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जानिए कहां खेली गई थी पहली होली, आज भी मौजूद हैं वहां इसके प्रमाण - एरच होली महोत्सव

पौराणिक मान्यता के अनुसार झांसी स्थित एरच कस्बे को होली का उद्गम स्थल माना जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह स्थान राजा हिरण्यकश्यप की राजधानी हुआ करती थी. इससे संबंधित कई अवशेष आज भी एरच कस्बे में मौजूद हैं.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
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Published : Mar 27, 2021, 2:41 PM IST

Updated : Mar 27, 2021, 4:15 PM IST

झांसी: रंगों के त्योहार होली.. यानी रंगों के पर्व का प्रारंभ होलिका दहन से माना जाता है. शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झांसी जिले का एरच कस्बा त्रेतायुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था. यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरणाकश्यप की राजधानी थी. पौराणिक मान्यता के अनुसार एरच कस्बे को होली का उद्गम स्थल माना जाता है.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.

एरच कस्बे को माना जाता है होली का उद्गम स्थल

मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद को इसी पहाड़ से नीचे फेंका गया था और भगवान ने उनकी रक्षा की थी. ढिकौली गांव के पास स्थित एरच कस्बे में भगवान नृसिंह का एक मंदिर भी स्थित है और यहां एक प्राचीन नगर के अवशेष भी पुरातत्व विभाग को कुछ वर्ष पूर्व खुदाई में मिले हैं. इस बार एरच में होने वाले होली महोत्सव पर्व में सरकार भी भागीदारी निभा रही है. पर्यटन विभाग ने यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रम को आर्थिक मदद भी प्रदान किया है. एरच में होली महोत्सव कार्यक्रमों की शुरुआत हो चुकी है और हर रोज विविध तरह के आयोजन किए जा रहे हैं, जिससे स्थानीय कलाकारों को मंच मिले और लोगों को इस स्थान के महत्व का पता चल सके.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.

इसे भी पढ़ें-ब्रजभूमि की अनूठी होली, गोकुल के कण-कण ने खेली सांवरे संग होली


प्राचीन और ऐतिहासिक नगर है एरच

स्थानीय निवासी यशपाल सिंह तोमर बताते हैं कि सतयुग में यहां हिरण्यकश्यप की राजधानी थी और किला भी था. कालांतर में बौद्ध धर्म आया तो इसे बौद्ध मठ के रूप में पहचान मिली. इसके बाद इस्लाम धर्म आया था, तो उन्होंने भी यहां प्रभाव स्थापित किया. यहां खुदाई भी हुई है. प्राचीन खुदाई में यहां चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल के सिक्के भी मिले हैं, जो पुरातत्व विभाग के पास संरक्षित हैं. एरच कस्बे के बाहर नृसिंह भगवान का मंदिर है. बताते हैं कि भक्त प्रह्लाद का यहीं पर जन्म हुआ था. कुछ दूरी पर डेकांचल पर्वत है, जहां से उन्हें नीचे फेंका गया था.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.

इसे भी पढ़ें-झांसी के इस कस्बे को माना जाता है होली की उद्गम स्थली, मौजूद हैं कई प्रमाण

पर्यटन विभाग भी कार्यक्रमों में निभा रहा हिस्सेदारी

पर्यटन विभाग झांसी मण्डल के उप निदेशक आरके रावत ने बताया कि मान्यता है कि एरच से ही होली की शुरुआत हुई थी. एरच भक्त प्रह्लाद की नगरी है और यहां भक्त प्रह्लाद जन कल्याण समिति पिछले तीन वर्षों से 'एरच होली महोत्सव' मना रहा है. पर्यटन विभाग की ओर से इस स्थान का व्यापक प्रचार-प्रसार करने के मकसद से इस बार विभाग ने पांच लाख रुपये का अनुदान दिया है. एरच का पांच दिवसीय होली महोत्सव 29 मार्च तक चलेगा. बुन्देलखण्ड की प्रमुख कलाओं, संस्कृति और व्यंजनों के बारे में लोगों को बताया जाएगा. यहां की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एरच होली महोत्सव में पर्यटन विभाग की भागीदारी हुई है. इसमें हमने स्थानीय कलाकारों को भी मंच दिया है जिससे लोग उनकी कला से रूबरू हों और इस स्थान की महत्ता को पहचानें.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.

झांसी: रंगों के त्योहार होली.. यानी रंगों के पर्व का प्रारंभ होलिका दहन से माना जाता है. शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झांसी जिले का एरच कस्बा त्रेतायुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था. यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरणाकश्यप की राजधानी थी. पौराणिक मान्यता के अनुसार एरच कस्बे को होली का उद्गम स्थल माना जाता है.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.

एरच कस्बे को माना जाता है होली का उद्गम स्थल

मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद को इसी पहाड़ से नीचे फेंका गया था और भगवान ने उनकी रक्षा की थी. ढिकौली गांव के पास स्थित एरच कस्बे में भगवान नृसिंह का एक मंदिर भी स्थित है और यहां एक प्राचीन नगर के अवशेष भी पुरातत्व विभाग को कुछ वर्ष पूर्व खुदाई में मिले हैं. इस बार एरच में होने वाले होली महोत्सव पर्व में सरकार भी भागीदारी निभा रही है. पर्यटन विभाग ने यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रम को आर्थिक मदद भी प्रदान किया है. एरच में होली महोत्सव कार्यक्रमों की शुरुआत हो चुकी है और हर रोज विविध तरह के आयोजन किए जा रहे हैं, जिससे स्थानीय कलाकारों को मंच मिले और लोगों को इस स्थान के महत्व का पता चल सके.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.

इसे भी पढ़ें-ब्रजभूमि की अनूठी होली, गोकुल के कण-कण ने खेली सांवरे संग होली


प्राचीन और ऐतिहासिक नगर है एरच

स्थानीय निवासी यशपाल सिंह तोमर बताते हैं कि सतयुग में यहां हिरण्यकश्यप की राजधानी थी और किला भी था. कालांतर में बौद्ध धर्म आया तो इसे बौद्ध मठ के रूप में पहचान मिली. इसके बाद इस्लाम धर्म आया था, तो उन्होंने भी यहां प्रभाव स्थापित किया. यहां खुदाई भी हुई है. प्राचीन खुदाई में यहां चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल के सिक्के भी मिले हैं, जो पुरातत्व विभाग के पास संरक्षित हैं. एरच कस्बे के बाहर नृसिंह भगवान का मंदिर है. बताते हैं कि भक्त प्रह्लाद का यहीं पर जन्म हुआ था. कुछ दूरी पर डेकांचल पर्वत है, जहां से उन्हें नीचे फेंका गया था.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.

इसे भी पढ़ें-झांसी के इस कस्बे को माना जाता है होली की उद्गम स्थली, मौजूद हैं कई प्रमाण

पर्यटन विभाग भी कार्यक्रमों में निभा रहा हिस्सेदारी

पर्यटन विभाग झांसी मण्डल के उप निदेशक आरके रावत ने बताया कि मान्यता है कि एरच से ही होली की शुरुआत हुई थी. एरच भक्त प्रह्लाद की नगरी है और यहां भक्त प्रह्लाद जन कल्याण समिति पिछले तीन वर्षों से 'एरच होली महोत्सव' मना रहा है. पर्यटन विभाग की ओर से इस स्थान का व्यापक प्रचार-प्रसार करने के मकसद से इस बार विभाग ने पांच लाख रुपये का अनुदान दिया है. एरच का पांच दिवसीय होली महोत्सव 29 मार्च तक चलेगा. बुन्देलखण्ड की प्रमुख कलाओं, संस्कृति और व्यंजनों के बारे में लोगों को बताया जाएगा. यहां की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही एरच होली महोत्सव में पर्यटन विभाग की भागीदारी हुई है. इसमें हमने स्थानीय कलाकारों को भी मंच दिया है जिससे लोग उनकी कला से रूबरू हों और इस स्थान की महत्ता को पहचानें.

झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
झांसी के एरच कस्बे से शुरू हुई थी होली.
Last Updated : Mar 27, 2021, 4:15 PM IST
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