झांसी: शारीरिक अक्षमता को चुनौती देते हुए सीमा तिवारी ने अपने हौसलों के दम पर जो उड़ान भरी, वह किसी मिसाल से कम नहीं है. सीमा की कहानी बहुत सारी महिलाओं को प्रेरणा देती है. डकैतों के हमले के दौरान दोनों पैरों से अपंग हो जाने के बावजूद सीमा ने जिंदगी से हार नहीं मानी. जिंदगी को नए सिरे से जीने की कसम खाई और महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित करने का काम शुरू किया. सीमा की लगन और उनके संघर्ष के कारण उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें यश भारती महारानी अहिल्याबाई बाई होल्कर अवार्ड से सम्मानित कर चुकी है.
सीमा की जिंदगी में दर्दनाक मोड़ साल 1996 में आया था. सीमा तिवारी अपने परिवार के साथ मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहती थी. उनकी शादी 30 मई 1996 को तय हुई थी, लेकिन उससे पहले 18 फरवरी की रात घर में डकैतों ने धावा बोल दिया. डकैतों ने परिवार के लोगों पर हमले शुरू कर दिए. सीमा की नींद खुली तो वह किसी तरह छिपकर छत पर पहुंच गई और दरवाजा बंद कर दिया. पुलिस को सूचना देने के मकसद से थाने तक पहुंचने के लिए सीमा ने छत से छलांग लगा दी. इससे सीमा बुरी तरह जख्मी हो गई, लेकिन किसी तरह वह घिसटते हुए पुलिस चौकी पहुंच गई और पुलिस ने मौके से 7 डकैतों को पकड़ लिया था. घटना के बाद उनके दोनों पैर खराब हो गए और लगभग 12 साल वह बिस्तर पर रहीं.
सीमा की लगन और संघर्ष को देखते हुए साल 2015 में यश भारती अहिल्याबाई होल्कर सम्मान से तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सम्मानित किया था. सीमा बताती हैं कि फिलहाल वे झांसी के अलग-अलग हिस्सों में महिलाओं और लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये बैग, खिलौने, पर्स जैसे कई सामान बनाने की ट्रेनिंग देती हैं. सीमा बताती हैं कि 2012 में उन्होंने उड़ान नाम से संस्था बनाई और उसी के माध्यम से प्रशिक्षण देने का काम कर रही हैं.