झांसी: मंजरी को कथक और घूमर नृत्य में महारथ हासिल है. मंजरी अपने नृत्य को अनूठे अंदाज में प्रस्तुत करती हैं. जिले के खाती बाबा क्षेत्र की रहने वाली मंजरी प्रिया श्रीवास्तव कथक नृत्य के दौरान बिना रुके सोलह सौ चक्कर और राजस्थानी घूमर नृत्य के दौरान दो हजार चक्कर लगाती हैं. मंजरी अपनी इस अनूठी कला का प्रदर्शन देश के कई बड़े मंचों पर कर चुकी हैं.
नौ साल की उम्र से कर रहीं हैं अभ्यास
मंजरी प्रिया श्रीवास्तव ने करीब नौ साल की उम्र में ही इस तरह के अभ्यास को शुरू कर दिया था. शुरु में नृत्य के दौरान मंजरी करीब ढाई सौ चक्कर लगाती थीं. लेकिन वर्तमान में वो 16 सौ चक्कर कथक नृत्य में और 2 हजार चक्कर राजस्थानी घूमर नृत्य के दौरान कर लेती हैं.
विभिन्न महोत्सवों में कर चुकी हैं प्रदर्शन
ईटीवी भारत से बातचीत में मंजरी प्रिया श्रीवास्तव ने बताया कि अब तक देश के कई राज्यों में अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति दी चुकी हैं. झांसी महोत्सव, ताज महोत्सव, सिंहस्थ कुंभ जैसे आयोजनों में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुकी हैं. इस खास तरह के परफॉर्मेंस में उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है. जब इस ओर ध्यान गया तो इसे ही अपनी विधा बनाने का अभ्यास किया.
शास्त्रीय विधा में ढालने की कोशिश
मंजरी प्रिया बताती हैं, कि धीरे-धीरे उन्होंने इसे शास्त्रीय विधा में ढालने की कोशिश की. साथ ही कथक नृत्य की भी शिक्षा ली. कथक में सोलह सौ चक्र भ्रमरी करने में लगभग तीस मिनट का समय लगता है वहीं राजस्थानी घूमर नृत्य में दो हजार चक्र पूरा करने में पैंतीस मिनट का समय लगता है.
पिता ने दिया प्रशिक्षण
मंजरी प्रिया के पिता और प्रशिक्षक संजय श्रीवास्तव धर्मेश्वर के मुताबिक मंजरी ने ढाई सौ चक्र से शुरुआत की थी. जिसका उन्होंने रिहर्सल किया था. उनका कहना था, कि इससे पहले के शिष्य पंद्रह सौ चक्कर तक लगा चुके थे. उस समय मंजरी की उम्र आठ साल थी. कथक की अन्य चीजों के साथ उन्होंने भ्रमरी पर भी ध्यान दिया.
इसे भी पढे़ं: नए भारत के निर्माण में दिव्यांगों की भागीदारी आवश्यक: PM मोदी