झांसी: जिले के कैंट क्षेत्र में स्थित मैमासन माता का मंदिर सिद्धपीठ माना जाता है. एक हजार साल पुराने इस मंदिर की देख-रेख की जिम्मेदारी इस समय सेना ने संभाल रखी है. बताया जाता है कि अंग्रेजों की सेना ने 1857 में झांसी में हुए विद्रोह के समय जनरल रोज के साथ इस पहाड़ी पर सैनिक पड़ाव डाला था. पहाड़ी पर पहले एक छोटा मंदिर हुआ करता था, जिसका बाद में भारतीय सेना ने जीर्णोद्धार कराया था.
मैमासन मंदिर की कहानी
मैमासन मंदिर बेहद प्राचीन मंदिर है. ऐसा माना जाता है कि कैमासन और मैमासन नाम की दो बालिकाएं भेड़-बकरी चरा रही थीं. कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने उन पर बुरी नजर डालते हुए पीछा किया. मैमासन इस पहाड़ी पर आकर धरती में समा गई. जब आतताई चले गए तो तीन दिन बाद मैमासन बाहर निकली. मैमासन ने शादी न करने का संकल्प लिया और यहीं पर तप करने लगीं.
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इनका निवास स्थान तप के कारण बना सिद्धपीठ
धर्म के जानकार बताते हैं कि मैमासन की तपस्या के कारण यह मैमासन का सिद्धपीठ मंदिर बन गया. दूसरी बहन कैमासन मैमासन से कुछ दूर विश्वविद्यालय के निकट पहाड़ी पर स्थित हैं. कैमासन बड़ी बहन थीं और वर्तमान में उनका मंदिर विश्वविद्यालय के पास पहाड़ी पर स्थित है.
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झांसी की रानी की कुलदेवी का मंदिर
मंदिर के पुजारी सेना के रिसलदार सत्य नारायण मिश्रा बताते हैं कि इस पहाड़ी पर सन 1216 में महोबा के राजा परमदेव ने छोटा सा मंदिर बनवाया था. बताया जाता है कि उस समय आल्हा-ऊदल भी यहां आए थे. इसके अलावा झांसी की रानी की कुलदेवी का मंदिर भी रहा है.