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झांसी : 32 साल पहले रशियन कल्चर एम्बेसी में हुआ था 'झांसी नहीं दूंगी' का मंचन - झांसी न्यूज

साल 1987 में दिल्ली स्थित रसियन कल्चर एम्बेसी में रानी के जीवन पर आधारित नाटक झांसी नहीं दूंगी का अनोखे रूप में मंचन हुआ था. इस नाटक को तत्कालीन सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक साथ देखा था.

जानकारी देते मुकेश नारायण सक्सेना.
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Published : Feb 23, 2019, 11:32 AM IST

झांसी :वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का जीवनचरित्र हमेशा से ही सारी दुनिया के लोगों को प्रेरित और आकर्षित करता रहा है. साल 1987 में दिल्ली स्थित रशियन कल्चर एम्बेसी में रानी के जीवन पर आधारित नाटक झांसी नहीं दूंगी का अनोखे रूप में मंचन हुआ था. इस नाटक को तत्कालीन सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक साथ देखा था. दिल्ली के स्कूली बच्चों ने इस नाटक में अभिनय किया था और इस नाटक का निर्देशन झांसी के रहने वाले क्रांतिकारी मास्टर रुद्र नारायण के पौत्र मुकेश नारायण सक्सेना ने किया था. सक्सेना इस समय भारतीय प्रसारण सेवा में अधिकारी हैं और मुंबई में दूरदर्शन केंद्र में सहायक निदेशक के रूप में कार्यरत है.

जानकारी देते मुकेश नारायण सक्सेना.
  • दरअसल भारत-रुस मैत्री सम्बन्ध के तहत यह नाटक 8 जुलाई 1987 कोखेला गया था.
  • दिल्ली में रसियन कल्चर एम्बेसी के एंटन चेखव ड्रामा स्टूडियो में झांसी नहीं दूंगी नाटक का मंचन किया गया था.
  • इस नाटक का निर्देशन मुकेश नारायण ने किया था जो तब दिल्ली में श्रीराम सेंटर रंगमंडल से जुड़े थे.
  • इस नाटक का मंचन दिल्ली के स्कूली बच्चों ने किया था.इस नाटक के साथ ही कई और नाटक भी मंचित हुए थे.
  • देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव की मौजूदगी में यह नाटक हुआ था.
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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का भी उपयोग नाटक में शानदार तरीके से किया गया था. नाटक को आल्हा के रूप में प्रस्तुत कर इन विद्यार्थियों ने तत्कालीन पीएम राजीव गांधी और रसियन नेता को बेहद प्रभावित किया था.फिलहाल मुम्बई में दूरदर्शन में कार्यरत मुकेश नारायण ने झांसी पहुंचने पर इस नाटक से जुड़े संस्मरण बताएं.साथ ही उन्होंने रोचक अंदाज में नाटक के अंश काव्यात्मक रूप में ईटीवी के कैमरे पर प्रस्तुत किये.मुकेश बताते हैं किहमने भारत-रूस मैत्री सम्बंध में यह नाटक खेला था.

झांसी :वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का जीवनचरित्र हमेशा से ही सारी दुनिया के लोगों को प्रेरित और आकर्षित करता रहा है. साल 1987 में दिल्ली स्थित रशियन कल्चर एम्बेसी में रानी के जीवन पर आधारित नाटक झांसी नहीं दूंगी का अनोखे रूप में मंचन हुआ था. इस नाटक को तत्कालीन सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक साथ देखा था. दिल्ली के स्कूली बच्चों ने इस नाटक में अभिनय किया था और इस नाटक का निर्देशन झांसी के रहने वाले क्रांतिकारी मास्टर रुद्र नारायण के पौत्र मुकेश नारायण सक्सेना ने किया था. सक्सेना इस समय भारतीय प्रसारण सेवा में अधिकारी हैं और मुंबई में दूरदर्शन केंद्र में सहायक निदेशक के रूप में कार्यरत है.

जानकारी देते मुकेश नारायण सक्सेना.
  • दरअसल भारत-रुस मैत्री सम्बन्ध के तहत यह नाटक 8 जुलाई 1987 कोखेला गया था.
  • दिल्ली में रसियन कल्चर एम्बेसी के एंटन चेखव ड्रामा स्टूडियो में झांसी नहीं दूंगी नाटक का मंचन किया गया था.
  • इस नाटक का निर्देशन मुकेश नारायण ने किया था जो तब दिल्ली में श्रीराम सेंटर रंगमंडल से जुड़े थे.
  • इस नाटक का मंचन दिल्ली के स्कूली बच्चों ने किया था.इस नाटक के साथ ही कई और नाटक भी मंचित हुए थे.
  • देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव की मौजूदगी में यह नाटक हुआ था.
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सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का भी उपयोग नाटक में शानदार तरीके से किया गया था. नाटक को आल्हा के रूप में प्रस्तुत कर इन विद्यार्थियों ने तत्कालीन पीएम राजीव गांधी और रसियन नेता को बेहद प्रभावित किया था.फिलहाल मुम्बई में दूरदर्शन में कार्यरत मुकेश नारायण ने झांसी पहुंचने पर इस नाटक से जुड़े संस्मरण बताएं.साथ ही उन्होंने रोचक अंदाज में नाटक के अंश काव्यात्मक रूप में ईटीवी के कैमरे पर प्रस्तुत किये.मुकेश बताते हैं किहमने भारत-रूस मैत्री सम्बंध में यह नाटक खेला था.

Intro:झांसी. वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का जीवनचरित्र हमेशा से ही सारी दुनिया के लोगों को प्रेरित और आकर्षित करता रहा है। साल 1987 में दिल्ली स्थित रसियन कल्चर एम्बेसी में रानी के जीवन पर आधारित नाटक झांसी नहीं दूँगी का अनोखे रूप में मंचन हुआ था। इस नाटक को तत्कालीन सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक साथ देखा था। दिल्ली के स्कूली बच्चों ने इस नाटक में अभिनय किया था और इस नाटक का निर्देशन झांसी के रहने वाले क्रांतिकारी मास्टर रूद्र नारायण के पौत्र मुकेश नारायण सक्सेना ने किया था। सक्सेना इस समय भारतीय प्रसारण सेवा में अधिकारी हैं और मुंबई में दूरदर्शन केंद्र में सहायक निदेशक के रूप में कार्यरत है।



Body:दरअसल भारत-रुस मैत्री सम्बन्ध के तहत यह नाटक 8 जुलाई 1987 को खेला गया था। दिल्ली में रसियन कल्चर एम्बेसी के एंटन चेखव ड्रामा स्टूडियो में झांसी नहीं दूँगी नाटक का मंचन किया गया था। इस नाटक का निर्देशन मुकेश नारायण ने किया था जो तब दिल्ली में श्रीराम सेंटर रंगमंडल से जुड़े थे। इस नाटक का मंचन दिल्ली के स्कूली बच्चों ने किया था। इस नाटक के साथ ही कई और नाटक भी मंचित हुए थे। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और सोवियत रूस के नेता मिखाइल गोर्बाचेव की मौजूदगी में यह नाटक खेला गया था और इसकी खूब सराहना भी हुई था। 




Conclusion:इस नाटक की सबसे ख़ास बात थी इसको खेले जाने का अंदाज। सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का भी उपयोग नाटक में शानदार तरीके से किया गया था। नाटक को आल्हा के रूप में प्रस्तुत कर इन विद्यार्थियों ने तत्कालीन पीएम राजीव गांधी और रसियन नेता को बेहद प्रभावित किया था। फिलहाल मुम्बई में दूरदर्शन में कार्यरत मुकेश नारायण ने झांसी पहुँचने पर इस नाटक से जुड़े संस्मरण बताएं। साथ ही उन्होंने रोचक अंदाज में नाटक के अंश काव्यात्मक रूप में ईटीवी के कैमरे पर प्रस्तुत किये। मुकेश बताते हैं कि हमने भारत-रूस मैत्री सम्बंध में यह नाटक खेला था। इस नाटक को आल्हा फार्म में तैयार किया गया था।

बाइट - मुकेश नारायण सक्सेना - सहायक निदेशक, दूरदर्शन

लक्ष्मी नारायण शर्मा
झांसी
9454013045
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