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बलिदान दिवस: मणिकर्णिका कैसे बनीं रानी लक्ष्मीबाई, जानिए वीरता से भरी कहानी - रानी लक्ष्मीबाई

23 साल की उम्र में 18 जून 1858 को अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ने वीर गति को प्राप्त किया. इसलिए 18 जून को रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस मनाया जाता है.

अंग्रेजों से लड़ते हुए 18 जून को शहीद हुई थींं लक्ष्मीबाई.
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Published : Jun 18, 2019, 3:23 PM IST

Updated : Jun 18, 2019, 9:36 PM IST

झांसी: रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहासकारों और साहित्यकारों की प्रिय नायिका रही हैं. विदेशी लेखकों को भी उनका जीवन चरित्र काफी आकर्षित करता रहा है. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने उस समय अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया था, जब आस-पास की बड़ी रियासतों ने अंगेजी हुकूमत के सामने घुटने टेक दिए थे. अंग्रेजों से लोहा लेते हुए रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं थीं.

अंग्रेजों से लड़ते हुए 18 जून को शहीद हुई थींं लक्ष्मीबाई.
18 जून को वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस है. रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हुई थीं. रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1835 को वाराणसी में हुआ था. उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था. बचपन से ही उन्हें घुड़सवारी और तलवारबाजी करना पसंद था. 1850 में उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई थी.

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित है. मशहूर उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन चरित्र पर आधारित एक उपन्यास 'झांसी की रानी' लिखी, जो बेहद लोकप्रिय हुई. झांसी के लेखक ओम शंकर असर ने ऐतिहासिक तथ्यों को समेटते हुए 'झांसी क्रांति की काशी' पुस्तक लिखी है.

बुंदेलखंड महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बाबू लाल तिवारी ने कहा कि जिस युग की वह नायिका हैं, उस युग में लोग अंग्रेजों के खिलाफ बंद कमरे में भी बात नहीं कर सकते थे. उस समय उन्होंने बगावत करने का काम किया.

झांसी: रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहासकारों और साहित्यकारों की प्रिय नायिका रही हैं. विदेशी लेखकों को भी उनका जीवन चरित्र काफी आकर्षित करता रहा है. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने उस समय अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया था, जब आस-पास की बड़ी रियासतों ने अंगेजी हुकूमत के सामने घुटने टेक दिए थे. अंग्रेजों से लोहा लेते हुए रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं थीं.

अंग्रेजों से लड़ते हुए 18 जून को शहीद हुई थींं लक्ष्मीबाई.
18 जून को वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस है. रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हुई थीं. रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1835 को वाराणसी में हुआ था. उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था. बचपन से ही उन्हें घुड़सवारी और तलवारबाजी करना पसंद था. 1850 में उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई थी.

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित है. मशहूर उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन चरित्र पर आधारित एक उपन्यास 'झांसी की रानी' लिखी, जो बेहद लोकप्रिय हुई. झांसी के लेखक ओम शंकर असर ने ऐतिहासिक तथ्यों को समेटते हुए 'झांसी क्रांति की काशी' पुस्तक लिखी है.

बुंदेलखंड महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बाबू लाल तिवारी ने कहा कि जिस युग की वह नायिका हैं, उस युग में लोग अंग्रेजों के खिलाफ बंद कमरे में भी बात नहीं कर सकते थे. उस समय उन्होंने बगावत करने का काम किया.

Intro:झांसी. रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहासकारों और साहित्यकारों की प्रिय नायिका रही हैं। विदेशी लेखकों को भी उनका जीवन चरित्र काफी आकर्षित करता रहा है। कविता और उपन्यास विधा में रानी लक्ष्मीबाई पर लिखे गए पुस्तक बेहद लोकप्रिय हुए। इतिहास लेखकों के लिए तो रानी की कहानी हमेशा से ही रोमांच पैदा करने वाली रही है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने उस समय अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा उठाया था जब आसपास की बड़ी रियासतों ने अंगेजी हुकूमत के सामने घुटने टेक दिए थे। अंग्रेजों से लोहा लेते हुए रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं थीं।


Body:सुभद्रा कुमारी चौहान का काव्य संग्रह झांसी की रानी बेहद चर्चित हुआ और उनकी पंक्तियां - खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी, के माध्यम से लोग रानी को याद कर रोमांचित होते हैं। मशहूर उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा ने रानी लक्ष्मी बाई के जीवन चरित्र पर आधारित एक उपन्यास झांसी की रानी लिखी जो बेहद लोकप्रिय हुई। झांसी के लेखक ओम शंकर असर ने ऐतिहासिक तथ्यों को समेटते हुए पुस्तक लिखी है जिसका नाम है - झांसी क्रांति की काशी। इसके अलावा विदेशी और अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों ने भी रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर काफी कुछ लिखा है।


Conclusion:बुन्देलखण्ड महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ बाबू लाल तिवारी कहते हैं - जिस युग की वे नायिका हैं, उस युग में लोग अंग्रेजों के खिलाफ बंद कमरे में भी बात नहीं कर सकते थे और उन्होंने बगावत करने का काम किया। इसलिए वे कथाकारों, साहित्यकारों, उपन्यासकारों की प्रिय पात्र बन गईं। अवधेष जी ने लिखा है -

जाकी राज न सूरज डूबे, नाम सुने ते चौंक पड़े
सोई झांसी फिर फांसी बनकर अंग्रेजन के पड़ी गरे
दिखा पड़ी काली की झांकी, झांसी वाली रानी में
पानीदार यहां का पानी, आग यहां के पानी में।

बाइट - डॉ बाबू लाल तिवारी - प्राचार्य, बुन्देलखण्ड महाविद्यालय
पीटीसी

लक्ष्मी नारायण शर्मा
झांसी
9454013045
Last Updated : Jun 18, 2019, 9:36 PM IST
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