झांसी: ऐतिहासिक लक्ष्मीताल के सौंदर्यीकरण के नाम पर 54 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी काम अधर में लटका है. इस योजना पर घोटाले के आरोप लगाए जा रहे हैं. तालाब संरक्षण समिति ने मामले को प्रदेश के मुख्य सचिव के सामने ले जाने का निर्णय लिया है.
तालाब की जमीन पर लगातार जारी है अतिक्रमण
तालाब संरक्षण समिति के संयोजक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सुनील तिवारी का कहना है कि लक्ष्मीताल के अभिलेखों में भूमि 83.66 एकड़ दर्ज थी. शासन से इस पूरी जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने की मांग रखी गई थी. तत्कालीन कमिश्नर सत्यजीत ठाकुर ने भू-अभिलेखों के आधार पर जमीन को चिह्नित कराया था. वर्तमान समय में भूमि पर अतिक्रमण लगातार जारी है.
डीपीआर में भी हुआ बदलाव
डॉ. तिवारी के मुताबिक लक्ष्मीताल की डीपीआर 83.66 एकड़ के हिसाब से तैयार हुई थी. साल 2012 में तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने 63 करोड़ रुपये की योजना स्वीकृत की थी. मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद जल निगम ने जो डीपीआर भेजी. उसमें बताया कि तालाब की अवमुक्त जमीन 60 एकड़ है और 54 करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत हुई. इसकी कार्यदायी संस्था जल निगम को बनाया गया. तालाब संरक्षण समिति समय-समय पर इसमें हो रहे घालमेल पर ध्यान देने की मांग उठाता रहा, लेकिन कोई भी ध्यान नहीं दिया गया.
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मुख्य सचिव के पास ले जाएंगे मामला
डॉ. सुनील तिवारी ने बताया कि सौंदर्यीकरण के लिए पूरा 54 करोड़ रुपये खर्च हो गया और भौतिक सत्यापन में देखा जा रहा है कि तीस प्रतिशत भी काम नहीं हुआ. सिर्फ तालाब संरक्षण समिति नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष के लोग भी दबी जुबान में स्वीकार करने लगे हैं कि इसमें घोटाला हुआ है. हम इस मामले को लेकर मुख्य सचिव के पास जाएंगे.