिवार के एक सदस्य श्रीराम का कहना है कि उन्हें सरकारी सुविधाओं का भी कोई लाभ नहीं मिला. अब ट्रेनें चालू होने का इंतजार है. ट्रेन चालू होते ही परिवार ने फिर तमिलनाडु जाने की तैयारी कर ली है. उनका कहना है कि वहां से काम न मिलने की वजह से वापस आए थे और यहां भी कुछ काम नहीं मिल रहा.
बच्चों की भूख मिटाने के लिए मां ने आधे दाम में तोड़िया बाजार में बेच दी
प्रवासी परिवार को गांव में अब तक न मुफ्त राशन मिला है और न ही मनरेगा में काम दिया गया. बच्चों की भूख मिटाने के लिए मां ने आधे दाम में तोड़िया बाजार में बेच दी. वहीं इस बारे में ग्राम प्रधान आशा देवी का कहना है कि श्रीराम ने उनसे संपर्क नहीं किया है. उनका मनरेगा जॉबकार्ड बनवाने के साथ ही उन्हें अन्य योजनाओं का लाभ भी दिलाया जाएगा.
परिवार में नौ बच्चों का पालन-पोषण हुआ मुश्किल
श्रीराम करीब 30 साल से तमिलनाडु में कुल्फी बेचने का काम कर रहा था. इससे पति, पत्नी और नौ बच्चों का गुजारा चल रहा था. लॉकडाउन में काम बंद होने से 18 मई को श्रीराम पत्नी और बच्चों को लेकर ट्रेन से गांव लौट आया. यहां कोई काम न मिलने से नौ बच्चों के भरण-पोषण की समस्या उनके सामने आ खड़ी हुई है. ऐसे में परिवार के लोग खेतों में काम कर भुट्टे तोड़ कर पेट पाल रहे हैं.
सरकार से मिला लैपटॉप बेचना चाहती है बेटी
तमिलनाडु से लौटे श्रीराम की सबसे बड़ी बेटी सुलोचना 20 साल की हैं. उसे इंटर की परीक्षा पास करने पर तमिलनाडु सरकार की ओर से मुफ्त लैपटॉप मिला था. अब जब परिवार के सामने भुखमरी का संकट है, तो सुलोचना अपना लैपटॉप बेचकर परिवार की आर्थिक मदद करना चाहती थी. हालांकि अब तक उसे लैपटॉप का कोई खरीददार नहीं मिला है.