झांसी: रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहासकारों और साहित्यकारों की प्रिय नायिका रही हैं. विदेशी लेखकों को भी उनका जीवन चरित्र काफी आकर्षित करता रहा है. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने उस समय अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया था, जब आस-पास की बड़ी रियासतों ने अंगेजी हुकूमत के सामने घुटने टेक दिए थे. अंग्रेजों से लोहा लेते हुए रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं थीं.
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित है. मशहूर उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन चरित्र पर आधारित एक उपन्यास 'झांसी की रानी' लिखी, जो बेहद लोकप्रिय हुई. झांसी के लेखक ओम शंकर असर ने ऐतिहासिक तथ्यों को समेटते हुए 'झांसी क्रांति की काशी' पुस्तक लिखी है.
बुंदेलखंड महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बाबू लाल तिवारी ने कहा कि जिस युग की वह नायिका हैं, उस युग में लोग अंग्रेजों के खिलाफ बंद कमरे में भी बात नहीं कर सकते थे. उस समय उन्होंने बगावत करने का काम किया.