झांसी: कोविड काल में मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर वेंटिलेटर तक पहुंचने की स्थिति से पहले ही मरीजों से अलर्ट होने की अपील कर रहे हैं. झांसी में कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टरों का दावा है कि वेंटिलेटर पर पहुंच रहे सौ मरीजों में से अधिकतम दो मरीजों की ही जान बच पा रही है. डॉक्टर इसके पीछे की मुख्य वजह मरीजों के अस्पताल तक पहुंचने में हुई देरी मानते हैं.
ऑक्सीजन थेरेपी है कोरोना के लिए कारगर
महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. नरेंद्र सिंह सेंगर के मुताबिक कोविड मरीजों में ऑक्सीजन का स्तर 93 से ऊपर होने पर आमतौर पर ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है. कोरोना का इलाज करने में ऑक्सीजन थेरेपी मुख्य तरीका है. इसके अलावा स्टेरॉयड है और अन्य चीजें हैं. कोरोना के 100 में से 80 मरीज A सिम्पटमैटिक होते हैं.
अधिकतम दो प्रतिशत मरीज की वेंटिलेटर से होती है वापसी
डॉ. सेंगर के मुताबिक 20 प्रतिशत मरीज A सिम्पटमैटिक होते हैं, जिनमें 5 से 6 प्रतिशत को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है. आखिर में 1 या 2 प्रतिशत लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है. यदि मरीज इस स्थिति तक पहुंच जाता है तो उसके वेंटिलेटर पर जाने के बाद बचने की संभावना बहुत कम होती है. 1 या 2 प्रतिशत मरीज ही बच पाते हैं. उनमें बचने के बाद भी लंबे समय के लिए सांस से जुड़ी समस्या रहने की संभावना बहुत रहती है.
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